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पंच आत्मा –शरीर रूपी नगर मे पांच ज्ञानईंद्री पांच कर्मईंद्री पांच प्राण इन सब की त्रिपुटी मे मन राज करता है ।राजा व राज्य का कार्यभाल सब मंत्री के हाथ होता है ।आत्मा पंच–मंत्री है यह सब राजा मंत्री का परिवार है।।
।।💐है कोई आछे मही मंण्डल शूरा ।मनराय सूं झूझ रचायले ।।अथगा थगायलले अबसा बसायले ।।💐
हे भग्त जनो ।कोई शूरवीर ही मही–पृथ्वी पर मृत्यू लोक मे एसा कर शक्ता है इस मन रुपी राजा को हरा कर सब को अपने आधीन करले मन के साथ युद्ध मे जो विजई रहा वही(शूरस सूरा शरूं)शूर है वही वीर पुरुष है।।अथगा;-थाग पूर्णत्या भैद सही पता या ज्ञान प्राप्त करना।।अबशा–जो बसमे ना हो शके ।जो किसी तरह काबू ना हो पाए जो आज्ञा मे ना रहे उसे वशीभूत करना ।।अणभै–प्रतक्ष प्रमाण जो जेसा है वेसा जान के पहचान के प्राप्त कर लेना ।।
।।💐सतसत भाषत-भाखत गुरु रायों।जरा मरण भय भागूं।।💐
हे उत्तम जिज्ञासु लोगों सत्य आत्मा के संकल्प से सत्य प्रमात्मा को जाना जाता है भाषत–एसा गुरु का।आदी पुरुष का वचन है आज्ञा है आदि की यही परम् परा है मेरे गुरु ने मुझे बताया में आप को बता रहा हूं ।इस योग इस साधन को करने से जीव कभी गर्भ मे नहीं लटकता–आता है सुक्ष्म सृष्टी ब्रह्माण्ड मे जंहा इछा हो स्वतंत्र विचरण-भ्रमण करता है महा प्रलय मे निर्भय रहता है ।।अत:आप इस झूटे छंदो के झूठे दिखावे के झुठे प्रलोभन देने वालो पर विश्वास ना करके मेरे बताए कर्त्वय को अपनावो कृत कृत्य हो जावोगे ।।
बर्फानी
💐।।ॐ श्री महा विश्नवै नम:
श्री जंम्भेश्वर जी के पास काफी बङी तेदाद मे भग्त मंण्डली आई उन मे कुछ भग्तों ने प्रशन किया कि हे देव बहुत से लोग जीते या मरे लोगों के महिमा मण्डित छंद गा गा कर बहुत चम्मतकार की बाते व गुण गान करते हैं सो आप हमे समझावें
💐छंदे मंदे बालक बुद्धे ।कूङे कपटे रिद्धे ना सिद्धे।💐
हे श्रद्धालू लोगो ध्यान से सुनो छंद –यह ऐक काव्यकार की कला है ।जो धार्मिक ।राज नितख।वअध्यात्मिक ।तीन प्रकार से होती है।ये समय देस काल के अनुसार छंदवद होती है ।चोथी काल्पनिक होती है जो आप पूछ रहे हो ।
छंद –कवि की कल्पना।मंद–हल्का ।घटिया बिना सार तत्व के व्यर्थ का लोगों को गा बजा रीझाने ऐक हुनर–कला है ।।बालक का मन बहलाने के लिए वृद्ध दादा दादी अनेक कहानी पहेलि गाथा कह कर मनोरंजन करते हैं।ऐसे ही ये लोग सिर्फ दुनिया का मनोरंजन-टाइम पास करते हैं।।
चम्मतकार की बात कूङ–छूठ -१००-प्र झूठ बोलते हैं।झूठ कहते हैं। जिस के परिणाममे ना तो सिद्धी–युक्ती सच्चाई नहीं ।।
।💐।मेरे गुरु जो दिन्ही शिक्षा।सर्व अलिंगण फेरी दिक्षा।।जां अजाण बहिया जबजब ।सर्वअलिगण मेट्या तबतब।।💐
हे निष्पाप लोगो मेरे गुरु–प्रमात्मा-आदि पुरुष ने मानव शरीर धारी जीव को यही ऐक मात्र शिक्षा–प्रेरणा –आज्ञा दी कि यह तन पाकर सभी प्रकार के बंन्धनो से निवृत होना है। जैसे अज्ञान अविद्या भ्रांति अध्यास।प्रा रब्ध संचित काम्य कर्म।देहिक देविक भोतिक ताप। ये सब अलिंण–दुख अज्ञान जनित है इन्है इसी तन को पाकर मिटाया जा शक्ता है अन्य शरीर से नहीं ।।
।।💐ममता हस्थी बंध्या काल ।काल पर काल पफरत
टाल ।।ध्यान डोले मन न टले।अह निश ब्रह्म ज्ञान उचरे।।💐
ममता –मैं अंहकार का अज्ञान है।ये ही इस संसारी जीव की शक्ती है।मुझे जबजब मन राजा ने बांधना जकङना चाहा ।तबतब समय का सद् प्योग करके अंहकार बंन्धन से हटाया तत्व् चिंतन मे लगाया काल पर काल–श्वांस प्रश्वांस मे नाद की रसी बंन्धन मे जकङा ।इस साधन के करने वाला हर साधक सफलता प्राप्त कर लेता है ।मन ब्रह्म के रूप मे स्थित सब कुछ विस्मृत हो जाता है।ध्यान न डोले–संसार की खटपट से विचलित नहीं होता ।मन ना टले–जीव-मन को वो तत्व रस वो आनंन्द वो सुख शांती मिलती है दुसरी तरफ भूल कर भी स्वपन मे भी नहीं जाता ।।
💐अहनिश ब्रह्म ज्ञान उचरे।काया पति नगरी ।मन पती राजा ।।पंच आत्मा परीवारुं ।।💐।।
हे श्रोता गणों मेरे गुरु के बताए इस तत्व योग साधन को जो भी पूर्ण रूप से अपनाएगा उसे अहनिस–इसप्रकार ब्रह्मज्ञान की उचरे–प्राप्ती होगी ।।काया पति –शरीर रूप ये नगरी -महानगर है ।।इस का राजा मन है ।पंच–मुख्य कार्य करता आत्मा है ।
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