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*रिणघटिये के खोज फिरंता सुण सेवन्ता*
नाथपंथी जोगी लोहा पांगल श्री जंभेश्वर का शिष्य बन, रूपा नाम धारण कर धरनोक गांव में एक प्याऊ पर पानी पिलाया करता था।एक समय घास कड़वी काटने वाले कुछ मजदूर किसान रूपा के पास पानी पीने आये और उन्होंने रूपे के साथ छेड़-छाड़ की। उसे ताना दिया कि पहले इतने बड़े महंत,सिद्ध योगी कहलाते थे।अब यहाँ प्याऊ पर पानी पिला रहा है?रूपे को क्रोध आ गया।उसने अपनी सिद्धि के बल पर उन मजदूरों के कपड़े जला दिए। रूपा बहुत क्रोधित हुआ।रुपे के क्रोध से भयभीत वे किसान मजदूर गुरु जंभेश्वर के पास पहुँचे।रूपा भी अपने मन में अशांति होने के कारण गुरु महाराज के पास समराथल पहुँचा। गुरु महाराज ने उस भयभीत मजदूर तथा रुपे को संबोधन देते हुए यह शब्द कहा:-
*रिणघटिये को खोज फिरंता सुण सेवन्ता* *खोज हस्ती को पायो*
हे साधक रूपा सुन!यदि कोई व्यक्ति जंगल में खरगोश के चरण – चिन्ह ढूँढ रहा हो और उसे अनायास ही हाथी के चरण-चिन्ह मिल जाये, तो उसे और क्या चाहिए।जो ढूंढने चला था खरगोश और मिल गया हाथी।तब उससे भाग्यशाली और कौन होगा।
*लूंकडिये को खोज फिरंता सुण सेवन्ता* *खोज सुरह को पायो*
जो लोमड़ी के चरण-चिन्हों का पीछा करते हुए उसे ढूँढ रहा था और गाय के चरण चिन्ह एवं गाय मिल जाए तो उससे अच्छा और क्या होगा? जो लोमड़ी ढूंढ रहा था उसे गाय मिल गई है।
*मोथडिये को गूंढ खणता सुण सेवंता* *लाधो थान सूथानों*
हे साधक!जो मौथ- घास की जड़ें खोद रहा था, उसे एक अच्छे फलदार पेड़ के रूप मैं परमात्मा रूपी खजाना मिल गया।
*रांघडियें को घाट घडंता सुण सेवंता* *कंचन सोनो डायों*
हे सेवक सुन!जो राँगे के बर्तन बना रहा था,उसे खरे सोने के बर्तन बनाने को मिल जाये तो उसे और क्या चाहिए?
*हस्ती चडता गेंवर गुडंता सुणहीं सुणहां* *भूंकत कायों*
यदि कोई व्यक्ति हाथी पर चढ़ा हुआ आराम से बैठा है।हाथी गाँव में से गुजर रहा है,उससे यदि कुत्ते भौंक रहे हैं तो हाथी पर चढ़े व्यक्ति पर क्या असर पड़ता है?
*अर्थात हे रूपा! योग एवं तांत्रिक साधनाओं द्वारा अर्जित तुम्हारी सिद्धियाँ, खरगोश, लोमड़ी, मोथड़ी और रांगे के सदृश अति मामूली और तुच्छ थी, उनकी तुलना में हमने तुम्हें जो विष्णु का नाम जपने और परम तत्व,आत्म-ज्ञान प्राप्ति की राह बताई है,वह तुलनात्मक दृष्टि से हाथी,गाय, सुथान और स्वर्ण के सदृश्य मूल्यवान है ।पहले तुम जिस राह पर चल रहे थे,वह तुम्हें साधारण सिद्धियों और चमत्कार मात्र देने वाली थी और हमने तुम्हें जो विष्णु भक्ति का मार्ग दिखलाया है वह अमूल्य मोक्ष का मार्ग हैं।अतःऐसे अज्ञानी मूर्ख लोगों द्वारा यदि तुम्हारी हँसी उड़ाई जाती है,तो तुम्हारे लिए इनका उसी प्रकार असर नहीं पड़ना चाहिए,जैसे हाथी पर बैठे व्यक्ति को कुत्तो के भौंकने का कोई असर नहीं पड़ता*
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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