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जके पंथ का भाजणां
मलेर कोटले का सेख- सदूखान नित्य सौ गायें मरवाता था।गुरु जंभेश्वर महाराज ने उस कुकृत्य को बंद करवाने के लिए अपने भक्त बाजेजी को मलेर कोटला भेजा। गुरु महाराज की मंत्र शक्ति के बल से बाजेजी ने जिस सूखे बाग में आसन लगाया,वह बाग हरा भरा हो गया। गायों की गर्दन पर कसाईयों की छुरी नहीं चली। देग का पानी गर्म नहीं हुआ।आग ठंडी हो गई। जब शेख को इन बातों का पता लगा तो वह बाजेजी के पास आया और उसने इन चमत्कारिक बातों का रहस्य जानना चाहा।बाजेजी ने अपने आप को गुरु जंभेश्वर का एक मामूली शिष्य बताते हुए इसे गुरु महिमा का चमत्कार बतलाया।बाजेजी की बात सुन शेख-सदू हाथी घोड़ों का लश्कर लेकर,समराथल धोरे पर गुरु महाराज के पास आया।उसने भेंट -पूजा के पश्चात गुरु महाराज के सम्मुख यह जिज्ञासा प्रकट की कि उसका मन दोजख से बहुत डरता है।वह दोजख से छूट कर भिस्त को कैसे प्राप्त कर सकता है।गुरु महाराज ने शेख की जिज्ञासा जान उसे यह शब्द कहा:-
जके पंथ का भांजणां गुरू का निदंणां स्वामी का दुस्मणा
हे शेख!जो कोई धर्म के विरुद्ध आचरण करता है,अपने गुरु की निंदा करता है, वह परमपिता परमेश्वर का दुश्मन है।
कुफर ते काफरा कुमली कुपातूं कुचिला कुधातूं
ऐसा व्यक्ति जो अन्य धर्मावलम्बियों से शत्रुता का भाव रखता है,वह स्वयं काफिर (धर्म विरोधी) है। ऐसा तामसिक वृत्ति वाला,दुष्ट,कुपात्र एवं मलीन है।
हड़हड़ा भड़हड़ा दानबे दुतबा दानबे भुतबा राकसां बोकसां
वह मुंह में हड्डी लिए भागने वाले कुत्ते के समान है,जो हमेशा झूठी व्यर्थ बक बक करता रहता है।वह राक्षसों के दूत के समान,दानव, भूत प्रेत, तथा राक्षस एवं चांडाल के समान है।
जांका जन्म नहीं पर कर्म चंडालूं ओर कुं जिबह कर आप कुं पोखणा
ऐसे मलीन,कर्महीन लोग चाहे जन्म से न हो परंतु कर्मों से चांडाल है।जो अन्य प्राणियों की हत्या कर,उनकी मुर्दा मांस मिट्टी से स्वयं का पेट भरते हैं।
जिहिं की रूवा ले दीजैसी दोरै घूंप अंधारूं
मरणोपरांत ऐसे लोगों की रूह को घोर अंधेरे नर्क में डाला जाता है। किए हुए कर्मों का फल सबको मिलता है।जो दूसरों को पीड़ाएँ देते हैं, उसे स्वयं पीड़ा भोगनी पड़ती है।
ताणबे ताणबा छाणबे छाणबा तोड़बे तोड़बा
जो दूसरों को नष्ट करता है,उनका छेदन करता है, उसे स्वयं बिधंना पड़ता है। जैसा आचरण व्यक्ति दूसरों के प्रति करता है, उसे स्वयं वैसा ही आचरण दूसरों से मिलता है।दूसरों को तोड़ने वाला,नष्ट करने वाला स्वय टूटता है ,नष्ट किया जाता है।
कुकबे पुकारबा जांकि कोई न करबा सारूं
ऐसे कुकर्मी जीव जब हम स्वयं अपने किए का फल भोगते हैं, पीड़ाएँ एवं दुखः पाकर अपने बचाव एवं सहायता के लिए रो रो कर पुकारते हैं, उस समय उनकी ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं होता।ऐसे कुजीव घोर नर्क की यातनाएँ भोगते हैं।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ
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