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म्हे आप गरीबी तन गूदडियो
एक समय एक नाथपंथी जोगी श्री जंभेश्वर महाराज के पास आया और उनके सीधे-सादे पहनावे और अति शांत स्वरूप को देखा तो,उसने हाथ जोड़कर कहा कि आप अवतारी पुरुष होकर भी इस प्रकार की साधारण गुदडी धारण किए हुए बिना किसी आसन के भूमि पर क्यों बैठे हैं?यदि आप योगियों के योगी हैं तो इतने कृश-काय क्यों है?उस योगी के प्रश्न सुन गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:-
म्हे आप गरीबी तन गुदडियो मेरा कारण किरिया देखो
हे जिज्ञासु!हम अपने मन के राजा हैं।इस शरीर पर यह गुदड़ी और यह साधारण वेश हमने अपनी स्वेच्छा से धारण किया है। तुम हमारे इस ब्राह्य रुप को न देख कर हमारे द्वारा संपन्न कार्यों को देखो तथा उन कारणों को जानने का प्रयास करो कि हम ऐसा आचरण एवं कार्य क्यों कर रहे हैं?
विन्दौ व्यौरो व्यौर विचारो भूलस नाहीं लेखो
त्रिकुटी में आज्ञा चक्र के केंद्र बिंदु पर अपना ध्यान लगावो, सत्य को जानो और तब संसार के सामने अपने विचार प्रकट करो। कभी भूल कर भी किसी के ब्रह्य शरीर वेश भूषा को देखकर अपनी अवधारणा मत बनाओ।
नादिये नीरूं सागर हीरूं पवंणा रुप रमै परमेसर
उस परमतत्व की सर्वव्यापकता को पहचानो। वह नदियों में जल, समुद्र में हीरा तथा समस्त वायुमंडल में वायु के रूप में विद्यमान हैं।
बिम्बै वेला निहचल थाघ अथाघूँ उमग्या समाधुं
प्रत्येक प्राणी को प्रातःकाल उस अथाह परमतत्व की थाह (गहराई)जानने का प्रयास करना चाहिए।
ते सरवर कित नीरूं गहर गंभीरूं
त्रिकुटी में ध्यान लगा कर जब तुम्हारी चेतना ऊध्र्वमुखी होकर शून्य मंडल के पास मानसरोवर के तट पर पहुँचेगी, तब तुम्हें ज्ञात होगा कि वह मन का सरोवर कितना अथाह और गहरा है।उस में कितनी अपार असंख्य भाव धाराएँ हिलोरे ले रही है तथा वह अमृत का कुंड,उसका अमृत जल कितना मधुर और गहरा है।
म्हे खिंण एक सिंध पुरी विसरांम लियौ
इसका ज्ञान साधक को तभी हो सकता है,जब वह सहस्त्रार दल कमल-गगन-मंडल के उस शून्य स्थल पर समाधिस्थल होकर क्षण भर को विश्राम करे ।
अवजु मंडल हुई अवाजूं म्हे सुन्य मंडल का राजुं
हे योगी!हम उस शून्य गगन मंडल के राजा हैं,जहां निरंतर अनहद नाद की ध्वनि गुंजायमान हो रही है।जहां शब्द-ब्रह्म,ओंकार ही ध्वनि रूप में परिव्याप्त है।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ
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