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शब्द नं 91
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*छंदे मंदे बालक बुद्धे*
फलोदी शहर के राव हमीर के दरबार में एक राजपूत बाजीगर आया तथा उसने राव को अपनी कलाबाजी का खेल दिखाने के लिए अपनी स्त्री को राव हमीर के सुरक्षित निवास स्थान में रखने को कहा तथा बतलाया कि वह सूर्य की किरणों के सहारे आकाश मंडल में जा रहा है। राव ने उसकी स्त्री को निवास में भेज दिया। वह बाजीगर एक कच्चे धागे को ऊपर फेंक कर खुद उसके सहारे आकाश में चला गया। कुछ समय पश्चात उसका शरीर टुकड़े-टुकड़े होकर नीचे आ गिरा। यह दृश्य देखकर सब चकित रह गये। इतने में उसकी स्त्री निवास में से बाहर आई और उसने कार्ड मंगवाई तथा वह उसने लकडियाँ मँगवाई तथा वह अपने पति की उस मृत देह के साथ चिता में जल गई। वह सब कार्य राव हमीर ने अपनी देख-रेख में करवाया। इतने में ही बाजीगर बाहर से आया और हमीर से अपनी पत्नी को माँगा। हमीर ने बतलाया कि वह तो तुम्हारी मृत देह के साथ सती हो गई। बाजीगर ने हमीर पर व्यंग्य करते हुए कहा कि आप की नियत खराब हो गई है।अपनी पत्नी को आवाज दी।वह अंदर से बाहर आ गई।यह सब अनोखा चमत्कार देख कर राव हमीर अति प्रसन्न एवं प्रभावित हुए तथा उस बाजीगर को ईनाम दिया। गुरु जंभेश्वर महाराज ने अपने योग बल से उस सारी घटना को देख कर बड़े जोर से हुंकारा भरा ‘हाँ’ जाम्भोजी के हुंकार को सुन समराथल पर बैठे जमाती लोगों ने जब उसका कारण पूछा,तब गुरु महाराज ने उक्त घटना क्रम को बतलाते हुए जमाती जनों को यह शब्द कहा:-
*छंदे मंदे बालक बुद्धे कूड़े कपटे रिधे* *न सिधे*
हे भक्त जनो! इस प्रकार के छल -छदम एवं बाजीगिरी के चमत्कारों से केवल वे ही लोग प्रभावित होते हैं, जो नासमझ है, जिसमें बाल-बुद्धि है। जो बालक के समान भोले-भाले तथा चंचल है।इस प्रकार के झूठे जादुई कपट पूर्ण क्रिया-व्यापारो में कोई रिद्धि- सिद्धि नहीं है।
*मेरे गुरू जो दीन्ही शिक्षा सरब आलिंगण* *फेरी दीक्षा*
मेरे गुरु ने सदुपदेश देकर यह दीक्षा दी है कि समस्त सांसारिक विषय वासनाओं से मन को हटाना चाहिए।यह शिक्षा सर्व पापों का नाश करने वाले सत्य ज्ञान का संदेश हैं।
*जाण अजाण बहिया जब जब सरब* *आलिंगण मेटे तब तब*
जाने अनजाने जब कभी यह जीव सांसारिक कृत्यों में उलझता हैं, उस समय सत्-गुरु के ज्ञान का संदेश इसे कुकृत्यों से बचा कर पापों का नाश कर देता हैं।
*ममता हसती बांध्या काल काल पर* *काले परसत डाल*
जो सत्-गुरु का शिष्य है, वह अपने मोह- माया रूपी हाथी को मृत्यु रूपी पेड़ से बाँध कर रखता है,निरंतर उसे इस बात का ध्यान रहता है कि यहाँ इस संसार में मेरा कुछ भी नहीं है। सब कुछ मौत का भोजन है।काल के पेड़ से बंधा हुआ ममता का हाथी समय के साथ फैलती हुई कामनाओं की शाखाओं को नहीं छू पाता।उसका मन लालसाओं की पूर्ति के लिए नहीं भटकता।
*ध्यान न डोलै मन न टलै आहनिस ब्रह्म ग्यान उच्चरै*
ऐसे सच्चे गुरु का शिष्य,निरंतर अपनी आत्मा के ध्यान में स्थित रहता है।उसका मन कभी चंचल नहीं होता।वह रात दिन ब्रह्म ज्ञान पर टिका हुआ उसी का उच्चारण करता रहता है।
*काया पत नगरी मन पत राजा पंच आत्मा परीवांरू है*
यह मानव शरीर एक ऐसा नगर हैं कि मन इसका राजा है आत्मा और पंचेइंद्रिया इसका परिवार है।
*कोई आछै मही मंडल सुरा मन राय सुँ झुंझर रचायले अथका थगायले अबसा बसायलै*
यह मन रूपी राजा,इतना बलशाली, शूरवीर एवं अपाराजेय योद्धा है कि इस पृथ्वी पर रहने वाला ऐसा और कोई दूसरा वीर नहीं है जो इस मन रुपी राजा से युद्ध कर सके। इसे पराजित कर सके। इसके सम्मुख बड़े-बड़े ऋषि मुनि,तपस्वी योगी पराजित हुए हैं।इसे हराना तो दूर रहा, इस निरंतर गतिमान मन को कोई थका कर विराम तक नहीं दे सकता।यह चंचल मन जो निरंतर घूमता रहता है,इसे क्षण भर भी कोई एक जगह टिका कर नहीं रख सकता।
*आनबे माघ पालले सत सत भाषत है गुरूरायों तेरा जरा* *मरण भो भागुं*
परम गुरु परमात्मा का यह सत्य संदेश है कि इस चंचल मन को यदि कोई अपने वश में कर ले, इसे आत्मा के नियंत्रण में रखकर इसे पालतू बना ले,तो यह जीव हमेशा हमेशा के लिए बुढ़ापे और मौत के भय से मुक्त होकर, मोक्ष- पद को प्राप्त कर सकता है।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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