शब्द नं 119

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विसन विसन तू भण रे प्राणी
एक समय संत ऊदे, अतली ने गुरु महाराज से यह जिज्ञासा प्रकट की कि उनके अपने शरीर पर पूर्व जन्मों में किए हुए पापों का जो इतना अधिक भार है वह कैसे उतरेगा? उनके पापों की संख्या इतनी है,जितनें शरीर पर बाल।उनके इतने सारे पाप कैसे दूर होंगे तथा उनकी मुक्ति कैसे होगी? अपने भक्त ऊदे और अतली की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उने यह शब्द कहा:-
विसन विसन तूं भण रे प्राणी।पैंके लाख उपाजूं

हे प्राणी!तुम निरंतर साँस-साँस के साथ विसन नाम का जप करते रहो।विसन नाम स्मरन की अपार शक्ति, तुम्हारे संचित पापों को नष्ट कर देगी।जैसे एक व्यापारी,अपने व्यापार से एक-एक पाई का लाभ जोड़ते- जोड़ते अपने कर्जे से मुक्त होकर लखपति बन जाता है,उसी प्रकार तुम विसन नाम का जप करते करते पूर्व पापों से छूट कर धर्मात्मा बन जावोगे।

रतन काया बैकुंठ बासो।तेरा जरा मरण भयभाजूं

बार-बार विसन का नाम जपने से तुम पापों से छूट जावोगे और तुम्हारी आत्मा धर्म की ज्योति से प्रकाशित हो, बैकुंठ में वास करेगी तथा तुम्हारा इस संसार में बार-बार जन्मने और मरने का डर हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगा।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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