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अग्नि में जलाई जाने वाली लकड़ी को देखकर ही प्रयोग में लेनी चाहिए कही लकड़ी की छाल में कीड़े आदि जीव तो नही है ?
दीमक आदि से युक्त लकड़ी को प्रायः प्रयोग में नही लेना चाहिए।थेपड़ियो व कण्डे आदि भी जीव रहित हो,ऐसा निश्चय होने पर ही अग्रि में डाले जाने चाहिए।
दूध भी कपड़े से छानकर प्रयोग में लाना चाहिए।आजकल प्रायः प्लास्टिक की छलनी से दूध छानकर प्रयोग में लेने का प्रचलन हो गया है, जो उचित नही है।सूती कपड़े के नातना से दूध व पानी छानना चाहिए।जम्भेश्वरजी पद्द्ति में जल को छानने के बाद गलने(नातना) में आये हुए जीवो को पानी मे नातना खंगाल कर उन्हें वापिस जल में डालना चाहिए।स्नान व वस्त्र धोने के लिए पानी भी छानकर काम मे लिया जाना अच्छा रहता है।
सत्य धर्मपूर्वक वाणी बोलनी चाहिए तथा पवित्र मन से आचरण करना चाहिए।
सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए।सत्य हो पर प्रिय न हो तो नही बोलना चाहिए तथा प्रिय हो पर सत्य न हो तो भी नही बोलना चाहिए।
श्री सबदवाणी में गुरुदेव जी कहते हैं –
“सुवचन बोल सदा सुहलाली”
-सत्य वचन बोलोगें तो सदा ही खुशहाली रहेगी।
“बाणी एक अमोल है जे कोई जाणे बोल”
“हिये तराजू तोलकर तब मुख बाहर खोल” ।।
प्रिय बोलने वालों के लिए प्रदेश क्या होता है सभी उनके अपने हो जाते हैं जगत में हम देखते हैं कि सत्य पर ही जगत का सम्पूर्ण व्यवहार टिका हुआ है।सभी लोग एक दूसरे को सत्य बोलने की हिदायतें देते देखे गये है, सत्य ही परमात्मा है सत्य व्यवहार से ही परमात्म तत्व की प्राप्ति तथा लौकिक यश,प्रतिष्ठा, सुखी,यशस्वी जीवन जीया जा सकता है।इसलिए सभी को सत्य का पालन करते हुए जीवन कला सीखनी चाहिए।लोक व्यवहार में हम एक दूसरे को सामान्य वार्ता करते हुए सुनते है तो वे लोग गाली द्वारा ही सब्द बोलते हैं, जिससे आपस मे वैमनस्य वैर विरोध लड़ाई-झगड़ा देखे गए हैं।यदि बाणी को ही मधुर हितकर प्रेम भाव से बोला जाए तो आनंद की लहर दौड़ जाती हैं।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमा याचना👏👏
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