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चौधरी साहब ने इस समझौते से नाराज होकर मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। चौधरी भजन लाल जी यदि सत्ता के भूखे होते तो चुप रहकर मुख्यमंत्री बने रह सकते थे।
1991-96 के मुख्यमंत्रीत्व काल में चौधरी साहब की राजनैतिक शक्ति बहुत बढ़ गई थी। देश व पार्टी के पहली पंक्ति के नेताओं में उनकी गिनती होने लगी। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव उनकी मजी के खिलाफ कोई फैसला नहीं लेते थे। चौधरी साहब पर चाहे क्षेत्रवाद के आरोप लगे हों पर समय-समय पर उन्होंने इसे झुठलाया था। 1995 में हरियाणा भयंकर बाढ़ की चपेट में था। चौधरी साहब ने प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव से मिलकर 585 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता लेकर प्रदेश के किसानों को प्रति एकड़ तीन हजार रुपये का मुआवजा दिया। यह बात जाट बाहुल्य क्षेत्रों में आज भी लोगों के मुंह से सुनी जा सकती है।
सामाजिक क्षेत्र में चौधरी भजनलाल की सराहनीय भूमिका का कोई पर्यायवाची नहीं है। इस योगदान से प्रभावित होकर समाज ने उन्हें बिश्नोई रत्न की उपाधि से अलंकृत किया। 60-70 के दशक में समाज की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी। आपसी मतभेद इतना बढ़ गया था कि बिश्नोई बाहुल्य क्षेत्र अशांत इलाका माना जाने लगा। तब यह शख्स समाज के लिए फरिश्ता बनकर आया। पूरी ईमानदारी के साथ लोगों में भाईचारा कायम करने के प्रयास शुरू किए और बहुत से तबाह होते घरों को बचाया। करिश्मा उस वक्त हुआ जब समाज के शिक्षित युवकों को रोजगार देकर दुनिया की तरक्की से अवगत कराया। फिर क्या था, जल्दी ही समाज की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी। पता नहीं इस फरिश्ते ने क्या जादू किया कि हर बिश्नोई में भजनलाल का चेहरा नजर आने लगा और तरक्की की गाड़ी छिंकारे मारने लगी। युवा पीढ़ी में ऐसी जान फूकी की समाज की नई पहचान बनने लगी। गांवों में प्रतिभाएं अंगड़ाई लेने लगी। युवा पीढ़ी देश व प्रदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों में अपना लोहा मनवाने लगी। अत: समाज शिक्षित समाज के रूप में उभर कर सामने आया।
धार्मिक दृष्टि से चौधरी भजनलाल जी ने समाज को जो दिया, उसे सदियों तक नहीं भुलाया जा सकता। गुरु महाराज के नाम पर ऐसे प्रतिष्ठान, शिक्षण संस्थान आदि बनाए जो जम्भेश्वर भगवान के प्रति आस्था में मजबूती प्रदान करते हैं। इस कड़ी में जम्भेश्वर संस्थान भवन, दिल्ली, गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार, बिश्नोई धर्मशाला पंचकुला व कुरुक्षेत्र और अनेक संस्थान जो पूरे भारत वर्ष में हैं, को बनवाने में उनकी अग्रणी भूमिका रही। ऐसे सुकृत स्वर्ण अक्षरों में लिखने योग्य हैं। जम्भेश्वर संस्थान की जमीन लेने में कितनी बाधाएं आई, चौधरी साहब ने इसका शिलान्यास करते वक्त जनसमूह को इसकी जो जानकारी दी थी उसका उल्लेख अवश्य करूंगा। संस्थान के लिए जमीन चिह्नित कर ली गई और समाज की ओर से सरकार की मंजूरी के लिए आवेदन भेजा गया। सरकार ने यह आवेदन इस आपत्ति के साथ लौटा दिया,चूंकि इस स्थान के निकटमैटकाम हाऊसहै जहां देश की रक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं, कहीं कोई फैसला लीक न हो जाए और देश की सुरक्षा को खतरा न पड़ जाए, क्योंकि किसी सामाजिक संगठन को जगह देने से उनके यहां सामाजिक समारोह होंगे और भारी संख्या में जनसमूह इकट्ठा होगा। अत: यह जमीन नहीं दी जा सकती।
चौधरी भजनलालजी ने इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी से मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि बिश्नोई समाज कभी देश के प्रति गद्दार नहीं रहा। अगर आप चाहें तो 500 साल का पूरा इतिहास खंगाल सकते हैं। हम हमेशा राष्ट्र के प्रति वफादार रहे, अगर एक भी सबूत जो राष्ट्र की वफादारी के खिलाफ जाता पाया जाए, तो मैं हर सजा भुगतने को तैयार हूं। राजीव गांधी जी ने तुरंत प्रभाव से यह जमीन बिश्नोई समाज को देने के निर्देश दिए। क्या इस महान विभूति के इन प्रयासों को समाज भुला पाएगा। पीढ़ी दर पीढ़ी बिश्नोई समाज के लोग जब दिल्ली आएंगे और इस संस्थान भवन को देखेंगे तो इस महान आत्मा को सलाम करने के लिए उनका हाथ अवश्य उठेगा। पूरे बिश्नोई समाज की पांच सौ साल की गारंटी लेने वाला वह मसीहा जाने हमें अकेला छोड़कर क्यों चला गया?जब चौधरी साहब के अंतिम दर्शन करने के लिए मैं भी भारी भीड़ के बीच पहुंचा तो एक बार तो उनको मृत्यु
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