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मनोज यादव गांव धमाना, हिसार
जीवन का सबसे बड़ा सच मौत है, लेकिन इस सच पर भी सहसा विश्वास नहीं होता कि चौधरी भजनलाल आज हमारे बीच नहीं है। विश्वास नहीं होता कि ऐसे शालीन एवं शांत व्यक्ति के प्रति भी नियति इतनी निर्दयी हो सकती है। उनकी वह सौम्य मुस्कान जन-जन के मन में चिरस्थायी रहेगी। उनका आशावादी मधुर स्वर हमारे मनों में हमेशा गूंजता रहेगा। राजनीति में दोस्ती व दुश्मनी स्थायी नहीं होती, लेकिन अपने विरोधी को भी दोस्त बना लेने का हुनर केवल उनके पास था। उनके बिछुड़ने का गम हरेक जनमानस को है। अपने महबूब नेता का बढ़ा हुआ हाथ हमें हमेशा याद आता रहेगा। मानवीय मूल्यों में उनकी आस्था हमारे भविष्य को प्रेरित करती रहेगी। उनके अति उदार स्वभाव की मिसाल आज हर इंसान की जुबान पर है।
बिश्नोई रत्नचौधरी भजनलाल जी का जीवन, उनका संघर्ष और उनकी विनम्र कार्यशैली किसी परिचय की मोहताज नहीं है। चाहे पंच, ब्लाक समिति चेयरमैन से लेकर विधायक, मंत्री, सांसद, केन्द्रीय मंत्री व मुख्यमंत्री तक के औहदे पर रहकर भी आम आदमी से सीधे तौर पर जुड़े रहने की मिसाल हो या फिर अपने दरवाजे पर आए हर व्यक्ति की बात को बिना किसी लाग-लपेट के सुनने का जिक्र हो, तो बरबस ही चौधरी भजनलाल का तेजस्वी चेहरा हमारी आंखों के सामने घूम जाता है। फरियाद लेकर आने वाले को संतुष्ट करके भेजना, लोगों के सुख-दु:ख में अपनों की तरह पहुंचना, उच्च पदों पर रहकर भी हर क्षेत्र में जाकर लोगों की दुख-तकलीफें जानना और लोगों के लिए अपने घर के दरवाजे 24 घंटे खुले रखना। होली हो या फिर दीवाली हर हाल में अपने गृह हल्के आदमपुर हल्कावासियों की खुशियों में शामिल होना। ये सब चौधरी भजनलाल की निजी विशेषताएं रही है। प्रदेश की 36 बिरादरी को प्रशासनिक व राजनैतिक रूप से भरपूर मान-सम्मान देना, सादगीपूर्ण जीवन, सौम्य व्यवहार, बेजोड़ संगठनकर्ता और मृदुभाषी जैसे गुणोंने उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग किया। लोगों को उनके नाम से संबोधित करने की आदत ने आम आदमी के मन में उनके प्रति विशेष स्नेह जगाया।
सत्ता में प्रदेश की 36 बिरादरी की भागीदारी सुनिश्चित करने की भावना लेकर राजनीति में आए चौधरी भजनलाल की जनहित से जुड़ी नीतियों का ही परिणाम है कि अब तक सर्वाधिक लंबे समय तक प्रदेश का मुख्यमंत्री होने का गौरव उन्हें मिला। उनके मन में प्रदेश के कोने-कोने का विकास, प्रत्येक बिरादरी व क्षेत्र के लोगों को रोजगार के भरपूर अवसर दिलाने और आम आदमी की सरकार देने का इरादा रहा है। यही कारण रहा कि आज उनकी छवि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में है।
चौधरी भजनलाल का जन्म 6 अक्टूबर, 1930 को पाकिस्तान के कोड़ांवाली गांव (बहावलपुर रियासत) में हुआ। उनके पिता चौधरी खैराज राज व माता का नाम श्रीमती कुन्दना देवी था। तीन बहन-भाइयों में सबसे बड़े चौधरी भजनलाल के छोटे भाई का नाम चौधरी मनफूल सिंह व बहन श्रीमती भागां देवी हैं। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद उनका परिवार फतेहाबाद जिले के ग्राम मोहम्मदपुर रोही में आकर बस गया। उनकी शादी फतेहाबाद जिले के गांव लालवास के चौधरी बृजलाल की सुपुत्री जसमां देवी के साथ हुई। वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। इस परिवार में धर्मपत्नी श्रीमती जसमां देवी, संतानों में सबसे बड़ी पुत्री रोशनी, दामाद अनूप सिंह, दोहती सुरभि व दामाद विपुल स्वरूप, दोहते आदित्यवर्धन व आयुष्यवर्धन, बड़ा पुत्र चंद्रमोहन, पुत्रवधु श्रीमती सीमा देवी, पौत्र सिद्धार्थ व पौत्री दामिनी, छोटा पुत्र कुलदीप बिश्नोई, पुत्रवधु श्रीमती रेणुका देवी, पौत्र भव्य व चैतन्य, पौत्री सीया हैं।
आदमपुर आकर व्यापार से अपने कैरियर की शुरूआत करने वाले चौधरी भजनलाल ने वर्ष 1960 में पहली बार ग्राम पंचायत के पंच का चुनाव लड़कर राजनीति में प्रवेश किया। तत्कालीन व्यवस्था के अनुसार पंचायत के सदस्यों द्वारा चेयरमैन चुना जाता था इसलिए वे अपने अच्छेरसूख के बल पर ब्लाक समिति चेयरमैन बने तथा 1968 में पहली बार आदमपुर से विधायक बने तथा 1972 में भी विधानसभा पहुंचे। वर्ष 1970 व 1978 में प्रदेश के मंत्रिमंडल में रहे। 28 जून 1979 को उन्होंने पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने सबसे पहले नगर पालिकाओं के सफाई कर्मचारियों का वेतनमान बढ़ाने का आदेश जारी किया। तदुपरांत लगातार दूसरी बार 1982 में मुख्यमंत्री बने। 1986 में राज्यसभा सांसद बनकर केंद्रीय मंत्रीमंडल में कृषि मंत्री बने, इससे पहले केन्द्र में वन एवं पर्यावरण मंत्री का भी कार्यभार संभाला। 1987 में आदमपुर विधानसभा चुनाव में अपनी धर्मपत्नी श्रीमती जसमां देवी को विधायक बनवाया।
वर्ष 1989 में फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र से सांसद बने और 1991 में एक बार फिर आदमपुर हलके से विधानसभा में पहुंचे तथा मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1998 में करनाल लोकसभा से सांसद बने और आदमपुर के विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया। उनकी सीट पर हुए उपचुनाव में विपक्ष में होते हुए भी उपचुनाव में अपने पुत्र कुलदीप बिश्नोई को भारी मतों से विजयी करवाया। वर्ष 2000 में विधायक बनकर विपक्ष के नेता बने और 2002 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद 2005 में कांग्रेस को भारी बहुमत से जितवाया। 2 दिसम्बर 2007 को हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) का गठन उनके संरक्षण में ही हुआ। अपनी इस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में भी एक बार फिर उपचुनाव में भारी जीत दर्ज की। तीन बार लोकसभा सदस्य (फरीदाबाद, करनाल व हिसार), एक बार राज्यसभा सदस्य, तीन बार राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य,नौ बार विधायक (आदमपुर) व एक बार पंचायत समिति (आदमपुर) के चेयरमैन बनकर 46 साल के लंबे राजनैतिक जीवन में राजनीति के बेजोड़ बादशाह रहे।
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