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ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमांणों, काफर थूल भयाणों।
भावार्थ- काजी लोग तो केवल कुरान का पाठ करना तथा कहना ही जानते हैं पर उपदेश कुशल ही होते हैं। जो पर उपदेश देने में रस लेगा वह उसे धारण नहीं कर सकेगा और जब तक यथार्थ कथन को स्वयं स्वीकार करके वैसा जीवन यापन नहीं करेगा तब तक वह कथा वाचक स्वयं नास्तिक-काफिर है तथा स्थूल व्यर्थ का बकवादी नास्तिक है उनका जन्म मृत्यु संसार भय निवृत्त नहीं हुआ है। अन्य लोगों की भांति ही वह पण्डित तथा काजी है।
जइया गुरु न चीन्हों, तइया सींच्या न मूलूं, कोई कोई बोलत थूलूं।
ऐसा मनमुखी काजी पण्डित जब तक गुरु की शरण ग्रहण करके उनके कथनानुसार जीवन यापन नहीं करेगा तब तक वह मूल को पानी नहीं पिला रहा है। व्यर्थ में ही डाल पते ही जल से सिंचित कर रहा है। स्वयं अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहा है। कुछ लोग तो वेद शास्त्र की वार्ता जाने बिना ही लोगों को भ्रम में डालते है। स्वयं तो स्थूल की पूजा करते हैं कहते भी है तथा अन्य साधारण जनों को भी वैसा कर देते हैं|
साभार – जंभसागर
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