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*जुग जागो,जुग जाग पिरांणी*
एक समय समराथल पर विराजमान संत मंडली ने गुरु जंभेश्वर महाराज से प्रार्थना की कि वे उन्हें ऐसा ज्ञानोपदेश दें ताकि उनके ज्ञानचक्षु खुल जावें और वे मृत्यु भय से मुक्त होकर इस संसार सागर से पार जा सके। भक्तों की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
*जुग जागो जूग जाग पिंराणी कांय* *जागंता सोवो*

हे प्राणी!यह जागने की घड़ी है। देखो सारा जुग जाग रहा है। इस कली काल में जब और लोग जाग रहे हैं,तब तुम यह मानव देह पाकर भी अज्ञान की नींद में क्यों सो रहे हो?देखो तुम्हारे सामने कितने ही लोग अज्ञान की निद्रा को त्याग कर ज्ञान की ज्योति के दर्शन कर रहे हैं। तुम यह सब जानकर भी अज्ञान की नींद में क्यों सो रहे हो ।

*भलकै बीर बिगोवो होयसी दूसमन* *कांय लकोवो*

हे भले भक्त!इस जीव का शरीर से बिछुड़ना निश्चित है।जब तुम यह जानते हो, तब फिर अपने इस शरीर रूपी गढ़ में काम, क्रोध,मोह ,मद, लोभ आदि अपने ही दुश्मनों को क्यों छिपा रहे हो? इन्में तुम अपनी देह में शरण देकर अपना ही अहित कर रहे हो।

*ले कुंची दरबान बुलावो दिल ताला* *दिल खोवो*

तुम अपने मन रूपी दरबार को बुलाकर ज्ञान रूपी चाबी से इस शरीर रूपी गढ़ का हृदय रूपी ताला खोलो और इस काया गढ़ में छिपे अपने शत्रु कामनाओं के कीड़ों को निकाल कर बाहर करो।

*जंपो रै जिण जंप्यो जणीयर जपसी* *सो जिण हारी*

हे भक्त जनो।जिस सृजनहार परमात्मा के नाम का जाप,ज्ञानी जन करते आ रहे हैं, तुम भी उसी भगवान विष्णु के नाम का निरंतर जाप करते रहो।क्योंकि जो भी उनके नाम का जाप करेगा, उसके समस्त पाप स्वतः ही पराजीत हो जाएंगे।

*लह लह दाव पड़ंता खेलो सुर तेतीसां* *सारी*

यदि तुम सोच समझ कर इस जीव रूपी शतरंज के खेल में, अपने दाँव लगावो, मोह -माया को त्याग कर हरि भजन का दाँव लगावो तो इस देह त्याग के पश्चात तैतीस कोटि देवताओं के साथ तुम्हारा वास होगा।तुम मनुष्य से देवता बन जावोगे।

*पवण बंधाण काया गढ़ काची नीर छलै ज्यूं पारी पारी बिन सै नीर ढुलैलो ओ पिंड काम* *न कारी*

तुम्हारा यह शरीर रूपी गढ़ प्राण वायु के कच्चे बाँध से बंधा हुआ है। यह वायु का बाँध उसी प्रकार ढह जायेगा, जैसे मिट्टी का बाँध, जल द्वारा पाली पार करते ही टूट कर बह जाता है।पाली के टूटने से जैसे सारा पानी बह जाता है। उसी प्रकार इस शरीर रूपी बंधे की प्राण रुपी मेंढ के ढहते ही यह काया किसी काम की नहीं रहेगी।

*काची काया दृढ़ कर सींचो ज्यूं माली* *सींचौ बाड़ी*

इस नाशवान शरीर रूपी बगीचे को निरंतर विष्णु भजन रूपी जल से सीचते रहो जैसे कोई माली अपनी बाडी को सींचता हैं।

*ले काया बासंदर होमो ज्यूं ईंधन की* *भारी*

इस शरीर में स्थिर तमाम दुर्गुणों एवं पाप प्रवृत्तियों को ज्ञान रूपी अग्नि से उसी प्रकार जला डालो, जैसे लकड़ियों की भारी को आग में जलाते हो।

*सुकरत जीव सखायत होयसी हेत* *फलै संसारी*

सुकृत ही जीव के साक्षी होंगे इस संसार में प्राणी मात्र के प्रति प्रेमभाव ही फलीभूत होता हैं।

*शील सिनाने संजमे चालो पाणी देह* *पखाली*

हे प्राणी!मल-मूत्र त्याग के पश्चात शरीर को जल से धोकर, साफ, पवित्र बनाओ ।नित्य स्नान करो एवं शील संयम से अपने मन तथा विचारों को पवित्र बनाओ।

*गुरू के वचने निंव खिंव चालो हाथ* *जपो जप माली*

अपने सतगुरु के आदेशों के अनुसार चलते हुए दूसरों के प्रति हमेशा क्षमा भाव रखते हुए विनम्रता का व्यवहार करो। अपने हाथों से विष्णु नाम की माला जपते रहो।

*वसत पियारी खरचो क्यूं नांही किहिं* *गुण राखो टाली*

अपने मन से मोह और लालच को त्याग कर अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को दूसरों को देते हुए एवं अपना रुपया पैसा खर्च करते हुए जरा भी कंजूसी मत करो। यह धन दौलत, ये सारी प्रिय वस्तुएँ यही कि यहीं रह जायेगी।जब जीव इस देह को छोड़ेगा, तब यह तुम्हारे किसी काम की नहीं रहेगी।

*खरचौ लाहो राख्यै टोटो बिबरस जोय* *निहाली*

इन सांसारिक वस्तुओं को, धन दौलत को खर्च करने में तुम्हें लाभ है और इन्हें संजोकर रखने में तुम्हें घाटा ही घाटा है। जरा सोच कर देखो,यदि तुमने इन वस्तुओं को खर्च करके खत्म कर दिया, तो तुम्हारा इनसे मोह बंधन कट जायेगा।अन्यथा मरते समय तुम्हारे प्राण इन्हीं में अटके रह जायेंगे।

*घर आगी इत गोवल वासो कुड़ी आधोचारी*

जीव का वास्तविक घर तो आगे वैकुण्ड में हैं यहाँ इस संसार में तो गोवलवास मात्र हैं।बैकुण्ठ धाम वासी आत्मा का इस शरीर एंव संसार में रहना एक झूठा आधोचार है ।

*आज मुवा कल दुसर दिन है जो कुछ* *सरै सो सारी*

जो शुभ कार्य करना है,उसे अभी आज ही कर लेना चाहिए क्योंकि देह त्यागने के बाद तुम्हारे पास कर्म करने का कोई साधन नहीं रहेगा।अच्छे या बुरे कर्म करने का एकमात्र साधन यह स्थूल शरीर ही है।

*पीछे कलीयर कागा रोलो रहसी कुक* *पुकारी*

इस शरीर को छोडऩे के पश्चात पीछे केवल मात्र रोना पीटना व कोवों की कावं कावं शेष रह जाऐगी।

*ताण थकै क्युं हारयो नांही मुरखा अवसर* *जौले हारी*

हे प्राणी!तुमसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा जो अपने पास मुक्ति पाने का साधन और शक्ति रखते हुए इस जीवन को व्यर्थ के कार्यों में बिता रहे हो ।यदि तूने इस मानव जीवन को व्यर्थ में खो दिया तो फिर मुक्ति पाने का और कोई सहारा तुम्हारे पास नहीं रहेगा।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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