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यह गुरू जाम्भोजी का अवतार स्थल हैं । यह मुकाम से लगभग 10-20 कि.मी. दक्षिण में और नागौर से 30 कि.मी. उतर में है। गांव में जिस कुएं के पास जाम्भोजी ने सबदवाणी का प्रथम सबद कहा था वह गांव में हैं और अब बंद पड़ा हैं। इसी कुए पर राव दुदा जी ने जाम्भोजी को चमत्कारिक ढ़ंग से पशुओ को पानी पिलाते हुए देखा था। वर्तमान साथरी जाम्भोजी के घर की सीमा में हैं। यहीं पर एक छोटी सी गुमटी हैं। कहते हैं कि यहीं पर जाम्भोजी का जन्म हुआ था। सथरी में रखी हुई खड़ाऊ की जोड़ी और अन्य सामान गुरू जाम्भोजी का बताया जाता है। कुए एवं साथरी के बीच आज भी वह खेजड़ा मौजूद है इसी खेजड़े के राव दुदा ने अपना घोड़ा बांधा था। यहीं पर जाम्भोजी ने अपने पशुचारण – काल में राव दुदाजी को ’परचा ’ दिया था। राव दुदाजी की प्रार्थना पर गुरू जाम्भोजी ने उन्हें मेंड़मे प्राप्ति का आशीर्वाद और एक काठ-मूठ की तलवार दी थी। सम्भराथळ पर रहना प्रारम्भ करने से पूर्व तक जाम्भोजी पीपासर में रहतें थें। यहां जन्माष्टमी को मेला लगता हैं। मुकाम में लगने वाले मेलों के समय भी लोगइस पवित्र धाम के दर्शन करने पहुंचते हैं।
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