शब्द नं 100

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अरथूं गरथूं साहंण थाटूं
एक समय समराथल पर संत मंडली में दान देने विषयक चर्चा चल रही थी,उसी समय एक राजा ने जिज्ञासा प्रकट की कि जो कोई धन-दौलत, हाथी घोड़ों का नित्य दान करता है, उसकी क्या गति होती है?राजा की जिज्ञासा जान श्री गुरु जंभेश्वर महाराज ने यह शब्द कहा:-
अरथूं गरयूं साहंण थाटूं कुड़ा दीठो ना ठाटो कुड़ी माया जाल न भूली रे राजेन्द्र अलगी रही ओजूं की बाटो

हे राजन! यह सासारिक धन- दौलत, घोड़ों का ठाठ-बाठ, यह सब झूठा मायाजाल है।तुम कहीं इन्हीं में उलझ कर मत रह जाना।आत्म-ज्ञान एवं मुक्ति का मार्ग इससे बहुत दूर है।

नवलख दंताला बार करिलो बार करे कर बंद करिलों बंद करे कर दान करीलो दान करे कर मन फुलीलो

यदि कोई बलशाली राजा, नवलाख हाथियों को घेरे में डालकर बंद कर ले।बंद करने के पश्चात उन तमाम नवलाख हाथियों को दान में दे दे और इतना बड़ा दान कर अपने मन में अहंकार से फूल उठे कि उसने कितना बड़ा दान किया है? नवलाख हाथियों का दान! ऐसा दान और उसका अहंकार दोनों व्यर्थ है।

तंत मंत वीर वेताल करीलों खायबा खाज अखाजुं निरह निरंजन नर निरहारी तऊ न मिलबा झंझा भाग अभागूं

इसी प्रकार जो कोई तंत्र-मंत्र के बल पर वीर बेताल एवं भूत प्रेतों को अपने वश में कर लेता है और मांस मदिरा आदि अखाद्य पदार्थों का भक्षण करता है,ऐसा मलिन मन्द बुद्धि वाला व्यक्ति न तो निराकार,निर्गुण ब्रह्म को जान सकता है और न ही कभी उस परम तत्व परमात्मा के साकार रूप एंव सद्गुणों को पा सकता है। अतः ऐसे अहंकारी,पथभ्रष्ट लोगों को यह मानव देह पाकर भी अभागा ही समझना चाहिए क्योंकि ऐसे आचरण हीन लोगों को कुछ प्राप्त नहीं होता।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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