श्री संतं वील्हा जी कृत बतीस आखड़ी़ छन्द

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सेरा उठै सुजीव, छाण जल लीजिये।
दांतण कर करे सिनान, जिवाणी जल कीजिये।।1।।
बैस इकायंत ध्यान, नाम हरि पीजिये?
रवि उगे तेही बार, चरण सिर दीजिये।।2।।
गऊ घृत लेवे छाण, होम नित ही करो।
पंखे से अग्न जगाय, फूंक देता डरो।।3।।
सूतक पातक टाल, छाण जल पीजिये।
कर आत्म को ध्यान, आरती कीजिये।।4।।
मुख बोली जै साच, झूठ नहीं भाखिये।
नेम झूठ सूं जाय, जीभ बस राखिये।।5।।
निज प्रसुवा गाय, चूंगती देखिये।
मुखां बताइये नांही, और दिस पेखिये।।6।।
अमावस व्रत राख, खाट नहीं सोईये।
चोरी जारी त्याग, कुदृष्ट न जोईये।।7।।
नेम धर्म गुरू कहे, कदे नहीं छोड़िये।
लाधी वस्तु पराई, बोल देवोड़िये।।8।।
जीव दया नित राख, पाप नहीं कीजिये।
जांडी हिरण संहार, देख सिर दीजिये।।9।।
बधिया करै तो बैल, जु देख छोड़ाइये।
बरजत मारै जीव, तहां मर जाइयै।।10।।
ऋतुवन्ती हवै नार, पलो नहीं छुइये।
पांचूं कपड़ा धोय, नहाय सुधि होइये।।11।।
सूतक पातक अन्त, घरहुं लिंपाइये।
गऊ घृत सुध छाण, जु होम कराइये।।12।।
जल छाणैं दोय बार हि, सांझ सबेरे ही।
जीवाणी जल जोड़, कुवै जाय गेरही।।13।।

राख दया घट मांह, वृक्ष घावै नहीं।
घर आवे नर कोय, भूखो जावै नहीं।।14।।
अमावस दिन धर्म, इता नित पालिये।
गाय र बच्छो बैल, बेचण सूं टालिये।।15।।
पथ न चालै भूल, खाट न सोइये।
ऊखल खड़वे नाहीं, चाकी नहीं झोइये।।16।।
वस्त्र धोवे नांहिं, सीस नहीं धोइये।
जूवा लीखा नाव, लिया पुन खोइये।।17।।
औले अमावस दूध, दही नहीं मथ्थिये।
साखी हरीजस गाय, ज्ञान गुण कथिये।।18।।
दांती कसी गंडासी, बाण नहीं बाइये।
धोबी चकरी ढ़ेढ़, घरे नहीं जाइये।।19।।
चमारां घर जाय, भूल करि बैठ है।
नरक पड़ै निरधार, रकत में पैठ है।।20।।
आन जात को पाणी, भूल नहीं पीजियै।
बिन मांज्या बरतन, कबहुं नहीं लीजिये।।21।।
चैके बिना रसोई, कबहुं मत करो।
गऊ बैठक शत ग्रेह, करत तुम जन डरो।22
ब्राह्मण दस प्रकार, तीन सुध जानिये।
अमल तमाखू भांग, लील नहीं ठानिये।।23।।
इह औगण नहीं होय, विप्र सुध है सही।
और छतीसूं पूंण, एक सम गुरू कही।।24।।
वे अस्नाने कोय, जो पलो लगावही।
न्हाये ते सुध होय, गुरू फरमावही।।25।।
अपने घर में बैठ, निंद्या नहीं कीजिये।
देख्या सुण्या अदेख, जु अजर जरीजिये।।26।।
त्रिधा देवा साधा, सुं संग कीजिये।
गुरू ईश्वर की आण, नहीं भानीजिये।।27।।
हल अरू गाडो गाड़ी, बैल नहीं बाहिये।
जीव मरे जेहि काम, कदे न कराइये।।28।।
अमावस को दूध जू, भूल न भलोय है।
कदेन उतरे पार, रक्त सम होय है।।29।।

होके पाणी आग, कदे नहीं दीजिये।
अमल तमाखू नाम, भूल नहीं लीजिये।।30।।
जूवा लीखा काढ़, छांव में डारिये।
इन मारया सुख होय, पुत्र क्यूं नीं मारिये।।31।।
घर को बकरो भेड़, थाट संग कीजिये।
बेच्यो कुट्यो बैल, उलट नहीं लीजिये।।32।।
तीसां ऊपर दोय, आखड़ी गुरू कही।
जो विश्नोई होय, धर्म पाले सही।।33।।
गहै धर्म बत्तीस, तीर्थ सब नहाइयां।
अड़सठ तीरथ पुण्य, घरा चल आविया।।34।।
गह गुनतीस बतीस, विष्णु जन जानिये।
इकसठ सातूं छोत, अड़सठ एहि मानिये।।35।।
देखा देखी तीर्थ, और नहिं कीजिये।
मन सुरती कूं जीत, परम पद लीजिये।।36।।
पाले गुरू का कवल, जम्भगुरू ध्याव है।
घाटो भूख कुरूप, कदे नहीं आव है।।37।।
यहि विधि धर्म सुनाय, कहयौ गुरू जगत ने।
अज्ञानी कूं डांस, प्रिये ज्ञानी भक्त ने।।38।।
या विधि धर्म सुनायके, किये कवल किरतार।
अन्न धन लक्ष्मी रूप गुन, मूवां मोक्ष दवार।।39।।

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Sanjeev Moga
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