जाम्भाणी संत सूक्ति

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” तुंही सांम सधीर,
धर अंबर जण धरियो।
तरे नाम गजराज,
ध्रुव पहळाद उधरियो।
परीखत अमरीख पर,
भगतां पर पाळे।
संखासर संघार,
वेद तैं ब्रह्मा वाळे।
सुर परमोधण तारण संतां,
वरण तूझ अवरण वरूं।
उबारियो अलू आयो सरण,
जै ओं देव झांभेसरूं।
-(अल्लूजी कविया)

भावार्थ

‘ धरती और आकाश को धारण करने वाले हे भगवन!आपके नाम के प्रताप से गजेन्द्र, ध्रुव, प्रहलाद,परिक्षित,अंबरीश तर गए।असुरों का संहार करने,ब्रह्माजी को वेद प्रदान करने, देवताओं को आल्हादित करने एवं संतों का उद्धार करने वाले भगवन इस बार आप जम्भेश्वर अवतार के रूप में आए हैं, मैं आपकी शरण हूं,मेरी पुकार सुनो। हे देव!कृपा करके मुझे उबार लो।’

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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