कवि केशो जी देहड़ू

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जीवन काल 1500-1580 अनुमानित हैं ये हजूरी कवि थे।इनकी एक मात्र ही साखी मिलती है।राग सुहब में गेय कणा की साखी है।
इसे जुमलै की तीसरी साखी के रूप में मान्यता प्राप्त है।
आवो मिलो जुमलै जुलो,सिंवरो सिरजणहार
सतगुरु सतपंथ चालिया,खरतर खण्डाधार
जम्भेश्वर जिभिया जपो,भीतर छोड़ विकार
सम्पति सिरजणहार की,विधिसू सुणो विचार
अवसर ढील न कीजिये,भले न लाभे वार
जमराजा वांसे वहै, तलबी कियो तैयार
चहरी वस्तु न चाखिये, उर पर तंज अंहकार
बाड़े हूंता बिछड़ा जारी,सतगुरु करसी सार
सेरी सिवरण प्राणीया, अंतर बड़ो अधार
पर निंदा पापां सीरे, भूल उठावै मार
परलै होसी पाप सूं, मूरख सहसी भार
पाछै ही पछतावसी,पापां तणी पहार
ओगण गारो आदमी,इला रै उर भार
कह केशो करणी करो,पावों मोख द्वार

भावार्थ-जन साधारण को सम्बोधित करते हुए केशोजी कह रहे हैं कि आओ मिलकर जुमले में बैठो और ज्ञान श्रवण करो तथा सिरजनहार भगवान विष्णु का स्मरण करो।
सतगुरु जाम्भोजी ने यह बिश्नोई सतपंथ चलाया है।इस मार्ग पर चलो तो अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी किंतु इस पंथ पर चलना कठिन अवश्य ही है।जिस प्रकार तलवार की धार पर चलना कष्ठ साध्य है उसी प्रकार इस पंथ पर चलना भी है।कहा भी है-“क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्या” धर्म के मार्ग पर चलना तो छुरे की धार पर चलना है।प्रारम्भ में कठिनता तो होगी पर उसका फल बड़ा ही मधुर होगा,इसलिए कठिन होते हुए भी त्याज्य नही है किंतु ग्राह्य है।जाम्भेश्वर भगवान विष्णु का जप जिभ्या द्वारा जपो” इज्जपस्तदर्थ भावनम्”जप के साथ ही जिसका जप किया जाता है उसका ध्यान भी करना चाहिए।तभी वह जप कहलाता है।भीतर के विकार काम-क्रोधादि का त्याग करें तभी जप सफल होगा।
यह धन दौलत की संपति जिसे अपना मान रखा है वास्तव में यह सिरजनहार भगवान विष्णु की है।उन्होंने ही प्रदान की है उन्ही की ही निजी संपति है।हम क्यो व्यर्थ में ही झूठे मालिक बनकर अभिमान करें।
यह बात विचार करने योग्य है।
यह मानव जीवन एक अवसर मिला है कुछ करने के लिए ,बन्धन से छूटने के लिए,यदि इस बार भी ढील दे दी गयी तो फिर बार बार यह मानव देह रूपी अवसर नही मिलेगा।यमराज वहा से अपने स्थान से तुम्हे लेने के लिए चल पड़े हैं,पीछे तलब हिसाब किताब लेने वाले अपने चित्र गुप्त को तैयार करके आ रहे हैं वहाँ तो किसी प्रकार की ढील नही है किंतु तुम्हारी तरफ से ढील चल रही है।तुम जाने के लिए अब तैयार नही हुए हो।अर्थात मृत्यु सदा ही ले जाने के लिए तैयार खड़ी है जब भी अवसर मिलेगा तभी ले जायेगी।इसलिए इस जीवन का विस्वास करना ही बहुत बड़ा धोखा है।चहरी अखाद्य वस्तु जैसे मांस,मदिरा आदि अपवित्र भोजन जलादि ग्रहण नही करना चाहिए।उसे तो ह्रदय से घृणा करके परित्याग देना ही ठीक है।अन्यथा मन बुद्धि शरीर सभी को नष्ट कर देगा।
प्रह्लाद के बाड़े के बिछुड़े हुए जीवो की सतगुरु अवश्य ही सहायता करेंगे,तुम्हे गुरुदेव के जुमलै में सम्मिलित होने की आवश्यकता है।
हे प्राणी !तू मानव देह में आया है, इस देह को प्राप्त करके भगवान विष्णु का स्मरण मनसा, वाचा,कर्मणा (मन,वचन एव कर्म) द्वारा करें।
यदि इस देह के द्वारा परमात्मा को याद नही किया और यह शरीर जर्जरित होकर नष्ट हो गया तो फिर आगे तेरी क्या दशा होगी।
इस जीवात्मा को बैठने के लिए कोई शरीर तो चाहिए वह तो तुझे यह मानव देह का तो नही मिलेगा।इससे तो तू बहुत ही दूर चला जायेगा।अन्य भले ही निकृष्ट योनि का शरीर मिले।परायी निंदा करना शिरोमणी पाप है।इसलिए जो भी पराई निंदा अनहोनी बात जो किसी को नीचा दिखाये ऐसी वार्ता करके अपने को महान सिद्ध करता है तो वह समझो दुनिया के पाप का भार अपने कंधे पर उठाए हुए कितने दिनों तक चलेगा।एक दिन प्रलय को प्राप्त हो जायेगा।मृत्यु का ग्रास बन जायेगा।तब मूर्ख यमदूतों की मार सहन करेगा।पीछे बहुत पछतायेगा अपने कर्मो के लिए रोयेगा किंतु फिर क्या हो सकता है।
समय बीत जाने पर फिर पीछे पछतावा ही तो रहता है।अवगुणों से भरा हुआ आदमी इस धरती पर भार है।यह धरती ,वृक्ष, पहाड़,नदी,नाले,पशु,पक्षी से भार नही मरती किंतु दुष्ट पापी के भार से दब जाती है।
तभी भार उतारने के लिए स्वयं विष्णु ही सभराथल पर आये है।कवि केशोजी कहते हैं कि कर्तव्य कर्म करोगे तो मुक्ति का द्वार खुलेगा अन्यथा तो दुख नरक का द्वार तो खुला ही पड़ा है।

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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