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श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने जिस पंथ की स्थापना की थी उसका मूल उद्देश्य क्या था और आज हम उस पंथ को कहा तक चला पाए यानी कि उसकी सँभाल किस तरह कर रहे हैं।
पंथ का मूल उद्देश्य है कि जिया न जुक्ति ओर मुआ न मुक्ति देना।
जुक्ति मतलब जीने की कला,जीने का सही ढंग,इस तरीके से जीवन यापन करने का सरल राह दिखाया और मरने उपरांत चौरासी लाख योनिया के बंधन से मुक्ति करना।
जीवन जीने की राह कौन सी है आइए इस पर थोड़ा चिंतन मंथन करते हैं।
1-पोह का जागण
सुबह जल्दी उठो
2-शोच स्नान करो क्यो नाही
शौच जाने के बाद स्नान करना
3-के त चलते फिरते दान्तन कियो
एक जगह बैठकर दांतुन करनी चाहिए
4-पवना पानी नवण करन्तो
चंदे सूरे शीश नवन्तो
पवन,पानी,सूर्य चन्द्रमा को नमस्कार करनी चाहिए।
5-जा दिन तेरे होम न जप न तप न किरिया जान के भागी कपिला गाई
जिस दिन तुमने होम नही किया परमात्मा का जप तप नही किया तो तुम्हारी कपिला गाय जैसी सर्वेष्ठ बुद्धि निकल गई है।
6-काय रे मुरखा त जन्म गुमायो भुय भारी ले भारी
जा दिन तेरे होम न जप न तप न किरिया।
हे मूर्ख तुमने मानव जीवन व्यर्थ ही गवा दिया तुम तो पृथ्वी को ही भार मार रहे हो,यदि तुमने होम,जप,तपस्या एव सदकर्म नही किये ,परमात्मा को पहचाना नही तो तेरा सारा जीवन व्यर्थ ही चला गया,किसी अन्य से होम जाप करवाने से कोई लाभ नही मिल सकता स्वयं करो।
7-जपा तो एक निरालंब शिंभू जिहि के माई न पिऊ
न तन रकतु न तन धातू
न तन ताव सीऊ
सर्व सीरजत मरत बिबरजत
तासन मुलज लेना कियो।
जप तो केवल एक निरालंब स्वंयभू परमात्मा का ही करना चाहिए, जिसके कोई माता पिता नही है।उसमें रगत व धात नही है।उसे सर्दी व गर्मी नही लगती वह सृष्टि का रचनाकार है एव मृत्यु से रहित है।उसी के मूल स्वरूप को जानना चाहिए।
8-भूला प्राणी विसन जपो रे ज्यूँ मौत टले जीरवाणों।
हे भूले हुए प्राणियों उस परमसत्ता विसन का जप करो जिससे मौत एव आवागमन से छुटकारा मिल सके।
9-दया धर्म थापले निज बाला ब्रह्चारी।
जो व्यक्ति दया और धर्म का पालन करता है जिसका ह्रदय बालक की तरह सरल है वही उस परमात्मा के स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं।
10-कूड़ तनों जे करतब कियो नाते लाव न सायो
भूला प्राणी आल बखाणी
झूठ का सहारा लेकर तुम यदि कोई भी कार्य करोगे तो उससे तुम्हे कोई प्राप्ति नही होगी हे भूले हुए प्राणियों तुम जो व्यर्थ ही झूठ का सहारा ले रहे हो,बोलते हो वह छोड़ दो उससे कोई प्राप्ति नही होगी।
11-जे नविये नवणी खविये खवणी जरिये जरणी करिये करणी तो सिख हुआ घर जाइये।
जो अत्यंत नम्र है, क्षमाशील है, इंद्रियों पर नियंत्रण करने वाला है एव मेरे बताए अनुसार कर्म करता है, उसका मोक्ष हो जाता है।
12-लोहा नीर किस विध तरीबा उत्तम संग सनेहू।
लौहे की बेड़ी का सयोंग लकड़ी की नाव से होता है तो खिवैया उसे पार लगा देता है, उसी प्रकार अवगुणी व्यक्ति यदि गुणवान व्यक्ति की संगति करे तो वह उसके गुणों का लाभ लेकर गुणवान बन सकता,जाता है।
13-वाद विवादी फिटाकार प्राणी छोड़ो मनहठ मन का भाणों।
आप वाद विवाद और बकवाद से दूर रहो और अपने मन के हठ एव अंहकार को छोड़ दो यह बर्बादी का कारण है।
14-जे नर दावो छोड्यो मेर चुकाई राह तैतीसो की जाणी।
जिस मनुष्य ने अपनेपन ओर अंहकार को त्याग दिया है उसने मोक्ष मार्ग को जान लिया है।
15-नुगरा उमग्या काठ पखानों ।
अज्ञानी व्यक्ति तो काठ एव पत्थरो की मूर्तियों से ही प्रशन्न रहते हैं, वे सार तत्व को नही पहचानते।
16-यह मढ़ देवल तीर्थ वासो मूल न जोयबा।
इन देवालयों,मन्दिरो,मठो,तीर्थ स्थानों व मूर्तियों में वह परमसत्ता नही है।
17-हड़सठ तीर्थ ह्रदय भीतर बाहर लोका चारु
अड़सठ तीर्थ तो ह्रदय में ही है बाहर तो मात्र लोक दिखावा है।
18-बिन किरिया परिवार किसो कण बिन कूकस रस बिन बाकस।।
जिस परिवार में मेहनत नही करते वे परीवार बिना अनाज के भूसी की तरह ही है, गन्ने के रस निकलने के बाद जो थोथा कचरा है बिना मेहनत करने वाला परिवार उसी तरह है।
19-रहो रे मुरखा मुग्ध गवारा करो मजूरी पेट भराई।
हे मूर्ख कुछ न कुछ तो करो और न तो रोटी वाली मजूरी तो कर लो।
20-जीवत मरो रे जीवत मरो जिन जीवन की विध न जाणी।
आप जिन्दे जी मर रहे हो क्योकि जीवन जीने की विधि को आप जान ही नही रहे हो।
21-नित ही अमावस नित ही संक्रांति नित ही नव ग्रह वैसे पांति नित ही गंग हिलोरे जाय जे सतगुरु चिन्हे सहज समाय।
जो गुरु महाराज द्वारा बताए राह पर चलता है उसके लिए तो रोज ही अमावस्या, संक्रांति है।उसका हर समय एव वेला शुभ है।उसके मन मे आनंद रूपी गंगा की लहरें बहती रहती है।
कुछ पक्तियों के सार आपसे सांझा किया है, अब आप खुद इन पंक्तियों पर विचार करो की हम कौन थे और आज कहा है।अब चाहे गीता,महाभारत, रामायण,कुरान पढ़ लो या मन्दिरो में टल खड़काओ या तीर्थो में डुबकी लगाओ जो मन माने रे भाई।
क्योंकि भाग परापति कर्मा सारू
कर्म करने से ही भाग्य चमकेगा पढ़ने गाने नाचने से कुछ नही मिलेगा।
दुनिया राचे गाजे बाजे तामू कणु न दाणू।
दुनिया तो गाने बजाने में लिप्त हैं उसमें कोई सार नही है।
जे थे गुरु का सबद मानीलो लघवा भवजल पारू।
अगर हमने श्री गुरु जम्भेश्वरजी के सबदो को अपने जीवन मे अपना लिए तो हम भवसागर से पार हो जायेगे।
अब इसमे बिचोलियों की कहा जरूरत है।
खुद को संभलना है।
🙏🙏
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