शब्द नं 74

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कडवा खारा भोजन भखले
एक बार बालनाथ और कंवलनाथ नाम के दो नाथ पंथी योगियों ने एक गांव में अपनी सिद्धि के बल पर अनेक चमत्कार दिखाये। उन्होंने एक स्त्री की प्रेत बाधा दूर की, गृहस्वामी ने प्रसन्न होकर जब उन्हें खाने के लिए खीर का भोजन परोसा,तो परोसते समय अचानक खीर नीचे जमीन पर गिर गई ।लोगों ने इसे प्रेतों का चमत्कार समझ और उसी विषय में एक भगत ने समराथल पर गुरु महाराज से जानना चाहा कि इसमें क्या और कौन सी सिद्धि है? भक्त की जिज्ञासा जान महाराज ने यह शब्द कहा:-
कड़वा खारा भोजन भखले भख कर देखत खीरूं

हे प्राणी! रुखा-सुखा जैसा भी भोजन मिले उसे प्रसंता पूर्वक खाना चाहिए खाने को जो भी मिले उसे खीर के समान मानकर खाना चाहिये ।

धर आखरडी़ साथर सोवण ओढ़ण ऊनां चीरू

शयन के लिए बिछोना मिलता हैं तो ठीक,अन्यथा धरती को ही अपनी शैया समझ कर सो गया। ओढने के लिए चाहे मखमल मिले या ऊन का मोटा वस्त्र, सबको समान भाव से ग्रहण करें।

सहजे सोवण पोहका जागण जे मन रहिबा थीरूं

आत्मा को अपने शरीर से पृथक समझ कर सहज रूप से सोना। सहज रहने का तात्पर्य है:-शरीर और जीवात्मा को पृथक-पृथक समझ कर रहना, इन दोनों को एक न समझना।पतन वहीं से शुरू होता है जब मनुष्य अहंकार वश जीवात्मा और शरीर को एक समझकर, ‘मैं’ पन और मेरे पन में रहने लगता है, अभ्यास और ज्ञान से मन पर रोक लगाई जा सकती है।यदि मन स्थिर है तो सहज रहना आसान है।जिसका ध्यान परमात्मा पर टिक गया है,उसके लिए खाना, ओढना,बिछना, सोना, जागना कोई विशेष महत्व नहीं रखते।

सूरग पहेली सांभल जीवड़ा पोह उतरबा तीरूं

हे जीव ! मृत्यु से पहले ही सम्भलो, सावधान रहो। सुपंथ पर चलकर अपने गंतव्य तक पहुँचो, मुक्ति प्राप्त करो।इसके लिए गुरु ने दो उपाय सुझाए हैं, एक तो मन को स्थिर रखना और दूसरा सहज रहना।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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