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हक हलालूं हक साच कृष्णों
जोधपुर के राव सांतल तथा अजमेर के मल्लूखान ने गुरु जंभेश्वर महाराज से जिज्ञासा प्रकट की कि वह रास्ता कौन सा है, जिस पर चलने से नरक में न जाना पड़े,भगवान तथा खुदा के दर्शन हो एंव स्वर्ग लोक में मुक्ति का फल मिले। करुणा निधान गुरु महाराज ने भक्तों की जिज्ञासा जान यह शब्द कहा:-
हक हलालूं हक साच कृष्णों सुकृत अहलयों न जाई
न्याय की कमाई करो न्याय और सत्य से परमतत्व की प्राप्ति होती है।जीव द्वारा किए हुए पुण्य कार्य कभी भी व्यर्थ नहीं जाते।
भल बाहीलों भल बीजीलों पवणा बाड़ बुलाई
यह जीवन एक खेती है, इस शरीर रूपी खेत को अच्छी प्रकार स्वस्थ शक्ति संपन्न शुद्ध बनाकर सुकर्मों से इसे सुपात्र बनाओ। इसके उपरांत इस में शुभ कर्म रूपी बीज,अच्छी प्रकार, समय पर बोवो और वह तुम्हारी शुभ कर्मों की खेती,सांसारिक लोभ लालच की आँधी से उखड़कर नष्ट न हो जावे, उसके लिए ज्ञान रूपी बाड़ का घेरा लगावो।इंद्रियों को संयमित रखते हुए,इस शुभ कर्मों की फसल की निरंतर रक्षा करते रहो।
जीव कै काजै खड़ो ज खेती तामैं लो रखवालो रे भाई
इस प्रकार है भाई! अपने जीव के कल्याण हेतु जो तुम सत्कर्मों की खेती करो,उस में अपने ही मन को रखवाला बनाओ।तुम्हारा अपना मन,निरंतर संयम में रहते हुए, तुम्हें कुकृत्यों से बचावे तथा शुभ कर्मों के प्रति प्रेरित करता रहे।
दैतानी शैतानी फिरैला तेरी मत मोरा चर जाई
इस जीवन की शुभ कर्मो रूपी खेती को नष्ट करने वाले बहुत से राक्षसी वृर्ती के दुष्ट लोग आएंगे। काम, क्रोध ,लोभ ,मोह ,भय आदि शत्रु अनेक बाधाएँ खड़ी करेंगे,कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी समझ के अंकुरों को उगते ही कोई माया का मोर खा जाए।इस बात का ध्यान रखना कि शुभ कर्म करने प्रारंभ करते ही कोई बाधा बन कर तुम्हें उन से विमुख ने बना दे।
उनमुन मनवा जीव जतन कर मन राखीलो ठाई
हे जिज्ञासु! इस जीवन के कल्याण हेतु अपने मन को संयमित बनाओ ।इसे अपने लक्ष्य पर दृढ़ता के साथ टिकाओ, इसे ऊर्ध्वगामी बना कर जोत से जोत मिलाओ ।
जीव कै काजै खड़ो ज खेती बाय दबाय न जाई
तुम अपने जीव के कल्याण के लिए जो शुभ कर्मों की खेती करो, उस में ध्यान रखो कि कोई माया की आँधी तुम्हारे बोए बीजों को कहीं अंदर ही न दबा दें।यदि तुम सच्चे गुरु की शरण में जा कर ज्ञान प्राप्त करो और अपने मन को शुद्ध बना लो, तो फिर तुम्हारे शुभ कर्मों की खेती को कोई नुकसान नहीं होगा।
न तहाँ हिरणी न तहा हिरणां न चीन्हों हरि आई
जिसका मन गुरु ज्ञान से जाग गया है, वह जहाँ पुण्य कर्मों की खेती करता है ,वहांँ फिर कोई हिरणी हिरण खाने वाला नहीं है।
न तहाँ मोरा न तहाँ मोरी न ऊंदर चर जाईं
ईश्वर जिस के मन में आ कर बैठ गया, वहाँ कोई बाधा नहीं है। उस की खेती को खाने वाला कोई मोर मोरनी एवं चूहा तक नहीं होगा।
कोई गुर कर ज्ञानी तोड़त मोहा तेरो मन रखवालो रे भाई
मोह को नष्ट करने वाले गुरु ज्ञान को धारण कर तथा मन को स्थित करके उसको रखवाला रख अर्थात मन को स्थिर और जागरूक रख
जो आराध्यों राव युधिष्ठिर सो आराधो रे भाई
अतः हे भक्त जनों! तुम उसी परमेश्वर भगवान विष्णु की आराधना करो, जिस की आराधना धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ
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