सुगरा प्रथा क्या है?

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Renu Bishnoi

किसी अन्य मत/सम्प्रदाय/पंथ/धर्म के अनुयायीयों को अपने मत/सम्प्रदाय में दीक्षित करने की परम्परा को नाम-दीक्षा, नाम-दान, नाम-लेना आदि के नाम से जाना जाता है। इस प्रक्रिया में एक गुप्त नाम/मंत्र किसी डेरे, आश्रम, मठ, पीठ आदि से संबंधित डेरा प्रमुख, धर्म-गुरु, महंत, पीठाधीष आदि द्वारा उस व्यक्ति को दिया जाकर अपने पंथ में शामिल कर लिया जाता है । और इस विधि से दीक्षित वह व्यक्ति अपने पूर्व मत के धर्म सिद्धान्तों का परित्याग कर उस नवीन मत एवम नवीन गुरु से जुड़कर उस मत से संबंधित धर्म-नियमों, आचार-संहिता, पूजा-विधान को अपनाते हुए उनका पालन शुरू कर देता है।

इसी प्रकार की एक प्रथा बिश्नोई समाज में सुगरा संस्कार के नाम से प्रचलित है। जिसमें हमारे समाज के कुछ विद्वान संत-महात्माजन, सुगरा मंत्र (ॐ शब्द गुरु सुरति चेला) का उपयोग करते हुए समाज को सुगरा करते है, इसके बदले में उन्हें अपने उस नव-दीक्षित शिष्य, शिष्या से गुरु-दक्षिणा के रूप में नकदी, दांत-घसाई, पग-फेरो भी प्राप्त होती है।

यदि इस सुगरा प्रथा का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते है कि यह संस्कार एक मार्केटिंग, रूढ़ि से बढ़ कर और कुछ नही है। अब आप सोचेंगे, कैसे? तो आईये जानते है। 
जैसा कि हम सभी को विदित है कि बिश्नोई पंथ में जन्म लेने मात्र से कोई बिश्नोई नही होता अपितु उसे पाहळ देकर बिश्नोई बनाया जाता है। किसी बालक के जन्म के 30 दिन पश्चात उसे गुरु जम्भदेव के दैवीय 120 सब्दों, पाहळ मंत्र से अभिमंत्रित पवित्र पाहळ पिलाकर, उसका मुंडन कर उसे बिश्नोई पंथ में दीक्षित किया जाता है। और इस प्रकार जाम्भोजी का पाहळ पीते ही बालक के नाम के साथ बिश्नोई शब्द जुड़ जाता है। साथ ही उसके गुरु सदैव के लिये जम्भदेवजी बन जाते है। ओर गुरु जम्भदेव को गुरु धारण करने के उपरांत भविष्य में यदि वह व्यक्ति किसी अन्य गुरु से दीक्षा मंत्र, नाम लेता है तो उसका गुरु जम्भदेवजी से संबंध-विच्छेद हो जाता है क्योंकि वह व्यक्ति सुगरा-मंत्र के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को अपना गुरु बना कर उस से संबंध स्थापित कर लेता है। जिस सुगरा मंत्र का नाम लेकर सुगरा बनाया जाता है, उस मंत्र की प्रथम पंक्तिया (शब्द गुरु सुरति चेला) तो स्वयं यही प्रमाणित करती है कि गुरु जम्भदेवजी द्वारा उच्चारित शब्द ही हमारे गुरु है एवम जो व्यक्ति उन शबदो की शिक्षाओं के अनुरूप आचरण करता है वही व्यक्ति गुरु जम्भदेवजी का चेला/शिष्य है। क्या फिर भी हमें किसी अन्य माध्यम की आवश्यकता रह जाती है? अब विचारणीय प्रश्न यह खड़ा होता है कि गुरु जम्भेश्वर देवजी की शिक्षाओं, 29 धर्म नियमों में क्या कमी रह जाती है जिसे वर्तमान समय के कुछ संत-महात्माजी एक सुगरा मंत्र देकर पूरी करने का प्रयास करते है?

हमें सतगुरु श्रीजम्भदेवजी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को गुरु बनाने की आवश्यकता है अथवा नही? इस प्रश्न का उत्तर यदि शब्दवाणी में ढूंढे तो हम यह पाएंगे-

सतगुरु मिलियो सतपंथ बतायो भ्रांत चुकाई अवर ना बुझबा कोई/शब्दवाणी/40
अर्थात हे लोगों आपको इस सम्पूर्ण चराचर जगत के निर्माता आदि विष्णु स्वयं सतगुरु जाम्भोजी के रूप में मिले है। जिन्होंने बिश्नोई सतपंथ का मार्ग चलाया है। आपकी समस्त शंकाओ, भ्रांतियों को शब्दवाणी की शिक्षाओं के माध्यम से दूर कर दिया है। आपको अब भविष्य में किसी भी व्यक्ति को गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नही है। परन्तु हां, किसी सहज, शीलवान, संयमी, सबदवाणी के अनुरूप आचरणकर्ता, संतोष धारण करने वाले, लोभ, मोह-माया, अभिमान, क्रोध, काम से रहित एवम महिलाओं से एक सम्मानजनक दूरी बना कर रखने वाले तथा धन या संपत्ति संग्रह नही करने वाले साहिल्या गुरु से नाम-दीक्षा के स्थान पर शिक्षा,ज्ञान लेने में कोई बुराई नही हैं।

गुरु जाम्भोजी एक अन्य शब्द में कहते है कि *गुरु आसन समराथले कहे सतगुरु भूल मत जाइयो पड़ोला अभे दोजखे*/शब्दवाणी/90 इस शब्द में गुरुदेव ने स्पष्ठ रूप से चेतावनी देते हुए कहा है कि गुरु का आसन तो युगों-युगों के लिये केवल समराथल पर ही विराजित रहेगा। आप यदि विचलित होकर किसी कलयुगी कु-गुरु के चक्कर मे पड़ोगे तो वो आपको नरक में ही धकेलेगा। 
(शब्दवाणी_अपनाओ_अज्ञान_भगाओ )
“विसंन विसंन तु भण रै प्राणी”

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *