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धवणा धूजै पाहण पूजै
जोधपुर के राव सांतल ने जाम्भोजी से जानना चाहा कि विष्णु भगवान के अलावा अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना करने वालों को पुण्य फल की प्राप्ति होती है या नहीं।सांतल की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:-
धवणा धूजै पाहण पूजै बेफरमाई खुदाई

हे जिज्ञासु जन! जो लोग गर्दन हिला हिला कर झूमते हुए पत्थरों की बनी मूर्तियों की पूजा करते हैं, वे अज्ञानी है। पत्थर पूजना खुदा की आज्ञा नहीं है। ऐसा करना ईश्वर की आज्ञा के विरुद्ध है ।

गुरु चेले के पाए लागे देखो लोग अन्यायी

हे जमाती जनों!जरा सोच समझ कर देखो,यह कैसा अन्याय है कि गुरु अपने शिष्य के पाँवो पड़ रहा है?ऐसा आचरण तो लोक मर्यादा के भी विरूद्ध हैं।अर्थात् मूर्ति का निर्माता तो उसका गुरु हुआ और उस मानव द्वारा निर्मित वह मूर्ति उसका शिष्य।जब मनुष्य अपने ही द्वारा बनाई हुई मूर्ति की पूजा करता है,तब उसका यह आचरण हास्यास्पद एवं अन्याय पूर्ण नहीं तो और क्या है?

काठी कण जो रूपो रेहण कापड़ मांह छिपाई

वे पुजारी जो काठ,सोना, चांदी, मिट्टी एवं अन्य धातुओं की बनी मूर्तियों को कपड़ों में छिपा कर उन्हें वस्त्र पहनाते हैं।

नींचा पड़ पड़ तानै धोक़े धीरा रे हरि आई

फिर उन्हीं के सम्मुख झुक झुक कर प्रणाम करते हैं। उनकी पूजा करते हैं तथा अपने मन एवं अन्य लोगों को झूठा आश्वासन देते हैं कि धैर्य रखो,ईश्वर बस आने ही वाला है।

बामण नाऊं लादण रूड़ा

ऐसे लोगों स्वयं अज्ञानी है तथा अन्यों को भ्रम में डालने वाले हैं।ऐसे ढोंगी ब्राह्मणों से तो गधे अच्छे हैं,जो अपने स्वामी का बोझा ढोते हैं, परंतु किसी को झूठे धोखे में नहीं डालते।

बूता नाऊं कूता वै अपहांनै पोह बतावै बैर जगावै सूता

उन निर्जीव मूर्तियों से तो वे कुत्ते ज्यादा अच्छे हैं,जो कम से कम रात दिन अपने स्वामी के घर की रखवाली तो करते हैं

भूत परेती जाखा खैणी यह पाखंड परमाणों

।जो ब्राह्मण स्वयं और भूदेवता,कहला.कर, अपनी तांत्रिक कलुषित क्रियाओं द्वारा श्मशान भूमि में जा कर सोये प्रेत जगाते हैं और दूसरी और दुनिया के लोगों को मूर्ति का मार्ग दिखाने का झूठा ढोंग रचते हैं। भूत प्रेतों की सेवना करना, श्मशान भूमि में साधना करना, ये पाखंड के प्रमाण है।

बल बल कूकस कांय दलिजे जामै कणु न दाणों

बार-बार थोथी भूसी या चांचडा को पीसने,दलने से उनमें से कोई कण निकलने वाला नहीं है। ऐसा करके तुम अपना श्रम व्यर्थ में गंवा रहे हो।

तेल लीयो खल चोपै जोगी खल पण सूंघी बिकांणों

तिलों से तेल निकालने के पश्चात शेष रही खली, केवल पशुओं के खाने लायक रह जाती है। उसका मूल्य स्वय तिलों से अपने आप कम हो जाता है। वह सस्ती बिकती हैं अर्थात मूल तत्व ज्ञान को छोड़कर क्यों इन व्यर्थ की बातों में बार-बार अपना समय नष्ट कर रहे हो?इन में कोई सार तत्व नहीं है

कालर बीज न बीज प्राणी

हे प्राणी! जिस खेत में कालर यानी भुमि बंजर हो गई है उसमें बीज बोना व्यर्थ है।वह कालर वाला ऊसर खेत कुछ देना तो दूर रहा,तुम्हारा बोया हुआ बीज और तुम्हारा परिश्रम भी खा जाएगा।

थल सिर न कर निवाणौं

किसी ऊँची जगह या टीले पर तालाब मत बनाओ। वह टीले पर बना तलाब पानी से कभी नहीं भरेगा।

नीर गये छीलर कांय सोधो रीता रहा इवाणी

इसी प्रकार जहाँ बहुत छीछला पानी है, उस छीछले पानी वाले तालाब में तुम क्या ढूंढ रहे हो?वहाँ क्या तुम्हें मोती मिलेंगे ?नहीं।जैसे टीले पर बने तालाब सदा खाली ही रहते हैं, उन में पानी नहीं भरता और छिछले पानी में मोती नहीं मिलते।

भवंता ते फिरंता फिरंता ते भवंता मड़े मसाणे तड़े तड़गे

उसी प्रकार है अज्ञानी लोगों !यदि तुम मूर्ति पूजा एवं भूत प्रेत के चक्कर में पड़े रहे तो तुम्हें कभी सच्चा तात्विक ज्ञान नहीं होगा। तुम उस तालाब की भांति खाली के खाली ही बने रहोगे।

पड़े पखाणे वां तो सिद्धि न काई निज पोह खोज पिछाणी

अज्ञानता वश भ्रम में पड़े हुए जो लोग निरंतर भटक रहे हैं, व्यर्थ में इधर-उधर चक्कर काट रहे हैं, कभी श्मशान भूमि में मुर्दे पर बैठ कर शव साधना करते हैं, कभी झीलो, तालाबों एवं नदियों के किनारे तीर्थ स्थलों पर भटकते हैं और जगह-जगह जाकर पत्थरो की मूर्तियों के सम्मुख नाक रगडते हैं,परंतु उन स्थानों एवं वैसी क्रियाओं से कोई सिद्धि प्राप्त होने वाली नहीं है।

जैसी करणी पार उतरणी पारख जोय पिराणी

अतः हे प्राणी! तुम आत्म चिंतन द्वारा अपने स्वयं को जानने का मार्ग ढूंढो तथा अपने आत्म स्वरूप को जानकर, इस व्यक्ति चेतना को परम चेतना में लय करने का रास्ता मालूम करो।इसी में तुम्हारा कल्याण है।

जे नर दावो छोडयो मेर चुकाई राह तेतीसों की जाणी

जिस व्यक्ति ने धन दौलत देह आदि पर से अपने अधिकार को त्याग दिया है तथा मेरे तेरे की भावना से मुक्त होकर अहंकार रहित हो गया हैं, उसने वह मुक्ति का मार्ग जान लिया है। जिस पर चलकर तैतीस करोड़ प्रहलाद पंथी जीवों ने मुक्ति प्राप्त की है और आगे भी करेंगे ।अर्थात अहम भाव त्याग कर विष्णु भगवान की शरण में जाना ही मुक्ति का मार्ग है।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
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