श्री गुरु-वंदना

सुख के सागर सतगुरु जाम्भोजी, परम् शांति के धाम।

श्री युग सरोज में,पुनि पुनि करू प्रणाम।।

पद पंकज गुरुदेव के,राखू हिय बसाय।
बार बार वंदना करू,शीश निवाय निवाय।।

जीव काज हित जगत में,लीन्हा प्रभु अवतार।
श्री गुरुजाम्भो जी के रूप प्रकटे स्वयं करतार।।

दुःखी जीवो की लख दशा,समराथल रचा दरबार।
दुःख कष्ठ सब हर लिए,दीन्हा सुख अपार।।

जो आया चरणार में,तिसको किया निहाल।
ज्ञान सबद बतलाकर के,कर दिया मालामाल।।

नियम बनाये भक्ती के,सतगुरु परम् उदार।
जो जन नित पालन करे,निश्चय हो उद्वार।।

श्री आरती पूजा इष्टदेव की ,करे जो मन चित लाय।
सुख आनंद और शांति,सहजे ही वह पाय।।

उत्तम संग जो नित्यप्रति करे,उपजे हिरदै ज्ञान।
सत असत के ज्ञान से तिसका हो कल्याण।।

जीवो पर दया करे जो श्रद्धा धार।
सो सौभागी जीव है, पावे गुरु का प्यार।।

श्री गुरुजाम्भो जी के उपकार का बदला दिया न जाय।
भेंट करे सर्वस्व जो,तो भी ऋण न चुकाय।।

कृपा दया के पुंज हो,करते दया अपार।
भव सागर में डूबते,रहे हो जीव उबार।।

मैं भी आया द्वार पर,छोड़ सबन की आस।
मुझे उबारो गुरु जी है मन मे विश्वास।।

मुझ पापी को यह आशीष दो,नियम निभाऊं नित।
आठ पहर लागा रहे,तव चरणन में चित।।

जय गुरु जम्भेश्वर जय भगवान
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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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