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डॉ. बनवारी लाल सहू 1/73, प्रोफेसर कॉलोनी, हनुमानगढ़ टाउन
जननी जने तो एड़ा जन, के दाता के सूर
नीतर रहीजै बांझड़ी, मती गुमाइजे नूर कवि के इस कथन के अनुसार भजनलाल जी के रूप में एक दानी एवं वीर पुत्र को जन्म देकर उनकी माता ने अपने स्त्री जीवन को सार्थक प्रमाणित किया था। बिश्नोई रत्नचौधरी भजन लाल जी के साथ मेरा चार दशकों का सम्बन्ध रहा है। सर्वप्रथम मैं अपने कुछ साथियों के साथ भजनलाल जी से आदमपुर में ही उनके घर पर मिला था। इस पहली मुलाकात से ही मैं उनका आतिथ्य सत्कार, मिलनसारिता से अभिभूत हो गया था। भजनलाल जी जिस आत्मीयता से लोगों से मिलते थे और उनकी समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करते थे, उनकी इसी विशेषता ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया था कि विरोधी से विरोधी भी उनकी व्यवहार कुशलता से प्रभावित रहा है।
अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ के कारण ही भजनलाल जी कदम दर कदम आगे बढ़ते रहे थे। व्यावहारिक राजनीति के सभी दाव-पेचों में निपुण होने तथा मानवीय गुणों के कारण ही आप हरियाणा के तीन बार मुख्यमंत्री बने थे। केन्द्र में पर्यावरण तथा कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। राजनीति के क्षेत्र में वे इतने निपुण थे कि सभी उनको इस क्षेत्र का पीएच.डी. मानते थे। एक ओर जहां वे व्यवहारिक राजनीति के ज्ञाता थे वहीं वे मनुष्य को मनुष्य के रूप में देखते थे, जिसके कारण वे सभी वर्गों में लोकप्रिय थे। अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव जीतना इनकी इसी लोकप्रियता का परिणाम माना जा सकता है। इस लोकप्रियता के पीछे उनकी स्मरण शक्ति भी बहुत सहायक रही है। इतने लोगों के सम्पर्क में रहने के उपरान्त भी वे एक दो मुलाकात के बाद उस व्यक्ति के नाम से परिचित रहते थे, जिससे सामने वाला बहुत अधिक प्रभावित होता था।
राजनीति में इतने व्यस्त होने के बावजूद उनकी अपने धर्म के प्रति अटूट आस्था रही थी। समाज विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे। प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने से लेकर जीवन के अन्तिम समय तक वे मुकाम में हर मेले पर पहुंचते थे। दो दिनों तक लोगों के बीच में रहकर धर्म एवं समाज विकास के लिए चिन्तन मनन करते थे। देश के विभिन्न स्थानों पर बनने वाली धर्मशालाओं, मंदिरों एवं पुराने तीर्थ स्थलों के जीणौंद्धार में आपका सक्रिय योगदान रहा है। आपकी प्रेरणा से समाज के अन्य लोग भी इस क्षेत्र में बड़े उत्साह से कार्य कर रहे थे। इतना ही नहीं, गत वर्षों में समाज के निर्माण कार्य में जो धन खर्च हुआ है, उसमें भी आपकी दानवीरता सर्वोपरि रही है। इन कार्यों में जहां आपने दिल खोलकर दान दिया है, वहीं समाज के महत्वपूर्ण एवं प्रमुख व्यक्ति होने के नाते समाज के लोग शिलान्यास एवं लोकार्पण जैसे कार्यों के लिए आपको आमन्त्रित करते थे, आप यथा सम्भव सब स्थानों पर पहुंचते थे, यथाशक्ति वहां दान देकर आते थे,जिससे दूसरे लोग भी प्रेरित होते रहे हैं।
समाज ने सन् 1985 में जब पंचशती समारोह मनाया तो उसके समापन समारोह (10 मार्च, 1986) में आप की सेवाओं के आधार पर समाज ने आपको अपने सब से बड़े अलंकरण बिश्नोई रत्न की उपाधि से अलंकृत किया। समाज ने भजन लाल जी को इस उपाधि के द्वारा जो मान-सम्मान दिया, आपने भी समाज के इस मान-सम्मान की पूरी रक्षा की थी। समाज-विकास के लिए जो कार्य किये उससे यह प्रमाणित हो गया है कि वे वास्तव में ही बिश्नोई रत्न थे। आज राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बिश्नोई समाज की जो पहचान है, उसके पीछे सर्वाधिक योगदान भजनलाल जी का ही है। चौधरी साहब ने आजीवन समाज और देश के लिए जो कार्य किये हैं, जिनके कारण वे इस अवधि में सर्वाधिक चर्चा में रहे हैं, उसके आधार पर हम इस युग को भजनलाल युग कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनके स्वर्गवास के साथ ही एक युग का अन्त हो गया है, जिसकी समाज में पुनरावृत्ति होना कठिन है। ऐसी महान् आत्मा को कोटि-कोटिनमन।
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