लिखी जनकल्याण व विकास की इबारत

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डॉ. चन्द्र त्रिखा हरियाणा की राजनीति में सबसे लंबी पारी खेलने वाले दिग्गज राजनीतिज्ञ चौधरी भजनलाल अब नहीं रहे। इसके साथ ही हरियाणवी राजनीति के बहुचर्चित तीसरे एवं अंतिमलाल की गाथा का अध्याय समाप्त हुआ। तीन बार मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रभावी मंत्री के रूप में निरंतर सक्रिय बने रहने वाले चौधरी भजनलाल ने अपनी मौलिक कार्यशैली एवं राजनीतिक पटुता के बूते जनकल्याण एवं विकास की इबारत लिखने में पूरी सक्रियता से शिरकत बनाए रखी। चौधरी भजनलाल में एक विशेषता थी जो शायद उनके समकालीनों में बिल्कुल नहीं थी। वे संकट के क्षणों में कतई हताश नहीं होते थे और हारी हुई बाजी को विजय के स्ट्रोक में बदलने का सामथ्र्य रखते थे। प्राय: चुनौतियों व चेतावनियों की भाषा में बात सहने में माहिर चौधरी भजनलाल सही समय पर सही निर्णय में विश्वास रखते थे। अपनी इन्हीं विशेषताओं एवं विशिष्टताओं के बूते उन्होंने हरियाणा के दोनों प्रमुख लालों को कई बार पीछे छोड़ा। आपातकाल के बाद पूरे मंत्रिमंडल एवं लगभग पूरे विधायक दल के साथ दलबदल करने की जो दक्षता उन्होंने दिखाई थी, वह भारतीय राजनीति के इतिहास में अनूठी थी। जितनी विषय परिस्थितियों में उन्हें अपनी राजनीति खेलनी पड़ी, उतनी विषमताओं से शायद कोई अन्य राजनेता दो चार नहीं हुआ। पूरी जिन्दगी में वह सिर्फ एक बार चुनाव हारे। उन्हें फरीदाबाद से चुनाव लड़ने को कहा गया तो वह वहां से भी आसानी के साथ जीत गए। आदमपुर विधानसभा क्षेत्र तो उनकी चुनावी राजनीति का पर्याय बन गया था। भजनलाल पंजाबी नहीं थे, मगर पंजाबी समुदाय का एक बड़ा वर्ग उन्हें अपना नेता मानता था। बिश्नोई समुदाय से संबंध था तो उस समुदाय पर उनकी एकल पकड़ बनी रही। खाने में देशी घी पसंद करने वाले चौधरी भजनलाल जमीनी राजनीति की पेचिदगियों को समझते थे। मीडिया, अधिकारियों व निर्दलीय विधायकों से निकट सम्पक बनाने में उनका कोई सानी नहीं था। राजनीति में पहली बार छाया मंत्रिमंडल का गठन करने वाले शायद वह एकमात्र नेता थे। अपनी बेटी अपना धन सरीखी योजनाएं उन्हीं की देन थी। चौधरी भजनलाल की एक और विशेषता थी कि वह शब्दों को चबाते नहीं थे। बेबाकी उनका वैशिष्ट्रय था और अक्सर क्षेत्रिय राजनीति में उनका यह गुण उनके काम आता था। जनहित कांग्रेस को उन्हीं के नाम से पहचान मिली थी। एक और विशेषता थी कि वह अपने पुराने साथियों की कभी उपेक्षा नहीं करते थे। जो एक बार उनसे मिला उनका ही होकर रह गया। पुराने दोस्त कभी भी
अप्रासंगिक नहीं हुए।
साभार – हरिभूमि

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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