शब्द – 11 : ओ३म् दिल साबत हज काबो नैड़ै, क्या उलबंग पुकारो

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ओ३म् दिल साबत हज काबो नैड़ै, क्या उलबंग पुकारो।

भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल में सच्चाई है तो काबे की हज निकट ही है। जब तुम्हारा अपना अन्तःकरण नजदीक ही है तो फिर उसे दूर समझकर इतनी जोर से आवाज क्यों लगाते हो क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है।

सीने सरवर करो बंदगी, हक्क निवाज गुजारो।
उस परमपिता परमात्मा की प्राप्ति करना चाहते हो तो हृदय में प्रेम और दीनता से पुकार करो यही सच्ची प्रार्थना होगी। प्रतिदिन केवल नमाज अदा करने से तो कुछ कार्य सफल नहीं हो सकेगा। जब तक अपने जीवन में हक की कमाई नहीं करोगे, नमाज का अर्थ ही है कि हम अपने जीवन को शुद्ध परोपकारमय बनावें।

इंहि हैड़ै हर दिन की रोजी, तो इस ही रोजी सारों।
ईमानदारी से भले ही कितना ही कठिन कार्य करना पड़े वही कार्य अपने जीवन यापन के लिये उत्तम है। बेईमानी से किया हुआ कर्म जीवन को बर्बाद कर देगा वह अच्छा कैसे हो सकता है। जीवन में शारीरिक परिश्रम करके जो कुछ प्राप्त होता है वही संतोषजनक हो सकता है।

आप खुदाय बंद लेखौ मांगै, रे वीन्है गुन्है जीव क्यूं मारो।
स्वयं खुदा न्यायकारी आपसे न्याय मांगेगा और पूछेगा कि रे प्राणी! तेरे को अमूल्य मानव जीवन दिया था।इस जीवन में तेने क्या क्या कर्म किये? उन जीवों ने तेरा क्या अपराध किया था। जिससे तुमने उनको मार डाला। तुझे किसी भी प्राणी को मारने का हक नहीं है, यदि तूं किसी को जीवन दान नहीं दे सकता तो मृत्यु देने का क्या हक है? यह अनाध्धिकार चेष्टा है।

थे तक जाणों तक पीड़ न जांणो, विन परचै वाद निवाज गुजारो।

आप लोग बल प्रयोग द्वारा प्राणियों को मारना तो जानते हो किन्तु उनकी पीड़ा को नहीं जानते अर्थात् आपके पास सहानुभूति नहीं है अपने जीवन में कभी किसी सद्गुरु की बात का विश्वास पूर्ण श्रवण नहीं किया जिससे आत्मज्ञान प्राप्ति के बिना ही व्यर्थ में ही विवाद करते हो इसी प्रकार से अज्ञानी रहकर ही नमाज अदा करते हो तो इससे जीवन में कुछ भी लाभ नहीं होगा।

चर फिर आवै सहज दुहावै, जिसका खीर हलाली। तिसके गले करद क्यूं सारौ, थे पढ़ सुण रहिया खाली।
जो माता तुल्य गऊ वन में चरकर आती है और वापिस आकर स्वभाव से ही अमृत तुल्य दूध देती है। उससे तुम लोग खीर आदि बनाकर खाते पीते हो फिर ऐसी परोपकारी माता के गले पर करद का वार भी करते हो तो तुम लोग पढ़-लिख, सुनकर भी खाली रह गये। तुम्हारा पढ़ना-लिखना व्यर्थ ही सिद्ध हो गया।

थे चढ़ चढ़ भींते मड़ी मसीते, क्या उलबंग पुकारो। कारण खोटा करतब हीणा, थारी खाली पड़ी निवाजूं।
गऊ आदि जीव धारियों का मांस भक्षण करके फिर भींतों पर मेड़ी और मस्जिदों पर चढ़कर क्यों उलबंग से पुकार करते हो, , क्या वह खुदा तुम्हारी बात को कभी सुनेगा? क्या वह बहरा या अन्धा हो गया है जो तुम्हारे इन खोटे पाप कर्मों को नहीं सुनता और देखता। क्या वह तुम्हारे हृदय की बात को नहीं जानता।जब तक तुम्हारे कार्य कारण रूप से खोटे कर्म है इन दुष्ट कर्मों का परित्याग नहीं करोगे तब तक तुम्हारा नमाज पढ़ना व्यर्थ है इससे कुछ भी अच्छा फल मिलने वाला नहीं है।

किहिं ओजूं तुम धोवो आप, किहिं ओजूं तुम खण्डा पाप। किहिं ओजूं तुम धरो धियान, किहिं ओजूं चीन्हों रहमान।
इस प्रकार से जीव हत्या करते हुए फिर आप लोग किस प्रकार से अपने को साफ करोगे तथा किस प्रकार से पापों का नाश करोगे? किस प्रकार से परमसत्ता परमेश्वर – अल्ला का ध्यान करोगे और किस प्रकार से उस रहम करने वाले रहीम-राम को पहचान कर स्मरण करोगे। तुम्हारा अन्तःकरण व शरीर इतना अपवित्र हो चुका है, , जिससे तुम्हारी इन शुभ कार्य करने की योग्यता समाप्त हो गयी है और न ही नमाज पढ़ने से पूर्व हाथ पांव आदि धोना रूप ओजूं से ही कुछ शुभ कार्य होने वाला है।

रे मुल्ला मन मांही मसीत नमाज गुजारिये, सुणता ना क्या खरै पुकारिये।
रे मुल्ला काजी! इस लोक दिखावा रूप उलबंग को छोड़कर अपने मनरूपी मसीत में ही शांति तथा सावधानी पूर्वक निमाज पढिये। वह अन्तर्यामी खुदा क्या सुनता नहीं है? वह तो घट घट की बात जानने वाला है।तो फिर खड़े होकर जोर से पुकारने की आवश्यकता नहीं है।

अलख न लखियो खलक पिछाण्यो, चांम कटै क्या हुइयो।

मन बुद्धि द्वारा परमात्मा का अनुभव तो किया नहीं और संसार में ही दशों दिशाओं में वृति को भटकाता रहा, केवल संसार को ही सत्य सभी कुछ समझा तो फिर सुन्नत कराने से क्या लाभ हुआ।

हक हलाल पिछाण्यों नांही, तो निश्चै गाफल दोरै दीयो।
इस संसार में रहते हुऐ कर्तव्य -अकर्तव्य, पाप-पुण्य, , हक्क-बेहक्क की पहचान तो की नहीं। विवेक बुद्धि से तो कार्य किया नहीं हे गाफिल! निश्चित ही तुझे खुदा-ईश्वर दौरे नरक में ही डालेंगे।

साभार – जंभसागर

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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