शब्द नं 103

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देख्या अदेख्याः सुण्या असुण्या
मूला नाम का एक ब्राह्मण था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसने अपनी बहन के पुत्र को पाल-पोष कर बड़ा किया तथा उसे ही अपना पुत्र जान अपना घर-बार, धन-संपत्ति सब कुछ उसे सौंप दिया।वह स्वयं जाम्भोजी के पास रहकर अपना समय भक्ति भाव से काट रहा था। एक बार वह गुरु जी से आज्ञा लेकर अपने घर गया तब उसने वहां अपनी पत्नी एवं भांजे को आपत्तिजनक स्थिति में सोए देखा। अपने घर में,जो दृश्य उसे देख सुन कर वह बहुत ही दुखी हुआ। उसका मन बेचैन हो गया। हृदय तड़फने लगा।अत्यंत अशांत एवं दुखी मन से वह पुनः समराथल लौट आया और उसने गुरु महाराज के सम्मुख अपना दुःखड़ा रोया।जाम्भोजी ने भगत की पीड़ा जान,उसे यह शब्द कहा:-
देख्या अदेख्या सुण्या असुण्या खिंमा रूप तप कीजै

हे भक्त!जो कुछ दृश्य तुमने देखा है, मान लो तुमने देखा ही नहीं तथा जो कुछ तुमने सुना है, मान लो तुमने सुना ही नहीं।देखना और सुनना मन का कार्य है।इंद्रियां केवल माध्यम है।मन में यह क्षमता है कि वह अपने दृढ़ संकल्प द्वारा किसी देखे हुए दृश्य एवं सुने हुए शब्दों को अपने स्मृति पटल से हटा सकता है। अप्रिय दृश्य-श्रव्य को अपने मानस पटल से हटाना ही क्षमा रूपी तप है।क्षमा बलवान का आभूषण है और कायर का कलंक।

थोड़े मांहीं थोड़े रो दीजै होते ना न कीजै

हे भक्त!तुम्हारे पास यदि किसी को देने के लिए ज्यादा नहीं हैं तो कोई बात नहीं थोड़े में से थोड़ा ही दो,परंतु होते हुए इंकार मत करो। मूल्य वस्तु का नहीं,त्याग की भावना का है।धन संपत्ति को, परिजन को,अपना समझना ही सबसे बड़ी भूल है।

किसन मया तिहूं लोक साक्षी इमरत फुल फलीजै

जो अपना समझकर नहीं,बल्कि सब कुछ भगवान कृष्ण का,इस त्रिलोकी का सारा ऐश्वर्य विष्णुमय है,ऐसा जान कर जो देता है, वह स्वयं अहंकार भाव से मुक्त रहता है और उसका दिया हुआ दान अमृत के रूप में पुष्पित और फलित होता है। ये तीनों लोक इसके साक्षी रहते हैं।

जोय जोय नांव विसंन के दीजै अनन्त गुंणा लिख लीजै

इस संसार में जो कुछ है, वह सब भगवान विष्णु का है,मेरा अपना कुछ नहीं है। जो दाता इस भाव से दान देता है,वह अनंत गुना होकर उसके नाम से लिख दिया जाता हैं अर्थात अपना समझ कर अपने नाम से नहीं, बल्कि विष्णु का समझकर, विष्णु के नाम से दान करो,तभी उसका अनन्त गुना फल मिलेगा।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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