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*तन मन धोईये -संजम होइये*
अजमेर के मल्लूखान ने जाम्भोजी से निवेदन किया कि जब से वह उनके बताए रास्ते पर चलने लगा है,तब से उसका जीवन और ज्यादा दुखी हो गया है और दूसरी तरफ अच्छे कर्मों की अपेक्षा करने वाले लोग मौज कर रहे हैं। मल्लूखान ने जब कहा कि उसकी जाति के लोग उसका अपमान करते हैं।ऐसी स्थिति में वह उनके बताए रास्ते पर कैसे चले? खान की कठिनाई जान गुरु महाराज ने उसके प्रति यह शब्द कहा:-
*तन मन धोइये संजम होइये हरख न खोइये*
हे मल्लूखान!आप अपने शरीर को स्वस्थ,शुद्ध एवं पवित्र बनाए रखो। स्नान,सफाई, करते हुए, अपना तन हमेशा निर्मल रखो।मन का मेल हटाओ। काम,क्रोध, लोभ,मोह आदि जो मन को मेला करते हैं,इन कुप्रवृत्तियों से अपने मन को मेला मत होने दो। निंदा, उपेक्षा एवं विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी प्रसन्नता एवं आत्मिक आनंद को बनाए रखो।
*ज्यूं ज्यूं दुनिया करै खुवारी त्युं त्यूं किरिया पुरी*
तुम यह मान कर चलो कि ज्यो-ज्यो दुनिया के लोग तुम्हारी बुराई एंव निंदा करेंगे,त्यों त्यों तुम अंहकार से मुक्त होकर शुभ कर्मों के रास्ते पर चलते हुए अपने लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कर सकोगे। मूर्खों द्वारा की गई निंदा से तुम्हारा कोई अहित नहीं, बल्कि हित ही होगा।
*मुग्धा सेती युं टल चालों ज्यूं खडकै पास धनुरी*
अहंकार पतन का कारण है।इस संसार में अधिकतर लोग मुग्ध है। कोई अपनी काया पर मुग्ध हैं। कोई माया पर, कोई शक्ति पर, तो कोई सत्ता पर !ऐसे मुग्ध ,मुर्ख, अहंकार में डूबे हुए लोगों से तुम दूर रहो। उनके पास मत जाओ, जैसे पास में आवाज सुनकर हिरण दूर भाग जाता है,उसी प्रकार तुम किसी अन्य में अहंकार एंव जड़ता का आभास पाते ही उससे दुर हट जावो।ऐसे लोगो का साथ मत दो।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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