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*जो नर घोडे चढै पाघ न बांधै*
एक बार समराथल धोरे पर विराजमान जाम्भोजी से संत मंडली के लोगों ने योग तथा ज्ञान के विषय में जानने की जिज्ञासा प्रकट की। गुरु महाराज ने अत्यंत प्रसन्न भाव से समझाया कि शुभ कर्म करने तथा हरीभजन से जब मनुष्य का काम, क्रोध एवं अहंकार नष्ट होता है तभी उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है।इसी संदर्भ में श्री जंभेश्वर महाराज ने यह शब्द कहा:-
*जोर नर घोड़े चढ़े पाग न बांधे तांकी करणी कौन विचारूं*

हे जिज्ञासु!जो व्यक्ति घोड़े पर तो चढ़ता है किंतु घोडे की पीठ पर अच्छी पकड़ के लिए काठी में पागडे नहीं बांधता, उसकी करनी का क्या विचार किया जाए अर्थात जो मनुष्य शरीर रूपी घोड़े पर तो सवार होता है परंतु मन इंद्रिया पर कोई नियन्त्रण नहीं रखता है।ऐसे लोगों का जीवन विचारणीय नहीं दयनीय हैं।

*शुचियारा होयसी आय मिलसी करड़ा दोजग खारूं*

इस संसार में जो पवित्र हृदय, शांत स्वभाव और विनयशील होगा,वह हमारी शरण में आकर हमें मिल जायेगा और जो अपने घमंड में अकड़ा रहेगा,उसे अति भयंकर नर्क में अपने कुकर्मों के कटुफल खाने पड़ेंगे ।

*जीव तड़े को रिजक न मेटुं मुंवा परहथ सारूं*

जो भी हमारी शरण में आ गया, हम उसके जीते जी उसे धन दौलत,रोजी-रोटी,घर परिवार से अलग नहीं करते और मरने के पश्चात हम स्वयं अपने हाथों,उसे मुक्ति देते हैं।

*हाथ न धौवे पग न पखालै सुध बुध नहीं गिवारूंम्हें पहराजा सुं कौल ज लियौ नारसिंध नर काजूं*

यहाँ इस मरुस्थल में ऐसे नासमझ,मलीन लोग, जो कभी अपने हाथ पाँव तक नहीं धोते,ऐसे अज्ञानी लोगों को मुक्ति देने हेतु,हम यहाँ इसलिए आए हैं कि हमने अपने नरसिंह अवतार में इन प्रहलाद पंथी जीवो को मुक्ति देने का वचन दिया था।

*जुग अनन्त अनन्त बरत्या म्हे शुन्य* *मंडल का राजु*

अपने भक्तों के उद्धार हेतु ही हम यहाँ अवतरित हुए हैं,अन्यथा हम तो शून्य मंडल के राजा हैं। अन्नत, अन्नत,असंख्य अपार युगो तक, हमने महाशून्य में वास किया है।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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