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” पारब्रह्म से सुं हुइ पिछाण्य,
निरभै होय भेंट निरवाण।
पाठ पढूं परसण होय पीव,
आवागवण न आवै जीव।
-(केसोजी)
-भावार्थ-‘साधक को जब परमतत्व की पहचान हो जाती है तो वह मुक्ति प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है।उसे परमात्मा के अलावा किसी दूसरे तत्व को जानने की इच्छा नहीं रहती,उसका प्रत्येक कर्म अत्यंत पवित्र होता जिससे परमात्मा प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और जीव का आवागमन मिट जाता है।
-(जम्भदास)
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