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मैं कर भुला माण्ड पिराणी
शब्द की शेष व्याख्या से आगे
जीवर पिंड बिछोवो होयसी ता दिन दाम दुगाणी
जिस दिन यह जीव इस शरीर से बिछुड़ जाएगा,उस दिन यह सारा सांसारिक धन वैभव इसके लिए पराया हो जाएगा।आज जिन संबंधियों एवं धन-दौलत पर इसका विश्वास टिका हुआ है,उस दिन ये सब इसके रती-पाई भी काम नहीं आएँगे।
आड न पैकों रति बिसोवो सीजे नाही ओ पिंड काम न काजू
उस माया से पाई भर या रति भर भी मदद नहीं मिलेगी, धन माया पर किया गया विस्वास काम नहीं आयेगा।जीव का कोई कार्य इन से सिद्ध नहीं होगा।यहाँ तक की यह शरीर भी उस दिन जीवात्मा के काम नहीं आएगा।
आवत काया ले आयो थो जाते सुको जागो
हे प्राणी! यह जीव इस संसार में आते समय तो अपने साथ यह काया लेकर आया था परंतु यहां से जाते समय इसे एकाकी सब कुछ यहां छोड़ कर जाना पड़ेगा।
आवत खिण एक लाई थी पर जाते खिणी न लागों
आते समय तो क्षण भर का समय भी लगा था परंतु, जाते समय तो उतना भी नहीं लगेगा।
भाग परापति करमा रेखा दरगै जबला माघो
जीव द्वारा इस संसार में किए हुए कर्मों के अनुसार ही उसका भाग्य और कर्मफल निर्धारित होते हैं। इस जगत से वैकुंठ में जाने के रास्ते भिन्न भिन्न है परंतु मंजिल एक है।
विरखे पान झड़े झड़ जायला तेपण तई न लागु
पेड़ के पत्ते जब एक बार झड़ जाते हैं,तब वे झड़े हुए पत्ते पुनः उस पेड़ के कभी नहीं लग सकते।
सेतू दगधू कवलज कलियों कुमलावे ज्यूँ सांगू
ऋतु बसन्ती आई और भलेरा सांगू
शरद्ऋतु में शीत के कारण कोमल कलियाँ, हरे पत्ते,सब मुरझा जाते हैं।ठंड से जल जाते हैं, परंतु जैसे ही बसंत ऋतु आती है सारी बनस्पति पुनः हरी-भरी हो कर लहराने लग जाती है।नई कलियाँ नये पत्ते और पुष्प पेड़ों पर आ जाते हैं। परंतु जो गए सो गए,वे कभी लौट कर नहीं आते।
भूला तेण गया रे पराणी तिहि का खोज न माघू
जो यहां से चला गया उसे सब भूल जाते हैं।उसे कोई याद नहीं करता। भ्रम में भटकते हुए जीव जिस रास्ते जाते हैं, हे प्राणी! तुम उस रास्ते को छोड़ उसका अनुसरण मत कर!
विसन विसन भण लइ न साई सुरनर विरमा को न गाई
निरंतर विष्णु-विष्णु का जप करते हुए स्वर्ग की प्राप्ति हेतु विष्णुनाम की कमाई एंव साख अर्जित कर।हे जीव!यदि तूने विष्णु नाम जप की साख नहीं पाई तो सुर,नर, ब्रह्मा कोई भी तुम्हारी गवाही नहीं भरेगा और बिना किसी की साक्षी के तुम्हारे लिए स्वर्ग द्वार नहीं खुलेगा।
तातैं जंबर बिन डसी रे भाई वास वसतैं किवी न कमाई
हे प्राणी!यदि इस देश में,इस संसार में रहते हुए,विष्णु का जप, भजन नहीं किया,शुभ कर्मों की कमाई नहीं की और बिना पुण्य कर्म किए ही जीव को यदि मृत्यु ने अपना ग्रास बना लिया,तो महाकाल के भयंकर यमदूत इसे बहुत दुःख एवं अति कठिन पीड़ाएँ देंगे।
जंबर तणा जमदूत दहैंला ताथैं तेरी कहा न बसाई
उस समय इस जीव का उन दूतों पर कोई जोर नहीं चलेगा।अतः हे जीव! इस देह के रहते विष्णु का नाम स्मरन की पूंजी अर्जित कर, कि मरणोपरांत यम के दूत तुम्हें पीड़ाएँ न दे सकें और तुम सीधे बैकुंठ धाम जा सको।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ
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