” राव करीजै रंक, रंकासिर छत्र धरीजै। अल्हू आस वैसे सार, आस कीजै सिंवरीजै। चख लहै अंध पंगा चलण, मौनी सिधायक वयण। तो करता कहा न होय, नारायण पंकज नयण।
भावार्थ
‘ राजा को रंक तथा रंक को राजा करने वाला,अंधे को आंख देने वाला,पंगू को चलाने वाला, गूंगे को वाणी प्रदान करने वाला कमलनयन नारायण हरि सर्वशक्तिमान है।वे ही मूल है, उन्हीं की आशा करनी चाहिए और उन्हीं का स्मरण करना चाहिए।’