शब्द नं 72

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वेद कुरांण कुमाया जालूं
उत्तर प्रदेश के कन्नौज गांव में रहने वाले काशीदास ब्राह्मण ने गुरु जांभोजी से समराथल धोरे पर कहा कि मनुष्य जाति के चार वर्ण है और उनमें ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ है ।वह वेद पुराणों में लिखे पाप पुण्य के रहस्य को पढ़कर सुनाता है और इस प्रकार अन्य वर्ग के लोगों को जन्म मरण से छुडाता है।गुरु महाराज ने काशीदास का कथन जान उससे यह शब्द कहा:-
वेद कुराण कुमाया जालूं भूला जीव कुजीव कु जाणी

वेद और कुरान के नाम पर बहुत से पाखंडी,ढोंगी लोगों ने व्यर्थ का वाग्जाल फैला रखा है।ऐसे दुष्ट लोगों के मिथ्या ज्ञानाडम्बर में बहुत से भोले जीव भ्रमित होकर भटक जाते हैं।

बसन्दर नही नख हीरुं धर्म पुरुष सिरजीवे पूरुं

ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र ऐसा भेद मिथ्या है ।धर्म पूरुष ब्रह्मा, प्रत्येक प्राणी को पूर्ण ही बनाता है। उसमें किसी अन्य द्वारा भेद करना उसी प्रकार असंभव है, जैसे हीरे के छेद करना असंभव है।

कलि का माया जाल फिटा कर प्राणी गुरु की कलम कुराण पिछाणी

हे प्राणी यह ऊँचा नीचा और वेद पुराण के नाम से फैलाया जा रहा कलयुग का मायाजाल झूठा है। तुम इसे छोड़कर गुरु द्वारा बताई हुई बात को ही वेद का मंत्र और कुरान का कलमा समझो।यही परमात्मा का आदेश है।

दीन गुमान करैलो ठाली ज्यूं कण घातें घुण हाणी

यदि तुमने अपने आप को महान धर्म पुरुष समझने का अहंकार किया तो वह अहंकार की भावना तुम्हारे हृदय से पवित्र आत्म भाव को उसी प्रकार नष्ट कर देगी, जैसे अनाज के दाने के अंदर पैदा हुआ घुण, उसके सार-तत्व को नष्ट कर देता है।

सांच सिदक शैतान चुकावो ज्यूं तिस चुकावै पांणी

जैसे पानी प्यास को मिटाता है वैसे ही सच्चाई और निश्छलता से दुष्ट वृत्तियों को मिटाना चाहिए।

मैं नर पूरो सर विणजै हीरा लेसी जाकै ह्रदय लोयण
अंधा रहा इवांणी

हम पूर्ण पुरुष है। पूर्ण सत्य का सौदा बेचते हैं । हमारे इस सत्य ज्ञान के सोदे को वही लेगा, जिस के हृदय में ज्ञान के चक्षु खुल चुके हैं ।जो अज्ञानी है ,जिसके हृदय नेत्र बंध नहीं खुले हैं वह यहाँ से भी खाली का खाली ही जायेगा।

निरख लहो नर निरहारी
जिण चौखंड भीतर खेल पसारी

तुम जरा ध्यान लगाकर अच्छी प्रकार देखों।हम वो निराहारी, निरंजन पुरुष है,जिसने चारों दिशाओं में अपनी माया का खेल फैला रखा है ।

जंपो रे जिण जंपे लाभे रतन काया ए कहांणी

अतः हे प्राणी! तुम उस पूर्ण पुरुष, विष्णु का जाप करो, जिसका जाप जपने से लाभ ही लाभ है ।इस स्थूल शरीर में जो आत्मा नाम की रतन काया है, उसकी यही कथा है कि पूर्ण पुरुष को प्राप्त करें। हमारी लीला अपार है।

कांही मारूं कांही तारुं किरिया बिहुंणा परहथ सारूं

हम किसी को तो मारते हैं ,किसी को मुक्ति देते हैं और बिना किसी प्रकार के शुभ कर्म किए ही जो हमारी शरण में आ गया,हम उसका भी कार्य पूर्ण करते हैं।

शील दहूं उबारुं ऊन्हें एकल एह कहांणी

हम अपने हर शरणागत को मुक्ति देते हैं। उन्हें शरण देकर ,शीलवान बना कर उनका उद्धार करते हैं। क्योंकि अद्वैत की दृष्टि से प्राणी मात्र हमारा अपना ही अंश है।

केवल ज्ञानी थल शिर आयो परगट खेल पसारी

हे भगत जनों!वहीं पूर्ण पुरुष कैवल्य ज्ञान स्वरूप आज तुम्हारे बीच इस समराथल धोरे पर प्रकट होकर विराजमान है।

कोरोड़ तेंतीसों पोह चलावणी हारी ज्यों छक आई सारी

यहाँ हमने वो खेल रचा है,जो तैतीस करोड़ प्रहलाद पंथी जीवो को परम धाम पहुँचाने वाला मार्ग दिखाता है। जैसे चौपड़ में विजयी होकर गोटी केंद्र में पहुँच जाती है, उसी प्रकार वे सुजीव यहाँ से तृप्त होकर अपने मुक्ति धाम को पहुँचेंगे, ऐसा है हमारा यह खेल।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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