हमको भजनलाल जैसा एक बार और दे

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घनशयाम तवर लीलस, भिवानी जननी जने तो ऐसा जने या दाता या सूर। नहीं तो जननी बांझ रहे काहे गंवाये नूर॥ यह दोहा बहुत पुराना हो चुका है व न जाने कितने लोगों के लिए प्रयुक्त भी हो चुका है। क्या हम हमारे हीरो के लिए एक छद भी नहीं लिख सकते? जिस इंसान ने लाखों लोगों के लिए रोजी-रोटी लिखी, उनकी भावी पीढ़ियों के भविष्य का सुनिश्चित होना भी लिख दिया हो
पूत विलक्षण विरला, माता सदियों में जन पाती है। कोई लालअमूल्य जन्मे, जिससे धरा धन्य हो जाती है। माता कुंदना देवी की कोख से एक लालअमूल्य जन्मा, जिसके बचपन में उन सुविधाओं का अभाव था जो बड़े घरों के बच्चों को सुलभ थी। अन्य बच्चे जब पतंग उड़ाते तो उस बच्चे का भी मन पतंग उड़ाने को करता, अन्य बच्चे खुशी और उल्लास से झूमते तो उस बच्चे का मन मचल जाता, बल्कि उनसे भी आगे निकल कर स्वयं आसमान में उड़ने के सपने देखता। सपने वो नहीं होते जो सोने के बाद देखे जाते हैं, सपने वो होते हैं जो इन्सान को सोने ही नहीं देते। वह गगन की बुलंदियों को छूना चाहता था पर करे तो करे क्या?
पंख वो कहां से लाता पकड़ लिया डोर को, ठहरो अभी आया, बोला बादलों के लोर को। जा बैठा पतंग पर लोग दंग ही रह गए, देखते ही छूने लगा असामां के छोर को॥ वरना एक पंचायत स्तर से अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत करके मुख्यमंत्री और केन्द्र में केबिनेट मंत्री तक पहुंच पाना बच्चों का खेल नहीं। उस विलक्षण इन्सान की ऊपर वाले से भी नखराबाजी थी। जैसे कोई बच्चा नखराबाजी से माँ-बाप को मजबूर करके मनचाही चीज हासिल कर लेता है, कुछ खास प्रकार की चौधरी भजनलाल जी की उस परमात्मा के साथ नखराबाजी थी, हम भी जानते हैं। एक बार देश भर में भयंकर सूखे की नौबत आने वाली थी, देशभर के मौसम वैज्ञानिक, ज्योतिषी व मीडिया भयंकर अकाल की भविष्यवाणी कर रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री चौधरी भजनलाल से इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। वे बोले,भजनलालजी अगले दो-चार दिनों में हम देश में सूखे का एलान (घोषणा) करने जा रहे हैं।
राजीव जी का उदास चेहरा देखकर चौधरी साहब बोले कि- आपको चिंता करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है, अगले दो चार दिनों में तो जितनी कहोगे उतनी बरसात करवा देंगे। अब सवाल उठता है कि क्या होने में और करवाने में कुछ अंतर है? होने में इन्सान का वश नहीं चलता, लेकिन करवाने में इन्सान के सामथ्र्य की परीक्षा होती है। अगले दो चार दिनों में ऐसी झमाझम बरसात हुई जिससे चौधरी साहब के सामथ्र्य का दीदार बिल्कुल साफ-साफ हो जाता है। निश्चित ही चौधरी साहब की नखरेबाजी उस परमपिता को स्वीकार थी। उन्होंने भगवान जांभो जी से एक बार मांगा तो तीन बार दिया। शायद तकदीर लिखने वाली देवी (बेहमाता) ने भी स्वयं भजनलाल को तकदीर लिखने की छूट दे दी थी व साथ ही उन लोगों के भाग्य में भी कुछ नया अध्याय लिखने की छूट दी होगी जो उनसे एक बार भी मिला हो।
वह आदमी नहीं अजूबा था, वह इंसान होकर भी फरिश्ता था। वह हीरो भी था और हीरा भी था, वह अनमोल था, फिर भी सस्ता था। सस्ता भी इतना कि हैरानी होती है। चौधरी साहब जब मुख्यमंत्री थे तबके किस्से बहुत चर्चित रहे हैं। छोटी-छोटी बातों को लेकर समाज के बंधु चौधरी साहब से उलझ पड़ते थे, कुछ का कुछ बोल देते थे। वे नादान लोग भूल जाते थे कि वे किस से बात कर रहे हैं। चौधरी साहब हंसकर उन नादानों को सम्मान देते और काम भी करते।
जब चौधरी भजनलाल जी मुख्यमंत्री थे उस दौर से पहले बिश्नोई समाज के हर गांव में मनमुटाव जोरों पर था। आपसी वैमनस्य ने समाज को कमजोर कर दिया था। चौधरी साहब के प्रयासों से ही उस मनमुटाव पर पूर्ण विराम लग पाया। मामूली वाद-विवाद तो प्रत्येक मानव की सामान्य प्रवृत्ति है। 1960 के बिश्नोई और 2011 के बिश्नोई में कोई अन्तर पैदा करने वाला है तो वहबिश्नोई रत्न है, लालों का लालचौधरी भजनलाल ही है।
एक समय समाज में अनेक बुराइयां घर कर चुकी थी जैसे दहेज प्रथा, रिश्तों में तनातनी, बाल विवाह, अशिक्षा, समाज में घूंघट प्रथा, अपने सम्बन्धी की मृत्यु के उपरान्त छह-छह महीनों तक शोक में बैठे ही रहना। इन सब बुराइयों को दूर करने में वे समाज के राजाराम मोहन राय थे।
आज जितने समाज के नौजवान आगे बढ़ रहे हैं, सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। हे समाज के लोगो! ये मत भूलो कि आपकी सफलता के झंडे में कपड़ा तो आपका है, आपकी मेहनत का रंग है,पर उस सफलता के झंडे में डडाकिसका है? जिसके बल पर झंडा लहरा रहा है। नींव के बिना मकान का क्या अस्तित्व है? चौधरी साहब के उपकारों को भुलाया नहीं जा सकता। कृतज्ञ भूलता नहींव कृतघ्नमाँको भी भुला देता है, जिसने उसे दूध पिलाया होता है।
समाज में चौधरी भजनलाल रूपी एक सितारा था जो टूट गया, जिसकी टिमटिमाती रोशनी में धीरे सही, लेकिन सही दिशा में जा रहे थे। पर वह सितारा टूटते-टूटते अपनी चमक फिर से बिखेर गया। उनके अंतिम संस्कार में उमड़ा जनसैलाब उनकी लोकप्रियता का पुख्ताप्रमाण हैलोगनिर्जीव मूर्तिकी तरह खड़े थे। वे लोग पथरा गए थे। पत्थर की मूर्ति भी कभी रोती हैक्या? शायद लोग रोते हुए अपने प्रिय नेता कोविदा नहीं करना चाहते थे क्योंकि मुकद्दर का सिकदर कभी रोते हुए नहीं जाता और नही किसीकोरूलाकर जाता है। वह हंसाने आया था वहंसते हुए ही चला गया
मांग रहे हैं फिर जांभो जी से जोर दे, वो हमारी पतंग दे दे, वो हमारी डोर दे। बस वही बुलंदियां दे, आसमां छूना हमें, हमको भजनलाल जैसा एक बार और दे॥

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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