
क्या 21वीं सदी के उपभोक्तावाद और पर्यावरण संकट के बीच, 500 साल पुराने 29 नियम आज भी प्रासंगिक हैं? गुरु जंभेश्वर ने 15वीं शताब्दी में राजस्थान की मरूभूमि में यह सत्य उद्घाटित किया कि प्रकृति से छेड़छाड़ का अंतिम परिणाम केवल विनाश है। उनके द्वारा दिए गए 29 सिद्धांत, जिनमें वृक्षों को काटना और जीवों को मारना वर्जित है, केवल धार्मिक उपदेश नहीं थे, बल्कि वे एक कठोर पारिस्थितिक अनिवार्यता थे। आज जब जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक बहस का विषय है, तब बिश्नोई समुदाय का यह सिद्धांत—’खेजड़ी न काटो, जीव न मारो’—एक वैश्विक नीति का आधार बन सकता है। यह हमें सिखाता है कि समृद्धि का मार्ग प्रकृति के विनाश से नहीं, बल्कि उसके संरक्षण से होकर गुजरता है। अंतिम सत्य यह है कि जो समुदाय सदियों पहले प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठा चुका था, वही आज मानवता को बचाने का ब्लू प्रिंट दे रहा है।
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