शब्द नं 69

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जवंरा रे तैं जग डांडीलो
कल की शेष व्याख्या से आगे

काचा तोड़ निकूचा भाषै, अधट घटै मल माणों।

वे कच्ची आयु के बालकों की देह से भी उनके प्राण छीनकर उन्हें पूरा ही निगल जाते हैं। शरीर से रहित होने पर बड़े-बड़े बलशालियों के बल का अभिमान भी उन यम दूतों के सामने चूर- चूर हो जाता है।

धरति अरू असमान अगोचर, जातै जीव न देही जाणौं ।

ये यमदूत इस धरती पर और आसमान में विचरण करते हुए भी सामान्य जन के लिए अगोचर है, दिखलाई नहीं पढ़ते।देह से निकलकर जाता हुआ जीव भी उन्हें नहीं जान पाता। यद्यपि वे जीव के साथ जाते हैं ,परंतु अज्ञानता वंश वह उन्हें देख तथा पहचान नहीं पाता ।

जबर तणां जमदूत दहैला, मल बैसैला माणो।

सत्कर्मों से हीन प्राणी, महाकाल के ऐसे भयंकर दूतों के सामने भय से थर थर काँपता रहता है। वे उसे डराते हैं। उन दूतों के सम्मुख बड़े-बड़े पहलवानों का घमंड भी झुक जाता है। कारण देह रहित जीव का बल ,उसके द्वारा किए हुए शुभ कर्म ही होते हैं।

तातैं कलीयर कागा रोलो, सूना रहया अयाणों ।

जीवात्मा के बिना दहे सुना रह जाता है।और इस शरीर बल का अभिमान यही मिट्टी में मिल जाता है। इस कलयुग में मृत्यु के पश्चात ,इस धरती पर केवल कौवों की कांव-कांव शेष रह जाती है।

आयसां जोयसां भणंता गूणंता वार मूर्हूता,
पोथा थोथा पूस्तक पढिया वेद पूराणों ।

बड़े-बड़े योगी, ज्योतिषी,पढ़े गुने ज्ञानी लोग, यह नहीं बता सकते कि यह जीव इस देह को किस दिन ,किस समय छोड़ेगा? आचरण हीन व्यक्ति के लिए वेद- पुराण आदि बड़े-बड़े ग्रंथों का पढ़ना,बार मुहूर्त देखना सब थोथा हैं, सारहिन है।

भूत परेति कांय जपीजै, यह पाखण्ड परवाणों।

भूत प्रेतों को क्यों जपते हो ! ऐसा करना निश्चित रूप से पाखंड है, अर्थात पाखंड का प्रमाण है ।उन्हें सार तत्व सत्य का ज्ञान नहीं हैं।

कान्ह दिशावर जेकर चालो, रतन काया ले पार पहूँचो।

यदि कोई प्राणी विष्णु भगवान के प्रति स्वयं को पुर्णतया समर्पित कर देता हैं उनके सुझाए नियमों का अनुसरण करता हुआ जीवन यापन करता हैं, तो वह मरणोपरांत इस आत्मा को लेकर संसार सागर से पार पहुँच जाता हैं।

रहसी आवा जाणों, तांह परेरै पार गिरायै ततकै निश्चल थाणों ।

जिसने सार तत्व आत्मा को पहचान कर, अपने आप को परम आत्मा में मिला दिया,द्वेत से अद्वैत हो गया,वह स्वर्ग लोक से भी ऊपर अपने स्थाई निवास, बैकुंठ धाम को चला जाता है।

सो अपरपंर काय न जपो तण खिण लहो इमाणों।

अतः हे प्राणीयो!तुम उस अपरम्पार पर ब्रह्मा परमेश्वर विष्णु का जाप करो।तुम अज्ञान मे पड़कर विष्णु नाम का जाप करने में अब क्षण मात्र भी देरी मत करो।

भल मूल सीचों रे प्राणी ज्यू तरवर मेलत डालूं।

हे प्राणी!जैसे किसी पेड़ की जड़ मूल में पानी डालने से वह पूरा पेड़, जड़े, तना, टहनियां,पत्ते, पुष्प, फल सब रस से भर कर तृप्त हो जाते हैं,उसी प्रकार केवल एक देवों के देव सार तत्त्व,विष्णु नाम का जाप करने से ,सारे देवी देवता स्वतः ही संतुष्ट एंव तृप्त हो जाते हैं।

जइया भल मूल न सींचो, जो जामण मरण बिगोवो।

जिस प्राणी ने मूल को नहीं सींचा विष्णु नाम का जाप नहीं किया, उसने जन्म मरण अर्थात लोक परलोक दोनों को व्यर्थ ही गवा दिया

अहनिश करणी थीर न रहिबा, न बच्यो जम कालूं।

दिन-रात निरंतर शुभ कर्म करने में लगे रहना ही श्रेयस्कर है। क्योंकि किसी का भी जीवन स्थिर नहीं है ,पता नहीं यह क्षणभंगुर देह किस क्षण साथ छोड़ दे? यह सत्य है कि इस संसार में जन्म धारण करने वाला कोई भी क्यों न हो, वह महाकाल के दूतों से बच नहीं सकता।

कोई कोई भल भूल सींची लो, भल तंत बूझीलों।

इस संसार में विरले ही लोग मूल को सींचते हैं। परंतु जो भी मूल तत्व को सींचते हैं ,भगवान विष्णु का नाम जपते हैं ,परम तत्व का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।

जा जीवन की विध जाणी, जिवतड़ा कछू लाओ होसी, मूवा न आवत हांणी

शुभ कर्म करते हुए इस जीवन के जीने की विधि जानते हैं ,उन्हें इस संसार में रहते हुए अनेक लाभ तो होते ही हैं ,मरने पर भी उनका कोई नुकसान नहीं होता ।विष्णु का भजन करने वाले का जीवन और मरण दोनों फलदाई है ।वे जीवन में यश पाते हैं और मरणोपरांत ,बैकुंठ धाम को प्राप्त होते हैं।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
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