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शैया पर लेटा देख कलेजा भर आया। जब दर्शन करके बाहर निकला, जहन में एक सवाल उठा कि अगर अब कोई जरूरत पड़ी तो हमारी गारंटी कौन लेगा?
बिश्नोई रत्न अहसान फरामोश नहीं थे और वे हमेशा आदमपुर की चुनाव सभाओं में कहा करते थे मनुष्य को अहसान फरामोश नहीं होना चाहिए, अहसान फरामोश आदमी कृतघ्न होता है और कृतघ्न के देखने मात्र से पाप लगता है। वे हमेशा एक बिश्वे अहसान को बिलायंत से उतारते थे। एक महत्वपूर्ण घटना जिससे सारा देश वाकिफ है। राज्यसभा का वह चुनाव जिसमें सत्ता पक्ष से पंडित रामजीलाल और विपक्ष में श्री औम प्रकाश जिंदल। पंडित रामजीलाल की पहचान, चौधरी भजन लाल के हर पल का साथी और श्री जिंदल उद्योग जगत की वो महान हस्ती। चौधरी साहब को भय था कि इस उद्योग जगत के सम्राट के हाथों कहीं रामजीलाल मार न खा जाए। अत: उस साथी को मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल ने खुद चुनावी ऐजेंट बनकर एक वोट से जिताया। शायद यह देश के इतिहास में पहली और आखरी घटना होगी कि एक सामान्य आदमी का चुनावी ऐजेंट कोई मुख्यमंत्री बना हो। तभी तो पहले कहाना वो शक्स एक बिश्वे का अहसान बिलायन्त मारकर उतारते थे।
जीवन के हर क्षेत्र में तहलका मचा देने के बाद शायद चौधरी साहब के दिल में कोई इच्छा शेष नहीं रही थी। उन्होंने जीवन के सभी सोपान प्राप्त कर लिए थे। 1996 के मुख्यमंत्री काल के बाद वे जो कुछ भी कर रहे थे, संभवत: वो अपने राजनैतिक उत्तराधिकारी की मजबूती के प्रयास थे। वे अपने सुपुत्र कुलदीप बिश्नोई के लिए वो राजनैतिक मैदान तैयार कर रहे थे जो भविष्य में कभी छोटा न पड़े। वे एक जिम्मेवार बाप की भूमिका निभा रहे थे और उन्होंने एक बहुत बड़े मैदान में अपनी उपस्थिति में कुलदीप को उतारा और सभी दांव-पेच राजनीति के बताकर विजयी भी बनाया। वो चुनाव था भिवानी लोकसभा का चुनाव, जिसमें दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के लालों को पराजित किया। चौधरी साहब की इच्छा पूरी होने की पुष्टि हमें उनके उस भाषण से होती है जो उन्होंने 1996 में महम चौबीसी में एक जनसभा में कही थी। महम के विधायक आनन्द सिंह दांगी को किन्हीं कारणों के चलते 1995 में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 1996 में उस केस का निपटान होने के बाद चौधरी साहब ने उन्हें दोबारा मंत्री पद सौंपा। इस खुशी के अवसर पर दांगी ने महम में एक जनसभा का आयोजन किया और चौधरी साहब मुख्यातिथि की हैसियत से शरीक हुए। उन्होंने विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने जिंदगी में उन बुलन्दियों को छुआ जो मैंने जहन में पाली थी और अब मेरी कोई इच्छा शेष न रही। यहां तक कि मुझे चौथी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा भी नहीं रही।
जीवन के आखिरी पड़ाव में भी चौधरी साहब ने जीत का बिगुल बजाया। लोकसभा चुनाव 2009, अपने गृह क्षेत्र हिसार लोकसभा क्षेत्र से पूरे क्षेत्र में मात्र तीन मिनट भाषण देकर विरोधियों को चित किया। वृद्धावस्था के चलते हांसी शहर में मात्र तीन मिनट बोले और आगे चल दिए। फिर भी जनता ने उन्हें सबसे काबिल नेता समझकर अपनाया। उनकी काबलियत के चर्चे आज भी जनता की जुबान पर हैं।
पूरा जीवन राजनैतिक क्षेत्र में तहलका मचाने के बाद अब चौधरी साहब इस दुनिया से विदाई लेना चाहते थे और वे इस घड़ी में भी करिश्मा करते देखे गए। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने जब धोक धीरे पर बैठे अपने भक्तों को जीवन का सार बतलाते हुए कहा था कि मेरा लक्ष्य मात्र जीवों को जुगती और मुवों को मुक्ति देने का है। जीवनकाल मनुष्य ठीक प्रकार से बिताए और मरने के बाद मुक्ति हो जाए अर्थात् बार-बार जन्म लेने के दु:ख से पीछा छूट जाए। चौधरी साहब ने अपना जीवन युक्तिपूर्वक जीया था इसलिए वे यहां के राजा थे और वहां के भी राजा बने हैं। जो जीव स्थाई शांती में चला गया उसके लिए तो आत्म शांति की कामना भी तुच्छ लग रही है। तभी तो मैंने कहाना हर शब्द बौना लगता है उस फरिश्ते की तारीफ में।
मैं उस माँ को सलाम करना चाहता हूंजिसने अपनी कोख से इस महान सपूत को पैदा किया।
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