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। डा. महेन्द्र सिंह
# अध्यक्ष, इतिहास विभाग, दयानंद महाविद्यालय, हिसार आज हरियाणा का नाम जैसे ही किसी के मन में या जुबान पर आता है तो सहसा एक
प्रगतिशील, उन्नत व आधुनिक प्रदेश का चित्र मानस पटल पर बनता है। यह क्षेत्र पहले अंग्रेजी शासन व्यवस्था के दमन का शिकार बना तथा स्वतंत्रता के पश्चात् राजनैतिक भेदभाव का। दमन व भेदभाव के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के लिए अलग राज्य की मांग उठी जिसे पहले नकारा जाता रहा तथा बाद में 1 नवम्बर, 1966 को स्वीकृति दी गई। इस स्वीकृति के दौरान तत्कालीन पंजाब के नेतृत्व ने अपनी उदासीनता व संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते हुए इस क्षेत्र के लिए धूल का कटोरा शब्द का प्रयोग किया तथा यह भी कहा कि इस क्षेत्र के लोग भूखे मरते हुए जल्दी ही पुन: पंजाब में शामिल होने के लिए गिड़गिड़ाते नजर आएंगे। इस क्षेत्र के लोगों ने अपनी मेहनतकश प्रवृत्ति तथा संतुलित नेतृत्व के निर्देशन में इतनी उन्नति की कि इसने पंजाब को पीछे छोड़ दिया।
हरियाणा की इस विकास यात्रा में राजनैतिक नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राजनैतिक नेतृत्व के रूप में 1966 से वर्तमान तक कुल 9 व्यक्तियों ने मुख्यमंत्री की भूमिका का निर्वाह किया है जिनमें 5 व्यक्तियों चौधरी बंसीलाल, चौधरी देवीलाल, चौधरी भजन लाल, चौधरी औमप्रकाश चौटाला व वर्तमान मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को समुचित समय मिला है, जिसके कारण इनकी भूमिका ही अधिक है, जबकि 4 व्यक्ति पं. भगवत दयाल शर्मा, राव वीरेन्द्र सिंह, बनारसी दास गुप्ता व मा. हुकम सिंह इस क्षेत्र के अल्पकालीन मुख्यमंत्री रहे हैं। अत: इनकी ऐतिहासिक पहचान भी अधिक प्रभावी नहीं रही। प्रस्तुत लेख में चौधरी भजनलाल के काल (1979-1982, 1982-1986, 1991-1996) में हरियाणा के विकास को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।
भारतीय राजनैतिक परिवेश में चौधरी भजनलाल जी की विशेष पहचान है। हरियाणा के उन तीन लालों में से एक थे जिन्होंने तीन दशकों से भी अधिक समय तक राजनैतिक व्यवस्था का नेतृत्व किया। राजनीति में दोस्ती व दुश्मनी, जीत व हार, चुनौती व अवसर साथ-साथ चलते हैं तथा ये स्थायी भी नहीं होते हैं। ये सभी बिन्दु चौधरी भजनलाल के राजनैतिक जीवन पर भी लागू होते हैं। उनका राजनैतिक जीवन एक पंचायत के पंच के रूप में उस समय शुरू हुआ जब हरियाणा एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में नहीं आया था। इसके बाद वे ब्लाक समिति के चेयरमैन, विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्री व मुख्यमंत्री तक पहुंचे। हर पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी जड़ों से जुड़कर समाज व हरियाणा को अपनी क्षमता व सामथ्र्य अनुसार बहुत कुछ दिया जो इस क्षेत्र के नवनिर्माण का एक महत्वपूर्ण अध्याय बना।
हरियाणा के बनने के पश्चात् प्रारम्भिक दो वर्ष राजनैतिक अस्थिरता के रहे उसके बाद मई 1968 से दिसम्बर 1975 तक चौधरी बंसीलाल ने आधारभूत ढांचा खड़ा करने की ओर ध्यान दिया जिसके फलस्वरूप बिजली, सड़क व नहर निर्माण क्षेत्र प्रमुखता से उभरे। इस सरकार में कृषि मंत्री के रूप में चौधरी भजनलाल जी ने हरियाणा के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। दिसम्बर 1975 से 1977 तक आपातकाल की मार इस क्षेत्र ने झेली। परिणामस्वरूप सत्ता चौधरी देवीलाल के हाथ में आई, जिन्होंने आपातकाल के बाद जनता को राहत का एहसास करवाया। इस काल में चौधरी भजनलाल जी ने सहकारिता मंत्री के रूप में विकास की गंगा बहाई। उसके बाद 28 जून 1979 से 5 जून 1986 तक हरियाणा का नेतृत्व चौधरी भजनलाल ने किया। इस काल के दौरान उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि हरियाणा का जो आधारभूत ढांचा खड़ा हुआ है उसे सुदृढ़ता दी जाए तथा जिन क्षेत्रों में कार्य जारी था तथा आपातकाल की स्थिति से व्यवधान आ गया था उसे आगे बढ़ाया जाए। इस कड़ी में जनता पार्टी की सरकार द्वारा
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