शब्द नं 73

हरि कंकहडी मंडप मेडी़
एक समय एक बिश्नोई भक्त ने समराथल पर आकर गुरु जंभेश्वर महाराज से कहा कि उसने एक ऐसा योगी देखा है जो पत्थर की एक बहुत बड़ी सिला को हिला देता है। गुरु महाराज बतलावे कि उसके पास इतनी ताकत एंव करामात कहां से आई ? वह कितना बड़ा योगी है? आगंतुक का प्रसन्न जान जाम्भोजी ने उसे यह शब्द कहा:-
हरी कंकैड़ी मंडप मैड़ी जहां हमारा वासा

हे जिज्ञासु! तुम देख रही हो यह हरा कंकेडी का वृक्ष जिस के नीचे हम बैठे हैं ,अभी हमारे लिए यही महल और मेडी है।

चार चक नव दीप थर हरे जो आपो परकासा

परंतु यदि हम अपने विराट रूप को प्रकट करें तो यह संपूर्ण चार खण्ड पृथ्वी और इसके नव महाद्वीप थर थर काँपने लगेंगे।

गुणियां म्हारा सुगणा चेला म्हे सुगणा का दासूं

हमारे जिन गुणवान शिष्यों ने, शुभ कर्मों की राह पर चलते हुए हमारे ज्ञान गुणों को ग्रहण किया है, वे अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण हमें इतने प्रिय हो गए हैं कि एक तरह से हम उनके प्रेमपास में बंध गये हैं।

सुगणा होयस्यै सुरगे जायस्यै नुगरा रहा निरासूं

हम सुपात्र गुणवान भक्तों का बड़ा ध्यान रखते हैं। जो गुणवान है वे अपने शुभ कर्मों के बल पर स्वर्ग लोक हो जाएँगे और जो अच्छे कर्म एंव आचरण से हीन है,वे अंत में निराश होंगे और उन्हें जन्म मरण के चक्कर में बार बार आना पड़ेगा।

जा का थान सुहाया घर बेकुण्ठे जाय संदेशों लायो

जिनका वास्तविक घर बैकुंठ में है, जो उस सुंदर सुहावने लोक के वासी हैं, हम उन्हीं के लिए ,उन्हीं के लोक का संदेश लेकर यहाँ अवतरित हुए हैं।

अमियां ठमियां इमरत भोजन मनसा पलंग सेज निहाल बिछायों
उस बैकुंठ धाम में,जहाँ आम के सदृश मधुर अमर फलों का अमृत भोजन है।मनोनुकूल मनवांछित पलंग,गद्दे एवं चद्दर बिछे हुए हैं, वह मानस लोक है। वहाँ अपने मन में जो जैसी कामना करें उसे वैसे ही सब वस्तुएं मिल जाती है।

जागो जोवो जोत न खोवो छल जासी संसारुं

अतःहे प्राणी!अज्ञान की नींद से जागो।तुम्हारे अंदर जो परम तत्व, परमात्मा का आलोक परिव्याप्त है,उसे अपने अज्ञान के अंधकार से टक्कर मत बैठो,यह संसार बड़ा छलिया है ।यहाँ माया के बंदे, धन दौलत,रूप,मोह,मद,छल अहंकार,कदम कदम पर तुम्हें छलने को तैयार खड़े हैं।इनसे संभल कर चलो।

भणी न भणबा सुणी न सुणबा
कही न कहबा खड़ी न खड़बा

जिसने आज तक एकमात्र गाने योग्य विष्णु भजन का गाना नहीं किया ।सार तत्व, सत्य का चिंतन नहीं किया ।एकमात्र सुनने योग्य विष्णु वाणी का श्रवन नहीं किया, सच्ची ज्ञान मयी अनुभवशील वाणी का कथन नहीं किया।

भल किरसाणी ताकै करण न घातों हेलो

और है भले भक्त किसान! तूने आज तक उस परमात्मा को प्राप्त करने की फसल ही नहीं बोई है। तूने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिसके कारण बैकुंठ से तुम्हें, बुलाने की आवाज आए।वहाँ तुम्हारी पुकार हो।

कलिकाल जुग बरतै जैलो तातै नहीं सुरां सों मेलों

यह कलयुग का समय चल रहा है।तुमने यदि सावधान रहकर,शुभ कर्मों की खेती नहीं की,तो तुम्हारा यह जीवन व्यर्थ चला जायेगा और मरने के बाद,बैकुंठ में तुम्हारा मिलाप देव पुरूषों एवं देवताओं से नहीं हो सकेगा।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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