बिशनोई पंथ स्थापना दिवस पर विशेष

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निवण प्रणाम जी
कार्तिक वदी अष्टमी के दिन सवत् 1542 विसनोई पंथ स्थापना दिवस
कार्तिक वदी हरि कलश थापियो अन्न दे जीव उबारिया
1540 से 1542 तक लगातार भयंकर अकाल था उस समय गुरु जांभोजी ने अकाल ग्रस्त लोगों की अनेकों प्रकार अन्न- धन से सहायता की थी वह मानव का कल्याणार्थ अनेकों कार्य किए
आज से ठीक *535 वर्ष* पूर्व गुरु महाराज जांभोजी ने *संभराथल* के पावन धोरे पर *कलश स्थापना* कर *बिश्नोई पंथ* का प्रवर्तन किया था

*सतगुरू आयो सतपंथ बताओ भ्रान्ति चुकाई आवरा न बुझबा कोई*
पंथ का प्रर्वतक ( संस्थापक ) ही हमारा ( Already ) असली सच्चा गुरु है बाकी उनकी कही हुई अमृतमयी वाणी *सबदवाणी* ही वर्तमान मे हमारे सच्चे गुरु के रूप मे ह्मारा मार्गदर्शन करती है बाकी किसी तथाकाथित कलरविशेष को गुरु बनाने की व सुगरा बनने की कोई आवश्यकता नही है जिसने एक गुरु जाम्भोजी को व उनकी सच्ची वाणी सब्दवाणी को गुरू के रूप मे धारण कर ली है उनको कहीं फर्जी बाबाओ के पीछे भटकने की कोई आवश्यकता नही है
लेकिन बिश्नोई पंथ दूसरों की देखा देखी और अन्य समाज का प्रभाव के कारण हम शब्दवाणी के बताए हुए रास्ते से पूरी तरह भटक चुके हैं और आज वर्तमान स्थिति बहुत ही दयनीय बनी हुई है गुरु महाराज की शिक्षाओं से बहुत दूर हो चुके हैं हमें शब्दवाणी को समझने की जरूरत है जीवन में धारण करने की जरूरत है केवल पाठ करने से या पहल लेने से हम समझ नहीं पाएंगे

सुगरा नुगरा बनाने की होड़ मची है पंथ मै
सुगुणा = का अर्थ गुणवान निर्मल सच्चा चरित्रवान को बताया है
निगुणा = गुणहीन चरित्रहीन मलिन व्याक्ति को ब्ताया है
लेकीत कुछ तथाकथित स्वर्ग नरक का डर ( भय ) हाऊ बताकर उसको स्वर्ग का ( *Certificate* ) प्रमाण देते है गुरु जाम्भोजी ने एसा कही नही बताया उन्होने कर्म , मेहनत , ईमानदारी , दया , पर बल दिया

*दोय मन दोय दिल सुरग न मेला*

*भ्रांति सुरग न जाई अंत निरंजन लेखो लेसी*
अनेक प्रकार से भ्रम जाल में उलझे हुए भोले भाले लोगों को दुविधावर्ती, कर्मकांड आडंबर पाखंड पूजा अनेक देवी देवताओं की पूजा वार नक्षत्र मुहूर्त मंदिर मूर्ति पूजा जाये जीवों की पूजा जैसे -भोमिया, सती सता दादा दादी महासती ,वगतेस ,झुंझार वीर, जोगणिया, नौरता पुजा आदि ऐसे अनेक धार्मिक आडंबर से मुक्त किया
मन में किसी प्रकार की भ्रांति से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता मन को एकाग्र चित्त होकर कार्य करें एक काम एक लक्ष्य तभी जीवन में सफलता मिलती है
*सतगुर आयो सतपंथ बतायो भ्रांत चुकाई अवर न बुझबा कोई*
थलीये आय सतगुर परगास्यो
कहे सतगुरु भूल मति जाईयो अभे पडो़ला दोजगे
गुरु महाराज पावन मरुभूमि में आए और हमारे सारी दुविधाएं दूर करके हमें सबदवाणी के जैसा पावन ज्ञान ग्रंथ दिया और अनेकों आडंबर से मुक्त करके एक
*भाग परापती करमा रेखा*
वैज्ञानिक विचारधारा एक सरल जीवन एक सहजीवन व कर्मों के ऊपर अधिक बल दिया कर्म करोगे जैसा फल मिलेगा जैसे अपनी वाणी में कहा है कि पानी का कोई दोष नहीं है जैसी भूमि होगी वैसा ही अनाज पैदा होगा

