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*जे म्हां सूता रैन बिहावै*
एक समय की बात है कि कूनौज वासी कई बिश्नोई गुरु जंभेश्वर के पास समराथल आये और एक मखमली बिछौना गुरु महाराज को भेंट किया तथा कहा कि यह इतना मुलायम है कि इस पर सोने से,ऐसी गहरी नींद आयेगी कि आप जल्दी से जाग भी नहीं पायेंगे।श्रद्धालु भक्तों की भोली बात सुन गुरु महाराज ने उन्हें यह शब्द कहा:-
*जे म्हां सुता रैण बिहावै बरते बिम्बा बारुं*
हे भोले भक्तों!यदि हम सो जावें और हमारे सोने में रात्रि बीत जावे तो यह समस्त सृष्टि जो ब्रह्मा की माया रूप में प्रतिबिम्बित हो रही है,महाशून्य में विलीन हो जावे। अर्थात ब्रह्मा निरन्तर जागता रहता है, ब्रह्मा के जागते रहने से ही उसकी माया छाया, यह प्रकृति ब्रह्माण्ड के रूप में बिम्बित हो रही है। गुरु जंभेश्वर महाराज स्वयं ब्रह्मा स्वरूप है और ब्रह्मा के सोने का अर्थ है महाप्रलय।कालरात्रि का प्रारंभ और कालरात्रि में यह समस्त दृश्य जगत महाशून्य में डूब जाता है। ब्रह्म में लीन हो जाता है।
*चंद भी लाजै सूर भी* *लाजै लाजै धर गैणारूं पवंणा पाणी पे पण लाजै लाजै बणी* *अठारा भारूं सप्त पताल* *फुणींदा लाजै लाजै* *सागर खारुं जम्बु दीप का लोइया भी लाजै लाजै* *धवली धारूं सिध* *अरू साधक मुनिजन लाजै* *लाजै सिरजण आरूं*
हमारे सो जाने पर यह चंद्रमा, सूर्य,धरती,आकाश, पवन,पानी, अठारह भार वनस्पति, नवलाख तारा मंडल,नवसौ नदियाँ, नवासी नाले ,खार समुद्र,अष्ट कुली पर्वत श्रेणियाँ, इस जम्बू द्वीप के लोग, उज्जवल व बर्फीले पहाड़ एवं ये बालू रेत के सफेद धोरे सिद्ध साधक,मुनिजन तथा इस सृष्टि का कर्ता, स्वयं ब्रह्मा भी महाशून्य में विलीन हो जाते हैं।इन सब की मर्यादा हमारे ब्रह्मा के जागृत रहने पर ही टिकी हुई है।हम तो यहाँ संसार को जगाने आये है।हम कैसे सो सकते हैं।
*सत्तर लाख उसी पर जंपा भलै न आवै* *तारुं*
सत्त–सत्य
र–रहो
लाख–लाख
असी –तरह
पर–की।
जंपा–जप।
भले–फिर से
आवे–आना
तारूं–तिरना
भगवान जांभोजी कहते हैं कि हे प्राणी! सत्य में रहो।जिस प्रकार से लाख को अग्नि में तपाकर उसको जिस भी साँचे में ढाला जाता है तो वह उसी साँचे में ही परिवर्तित हो जाती है।इसलिए कहा भी गया है कि
*तदा कारा करित चित्त वृत्ति*
तुम्हारे चित की जो वृत्ति हैं उनको परमात्मा के आकार में परिवर्तित कर दो – जिस प्रकार से लाख को गर्म किया जाता है और जब लाख गर्म हो जाती है तो फिर उसको जिस भी साँचे में ढाला जाता है तो वह उसी का रूप धारण कर लेती हैं ।उसी प्रकार से तुम भी अपने आप को परमात्मा रूपी साँचे में ढाल दो तो फिर तुम इस संसार में नहीं आओगे इस संसार रूपी सागर से तिर जाओगे।
🙏–(विष्णुदास)
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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