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जिंहि गुरु के खिण ही ताऊ-खिंण ही सीऊ
एक समय समराथल धोरे पर जमाती भक्तजनों ने गुरु जंभेश्वर महाराज से संसार एवं प्रकृति की परिवर्तन शीलता के विषय में जानना चाहा कि वह कौन सी शक्ति है जो क्षण भर में कुछ का कुछ कर देती है? भक्त जनों की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
जिहिं गुरु कै खिंण ही ताऊं खिंण ही सीऊं
हे जिज्ञासु जन! उस परमपिता परमेश्वर सतगुरु की महिमा अपार हैं।उसकी इच्छा मात्र से क्षण भर में तपती हवाएँ चलने लगती हैं, तो क्षण भर में ही शीत हवाएँ।
खिंण ही पवणा खिंण ही पाणी खिंण ही मेघ मंडाणौ
क्षण में ही पवन चलने लगता है क्षण में ही मेघ उमड़ आते है तथा क्षण भर में ही पानी बरसने लगता है।
किसंन करंता बार न होई थल सिर नीर निवांणौ
भगवान विष्णु के लिए कुछ भी करना असंभव नहीं हैं। वह क्षण भर में रेत के धोरे को गहरे जलाशय के रुप में बदल सकता हैं।
भुला पिरांणी विसंन जपो रे ज्यूं मौत टलै जिरवाणौं
हे भूले हुए प्राणी विष्णु का जप करो जिससे मृत्यु और आवागमन से छुटकारा मिल जायेगा
भीग्या है पण भेदया नाहीं पाणी मांय पखाणौं
जन्म मरण से छुट कर मोक्ष प्राप्त करने हेतु केवल ऊपरी दिखावे से काम नहीं चलेगा।उसके लिए अपने अन्तः करण को शुद्ध बना कर,आत्मज्ञान से परिपूर्ण होना पडेगा।जिस प्रकार पत्थर पानी में पड़ा रहने पर भी केवल ऊपर से ही भीगता है भीतर से सुखा रहता है।उसी प्रकार ज्ञान की ज्योति अंदर तक नहीं पहुंच जाती तब तक आत्मा अपने स्वरूप को नहीं पहचान सकती।
जीवत मरो रे जीवत मरो जिन जीवन की विध जांणी
जो काम क्रोधादि अजर तत्वों को जला डालता है वही व्यक्ति जीवन जीने की विधि जानता है।
जे कोई आवै हो हो करतो आप जै हुइये पांणी
तुम्हारे पास यदि कोई व्यक्ति अत्यन्त क्रोधित होकर आता हैं तो अपने को पानी के समान शीतल और विनम्र होना चाहिये।
जांकै बहुती निवंणी बहूती खिवंणी बहुती किरिया समाणी जा कै तो निज निरमल काया जोय जोय देखो ले चढियो असमानी
जो अत्यन्त विनम्र अत्यन्त क्षमाशील तथा सभी प्रकार के कार्यों में धैर्य रखता है,उसकी आत्मा ही नहीं देह तक निर्मल बन जाती हैं।और वह मरणोपरांत बैकुंठ धाम में वास करता हैं।ऐसे निअहंकारी निर्मल स्वभाव वाले संतजन हमेशा आत्म स्वरूप को प्राप्त कर बैकुंठ धाम जाते हुए देखे गए हैं।
यह मढ़ देवल मुल न जोयबा निज कर जपो पिराणी
इन मंदिरों में देवालयों में वह परम तत्व मूल परमात्मा तुम्हें नहीं मिलेगा। वह तो तुम्हें केवल तभी मिलेगा जब तुम उसे अपना ही रूप समझ कर अपने अंदर खोजना प्रारंभ करोगे। उसे बार-बार पुकारोगे।
अनन्त रुप जोवो अभ्यागत जिहीं का खोज लहो सुर वाणी
प्रत्येक प्राणी में उस अनन्त रूपों वाले परमतत्व को ही देखो ज्ञानी पुरुषों के बताए हुए मार्ग पर चल कर उसकी खोज करनी चाहिये।
सेतम सेतुं जेरज जेरूं इंडस इंडू अइयालों उरधज खैंणी
स्वेदज में पसीना रूप में जरायूज़ में जैर के रूप में अण्डज में अण्डे के रूप में और उदिभज में वनस्पति के रूप में परमतत्व रमा हुआ है ।
अतः हे लोगों!प्राणी मात्र में परमात्मा के दर्शन करते हुए ऊध्रवमुखी बनो तथा परम धाम प्राप्त करने का उपक्रम करते रहो।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका
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