*गुरू न दोष न देणा गुरू हीरा विणजे लेहंम लेहूं*
गुरु महाराज कहते हैं मुझे दोष मत देना मैंने सबदवाणी जैसा ज्ञान रूपी हमारे हीरा हाथ में थमा दिया अब आप ज्ञान लेना चाहो तो लो अन्यथा मत लो हमें सबदवाणी को समझना चाहिए लेकिन हम सबदवाणी को नहीं समझ पाये आज 5 शताब्दी के बाद हमारा पंथ कहां खड़ा है? विचार कीजिए गुरु महाराज ने जिस धार्मिक कर्मकांड आडंबर से मुक्त किया हम वापस वही जाकर उलझ कर रह गए जांभोजी की बातों को नहीं समझ पाए और गुरु जांभोजी ने कर्म और *गृहस्थ आश्रम इस पर विशेष जोर दिया कहीं जाने की आवश्यकता नहीं* है

*म्हे जपा न जाया जीऊं खेचर भूचर क्षेत्रपाला परगट गुप्ता काय जपीजे तेपण जाया जीऊं*
आज बिश्नोई पंथ में जिस प्रकार अनेकों काल्पनिक देवी देवता जाए जीवो की पूजा होती है बिल्कुल सबदवाणी के विपरीत है
सदियां बीत गई लेकिन हम आज भी गुरु जांभोजी की बातों को नहीं समझ पाए और वहीं के वहीं खड़े हैं और *हवन रोज करते व करवाते हैं पाहळ भी लेते हैं लेकिन उसका सार ग्रहण नहीं करते सार ग्रहण नहीं किया तो कोई अर्थ नहीं है* अतः मेरा सभी से निवेदन है घर पर स्वयं सबदवाणी का अध्ययन करें अपने बच्चों को समझाएं वह पाखंड मुक्त जीवन व शुद्ध सरल सहज जीवन जीने की कोशिश करें
*एकाएकी होय जपो ज्यूं भागे*

भ्रम भूल अड़सठ तीरथ काय फिरो इण पाहळ सम थूल
भळि मूल सींचो रे पिराणी
गुरु महाराज ने मूल को सींचो व एकाग्रता पर विशेष बल दिया एकाग्र चित्त होकर के परमात्मा का नाम लो कार्य करो पढ़ाई करो खेती का कार्य करो कोई भी काम एकाग्र चित्त होकर करो तो सफलता अवश्य मिलेगी अतः तांत्रिक भोपो भरडो़ पाखंडियो के चक्कर में ना पड़े हैं उन के चक्कर में पड़ने का मतलब यह है कि हम कही न कही मानसिक रूप से कमजोर हो चुके हैं यह मानसिक कमजोरी की निशानी है

गुरू महाराज ने
सबद वाणी में
आगे भविष्य में होने वाले संभावित पाखंड आडंबर बारे में भी 500 साल पहले *चेतावनी* देकर ( warning) सावधान कर दिया था

*अधर आसण मांड बसेला*
*मुवा मडा़ हंसायसे*
*काठ का घोड़ा निरजीव ता सरजीव करसे*
*ताने दाल चरायसे*

अब आप विचार कीजिए हवा में आसन लगाएंगे अनेक प्रकार की कलाबाजी या दिखाएंगे मृत को जीवित करने की कोशिश करेंगे ( प्रकृति के नियम को बदलने की कोशिश तक वह करेंगे तो भी भरोसा मत करना )और उसको दाल आदि खाने खिलाने की कोशिश करेंगे उन पर भी विश्वास मत करना तो आजकल के तांत्रिक जरा सी कला दिखाएं तो हम उनका शिकार हो जाते हैं वह छोटी सी कला दिखाकर हमारे को अपने विश्वास में ले लेते हैं उन पर विश्वास मत करो गुरु जांभोजी की वाणी को समझो वैसे तो आये और कई कलाबाज आएंगे उन पर भरोसा कभी मत करना यदि भरोसा किया तो बहुत पछताना पड़ेगा और वह आपका मानसिक और आर्थिक रूप से बहुत शोषण करेंगे लेकिन आपको अंत में कुछ हासिल नहीं होगा अतः मेरा निवेदन है *सबदवाणी को समझें अध्ययन करें*
धन्यवाद
लिखने में किसी प्रकार की कोई त्रुटि हो तो माफी चाहूंगा
सादर
दिनेश पंवार बावरला
सोहन खीचड़ गंगासरा 🙏🏻

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Sanjeev Moga
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