मेरे साथी मेरे हमदम – पं. रामजीलाल पूर्व सांसद (राज्य सभा) Part 3.

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1989 में लोकसभा चुनाव थे। श्री राजीव गांधी चौधरी साहब को फरीदाबाद से चुनाव लड़ाना चाहते थे। चौधरी बंसीलाल ने जाकर राजीव जी से कहा कि भजनलाल को आदमपुर से बाहर कोई नहीं जानता और आप एक सीट खो रहे हो परन्तुराजीव गांधी ने भजनलाल पर पूर्ण विश्वास किया और फरीदाबाद की टिकट दी। चौधरी साहब ने राजीव जी के विश्वास को कायम रखा और डेढ़ लाख वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचे। इस चुनाव में उन्होंने देवीलाल सरकार की धक्काशाही का भी मुंहतोड़ जवाब दिया था।

1991 के विधानसभा चुनाव में चौधरी साहब आदमपुर से विधायक बनकर तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और मुझे हरियाणा स्टेट कॉरपोरेशन व अपैक्स बैंक चण्डीगढ़ का चेयरमैन बनाया। जुलाई, 1992 में राज्यसभा की सीट के लिए चुनाव हुए। विपक्ष ने श्री ओमप्रकाश जिंदल को अपना सांझा उम्मीदवार बनाया और चौधरी भजनलाल जी ने मुझे। इस चुनाव में चौधरी साहब स्वयं मेरे एजेन्ट बने और मुझे जितवाया। चौधरी बंसीलाल ने मुख्यमंत्री के एजेन्ट बनने पर मजाक किया तो चौधरी साहब ने जवाब दिया कि जब रामजीलाल हमेशा मेरा एजेन्ट बनता रहा है तो एक बार मैं भी उनका एजेन्ट बन सकता हूं।

मेरे राज्यसभा सांसद बनने के कुछ ही महीने बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने चौधरी भजनलाल जी को बुलाकर कहा कि दिनेश सिंह को राज्यसभा में भेजना जरूरी है और कोई सीट खाली नहीं है। चौधरी भजनलाल ने प्रधानमंत्री की समस्या को समझ लिया और दो दिन का समय मांगकर हरियाणा भवन आ गये। वहां पर चौधरी धर्मपाल सिंह मलिक और मैं पहले से ही बैठे थे। चौधरी साहब ने पूरी बात हमें बताई। मैं चुपचाप उठकर अन्दर गया और मेरा त्यागपत्र लिखकर उनके हाथ में दे दिया। चौधरी साहब ने बहुत मना किया और कहा कि अभी क्या जल्दी है अभी दो दिन सोचने का समय है। मैंने कहा इसमें सोचना क्या है, मेरे रहते और किसकी सीट खाली करवाओगे। एक घंटे में ही त्यागपत्र प्रधानंत्री के पास पहुंच गया। श्री नरसिम्हा राव आश्चर्यचकित हो गये कि चौधरी भजनलालजी की अपने साथियों पर कितनी मजबूत पकड़ है और श्रीराव सदैवचौधरी साहब से प्रभावित रहे। श्रीराव ने प्रसन्न होकर चौधरी भजनलाल जी से कहा कि आप जिस राज्य का चाहो रामजीलाल को उसी राज्य का राज्यपाल बनवा लो, परन्तु मैंने मना कर दिया। चौधरी साहब ने 1994 में मुझे फिर से राज्यसभा में भेज दिया। चौधरी साहब की यही विशेषता थी जिसके कारण उनके साथ उन पर और वे साथियों पर विश्वास करते थे।

2006 से चौधरी साहब ने हिसार को ही अपना स्थायी निवास बना लिया था। तबसे तो सारा दिन उन्हीं के साथ गुजरता था। सुबह पांच बजे समाचार पत्र पढ़ने के साथ दिनचर्या शुरू होती थी। वे दिनभर लोगों की समस्याएं सुनते थे और सायंकाल में साढ़ेसात बजे तक जनता के बीच रहते थे। 3 जून को भी मैं उन्हीं के साथ था। 12.30 बजे तक उसी तरह जनता की समस्याएं सुनते रहे। 12.30 बजे जब वे दोपहर का भोजन करने अंदर जाने लगे तब 3.00 बजे फिर आने के लिए कहा। मैंने उनसे निवेदन किया कि गर्मी बहुत है,400 बजे तक आप विश्राम करिए फिर मिल लेंगे। पर अथक जनसेवी नहीं माने और 3.30 बजे फिर से मिलना तय हुआ। किसे पता था कि यह आखिरी मुलाकात है। कुदरत पर किसी कावश नहीं चलता। अभी घर पहुंचा ही था कि चौधरी साहब की कोठी से फोन आया कि चौधरी भजनलाल जी की तबियत खराब हो गई। कानों को सहसा विश्वास नहीं हुआ, अभी 10 मिनट पहले ही तो साथ था। उसी समय हस्पताल पहुंचा और अपने पचास वर्षों के साथी को मूछित पाया, डाक्टरों ने बहुत दवा की और हमने बहुत दुआ की, परन्तु कुछ भी काम न आया और सायं पांच बजे हम सबको बीच मझधार छोड़कर चले गये।

पांच दशकों तक हमदु:ख-सुख में साथ-साथ रहे। कोई भी डर या लालच हमें अलग नहीं कर सका। मुझे उनके बहुत निकट रहने का अवसर मिला। नि:संदेह वे बहुत उदार हृदय के व्यक्ति थे। आम आदमी के कल्याण की चिंता सदैव उन्हें सताती रहती थी। घर आए को जितना मान-सम्मान वे देते थे वह और कहीं देखने को नहीं मिलता। मुझे आज भी लगता है कि जैसे वे मेरे साथ हैं क्योंकि उनका जीवन संघर्ष, व्यक्तित्व सदैव मेरी आंखों के सामने तैरता रहता है। चौधरी साहब मेरे मित्र भी थे और मेरे नेता भी थे। उन्हीं के मार्गदर्शन से मैं राजनीति में इस मुकाम तक पहुंचा हूं। परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति दे। परमात्मा से यही प्रार्थना करता हूंकि यदि फिर से जन्म लेना पड़े तो मुझे ऐसा ही मित्र मिले।

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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