समय के पाबंद थे चौधरी साहब

डाँ, ब्रह्मानन्द सेवानिवृत प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में उसकी जीवन शैली व उसके चारित्रिक गुणों का बहुत बड़ा योगदान होता है। ऐसे महापुरुषों में कुछ दिव्य गुण होते हैं, जो उन्हें सामान्य जनों से अलग करते हैं। चौधरी भजनलाल जी भी इसलिए महान थे कि उनकी जीवन शैली सबसे अलग ही थी। सामान्य जन जहां बड़े पदों एवं विलासिता के साधनों को प्राप्त कर अपनी जीवनशैली को बदल लेते हैं, वहीं चौधरी भजनलाल जी ने बड़े-बड़े पदों पर रहते हुए भी अपनी जीवन शैली को नहीं छोड़ा था। ऐसा कोई मुख्यमंत्री नहीं हुआ है जिसने प्रात: पांच बजे जनता की समस्याएं सुनी हों और रात को दस बजे भी जनता से मिला हो, यह विशेषता केवल चौधरी भजनलाल में थी। यह उनका केवल एक दिन का नहीं, अपितु नियमित कार्यक्रम होता था। वे प्रात: जागरण के विषय में अति नियमित थे, जिसका स्वयं मैंने कई बार प्रमाण देखा था।
बात 2009 के संसदीय चुनावों की है। चौधरी साहब हिसार से चुनाव लड़ रहे थे। उनसे मिलकर अग्रिम बधाई देने की इच्छा हुई तो मैं कुरुक्षेत्र से अलवर जाते हुए हिसार रूक गया। रात को मैं अपने प्रिय शिष्य डॉ. सुरेन्द्र कुमार बिश्नोई के पास रूका। उन्होंने मुझे बताया कि चौधरी साहब प्रातः 4 बजकर 40 मिनट पर अखबार पढ़ने बाहर आ जाते हैं। मुझे सहसा विश्वास नहीं हुआ। हम उम्र होने के कारण मैं समझता था कि इस उम्र में दिनभर प्रचार करने के बाद प्रात: इतना जल्दी उठना कैसा संभव होता होगा। यह समय निश्चित ही 5 बजकर 40 मिनट होगा और इन लोगों को भूल लगी होगी। हम प्रात: जल्दी उठकर चौधरी साहब के दर्शनार्थ चल पड़े, साथ में चौधरी साहब के प्रतिदिन के साथी प्रिंसीपल पृथ्वीसिंह वर्मा भी थे। रास्ते में मुझे अब भी यही ख्याल आ रहा था कि एक घंटे पहले लेकर आ गए, चौधरी साहब 5 बजकर 40 मिनट पर ही बाहर आते होंगे। उनकी कोठी के नजदीक लगने पर मैंने घड़ी पर निगाह डाली तो ठीक 4 बजकर 40 मिनट हुए थे। द्वार से प्रवेश करते ही मैं दंग रह गया। चौधरी साहब बरामदे में कुर्सी पर बैठे अखबार उलट-पलट रहे थे। मैंने मन ही मन उनके जज़्बे को सलाम किया। अभिवादन करने के पश्चात जब मैंने उन्हें जीत की अग्रिम बधाई दी तो उन्होंने कहा, जीत के बाद लड्डू खाने भी जरूर आना। जब मैंने अवस्था का जिक्र किया तो चौधरी साहब ने बीच में ही टोकते हुए कहा, अभी तो मैं जवान हूं और आप भी जवान हो। आज भी जब मुझे वृद्धावस्थाजन्य थकान होती है तो चौधरी साहब का वह वाक्य मेरे कानों में गूंजता है जिससे मुझे बड़ा सम्बल मिलता है।
चौधरी भजनलाल जी का सोने-जागने, पूजा-पाठ करने व कार्यकर्ताओं से मिलने का समय नियत होता था और वे उसमें एक मिनट का भी विलम्ब नहीं करते थे। उन्होंने आजीवन समय का सम्मान किया इसलिए समय ने भी उन्हें भरपूर सम्मान दिया और वे उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते गये। समय की अनुपालना व सदुपयोग ही उनकी सफलता का रहस्य था। चौधरी साहब को राष्ट्रभाषा हिन्दी से अत्यन्त प्रेम था। मैं हिन्दी विभागाध्यक्ष (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) रहते उनसे जब भी हिन्दी हेतु किसी अनुदान के लिए मिला तो उन्होंने बिना किसी देरी के पास करवा दिया। उनका कहना था- यदि हमारी राष्ट्रभाषा का सम्मान हम ही नहीं करेंगे तो दूसरे क्यों करेंगे? उनके व्यक्तित्व की यही विलक्षणताएं थीं, जो उन्हें महान बना गई।


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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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