शब्द नं 68

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बै कंवराई अनंत बधाई
बीकानेर के राव लूणकरण ने गुरु जांभोजी की स्तुति की ओर जैसे ही चरण स्पर्श हो चुके, जाम्भोजी ने अपना हाथ उनके सिर पर रख कर उन्हें आशीर्वाद दिया।उसी समय राव का पुत्र पास ही अपना घोडा फेर रहा था तथा अनेक प्रकार के अश्वसंचालन के कौशल दिखा रहा था।उसे देख कर जमाती लोगों ने कुंवर की बड़ी प्रशंसा की तथा उन्होंने जब कहा कि ऐसा अश्व चालक और कोई नहीं देखा। राजकुंवर के अहंकार को जान, गुरु महाराज ने राव लूणकरण एवं जमातियों को यह शब्द कहा:-
वै कंवराई पार गिराई वैकवराई अनंत बधाई वैकंवराई सुरंग बधाई

हे जमाती जन!असल में सच्ची कंवराई तो वह है, जो शुभ कर्मों द्वारा प्राप्त की जाती है।जिस से इस जीवन में अपार यश मिलता है और मरणोपरांत उसका स्वर्ग में स्वागत सत्कार होता है।

यह कंवराई खेह रलाई दुनिया रोलै कंवर किसो?

राजा का पुत्र होने की यह अहंकार जनित कंवराई तो एक दिन धूल में मिलने वाली है।यह राज्य का नशा नाशवान है।संसार के लोगों द्वारा झूठी बड़ाई का शोर सुन कर जो फूला नहीं समाता,वह कुंवरपना किसी अर्थ का नहीं है।

कण बिण कूंकस रस बिन बाकस बिन किरिया परिवार किसो?

जैसे अन्य के दानों रहित भूसी, चांचड़ा तथा रस रहित गन्ने के डण्ठल किसी काम के नहीं होते। उसी प्रकार बिना शुभ कर्म किए, किसी उच्च परिवार से संबंधित होने का गर्व व्यर्थ है,अर्थात यदि अच्छे कर्म नहीं किए तो केवल राजा का पुत्र होना तथा उच्च कुल में जन्म लेना निरर्थक है।

अरथूं गरथूं साहण थाटूं धुवें का लहलोर जिसो

यह धन-संपत्ति और अश्व समूह धूंवे के बादलों के समान सार हीन और क्षणिक है।एक हवा का झोंका आया कि धूंवे का बादल खत्म!कारण धूंवे में न तो जल है और न ही वह बादल हैं।वह केवल बादल का भ्रम पैदा करता है। उसी प्रकार यह संसारिक ऐश्वर्य एव राज-सत्ता तात्विक दृष्टि से पूर्णतः सारहीन हैं।

सो शारंगधर जप रे प्राणी जिंहि जपिये हुवै धरम इसो

अतः हे प्राणी।तु विष्णु नाम का जप कर,जिससे तुम्हें सच्चा पुण्य लाभ प्राप्त हो।

चलण चलतैं वास बंसतै जीव जीवंतै काया नवंती सास फुरन्ते किवी न कुमाई ताथे जंवर बिन डसी रे भाई

यदि तुमने अपना चलन चलंते,शक्ति और सामर्थ्य रहते अपने घर एवं गाँव में निवास करते तथा इस शरीर में प्राण रहते, अपने एक-एक सांस के साथ विष्णु भजन रूपी कमाई नहीं की,तो यह निश्चित जानो कि एक दिन तुझ, शुभ कर्म हीन को मौत खा जाएगी।

सुर नर विरमा कोई न गाई माय न बाप न बहण न भाई इंत न मिंत न लोक जणो

मरने के पश्चात जब यम लोक में धर्मराज के सम्मुख जावोगे, तब वहां देवगण,मनुष्य,शंकर-बर्ह्म भी तुम्हारे साख नहीं भरेंगे।कोई तुम्हारे पक्ष में नहीं बोलेगा।उस समय तुम्हारे ये सांसारिक माता पिता,बहन -भाई ,इष्ट-मित्र तथा समाज के अन्य परिचित लोग, कोई काम नहीं आएगा और तुम अकेले वहाँ खड़े खड़े काँपते रहोगे।

जंवर तणा जमदूत दहेला लेखों लेसी एक जणो

वहाँ केवल एक धर्मराज,तुम्हारे इस सारे जीवन का हिसाब पूछेंगे कि तुमने अपने जीवन में क्या शुभ कर्म किए हैं ?अर्थात मृत्यु के पश्चात प्रत्येक प्राणी को धर्मराज के सम्मुख अपने इस पूरे जीवन का हिसाब देना पड़ता है और उस समय सिवाय अपने किए हुए शुभ कर्मों के और कोई मददगार नहीं होता।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
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