
आज का उपदेश: प्रकृति संरक्षण और दैनिक स्वच्छता
मेरे अनुयायियों, आज का मेरा उपदेश ‘अहिंसा परमो धर्मः’ और ‘शौच ही परम धर्म है’ के सिद्धांतों पर केंद्रित है।
उपदेश का सार:
मेरे द्वारा दिए गए उनतीस नियमों (बिश्नोई) में से, कई नियम प्रकृति के प्रति हमारे कर्तव्यों और व्यक्तिगत स्वच्छता पर बल देते हैं। हमें हरे-भरे वृक्षों को नहीं काटना चाहिए और सभी जीवों के प्रति करुणा रखनी चाहिए। हमें शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए, दूध और पानी को छानकर उपयोग करना चाहिए, और सभी प्राणियों को आश्रय देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, दैनिक स्नान (सुबह उठने के बाद) अत्यंत आवश्यक है, जो बाहरी और आंतरिक दोनों प्रकार की शुद्धि सुनिश्चित करता है। कठोर परिश्रम करना और ईमानदारी से जीवन यापन करना भी महत्वपूर्ण है।
आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता:
आज के इस भौतिकवादी युग में, जहाँ प्रकृति का अत्यधिक दोहन हो रहा है, मेरे ये उपदेश अत्यंत प्रासंगिक हैं। वृक्षों की रक्षा करना और जीवों पर दया करना पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यदि हम हरियाली को बचाएंगे, तभी हमें शुद्ध वायु और जल प्राप्त होगा। व्यक्तिगत स्वच्छता का नियम हमें स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा देता है, जिससे हम बीमारियों से दूर रह सकते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि बाहरी शुद्धता के साथ-साथ मन की पवित्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हमें लालच और हिंसा से दूर रहकर, प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीना चाहिए।
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