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वन संरक्षण अधिनियम Forest conservation Act-1980 का व्यापक संशोधन करते हुए वनों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कड़े से कड़े नियम लागू करवाए। जिसमें किसी भी विकास परियोजना के क्रियान्वयन से पूर्व पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति आवश्यक कर दी गई। अगर किसी कारणवश पेड़ों को काटना जरूरी समझा गया तो मंत्रालय को मुआवजा राशि के साथ-साथ उतनी ही जमीन पर बदले में और पेड़ लगाना सुनिश्चित किया गया। जब सन् 1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने गंगा सफाई अभियान की शुरूआत करवाई थी। इसी तर्ज पर यमुना नदी को भी उतनी पवित्रता का दर्जा देते हुए चौधरी भजनलाल ने यमुना सफाई अभियान के तहतयमुना एक्शन प्लान नामक योजना शुरू करवाई और आवश्यक धन उपलब्ध करवाया। दिनांक 15-16-17 जनवरी, 1987 को अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के तत्वाधान में जोधपुर राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था। उद्घाटन सत्र में भारत सरकार के तत्कालीन पर्यावरण मंत्री चौधरी भजनलाल जी मुख्य अतिथि थे। दिनांक 15 जनवरी, 1987 के दिन मुख्य समारोह के मंच संचालक विख्यात पत्रकार एवं समाज सेवक शुभुपटवा अपनी भावना को ना रोक सके और उन्होंने खुले मंच से घोषणा की आज मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि चौधरी भजनलाल सरीखे महान नेता के होते हुए भारतवर्ष वन एवं वन्यजीवों की रक्षा करने में सक्षम होगा। उक्त सम्मेलन में चौधरी भजनलाल जी ने जीवों के रक्षार्थ बलिदान देने वालों को राष्ट्रीय शहीदों के सम्मान में शौर्य चक्र, प्रशस्ति पत्र एवं एक लाख रुपये केन्द्रीय सरकार से दिलवाने की घोषणा की। इसी घोषणा के फलस्वरूप वन्य जीव रक्षार्थ शहीद स्व. निहालचन्द धारनियां (सावंतसर), स्व. श्री गंगाराम ईशरवाल (चेराई-एकलखोरी) छेलू सिंह राजपूत को भारत के राष्ट्रपति द्वारा मरणोपरांत शौर्यचक्र से सम्मानित किया जा चुका है। उसी मंच पर उन्होंने खेजड़ली शहीदी स्थल को राष्ट्रीय निधि एवं स्मारक बनवाने की घोषणा की। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री रहते हुए उन्होंने आई.आई.टी एवं आई.आई.एम की तर्ज पर भारतवर्ष में सात प्रमुख शहरों में पर्यावरण मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण संस्थान मंजूर करवाए जो आज विभिन्न रूप से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से जोधपुर का आफरी Arid Forest Research Institute देहरादून का Himalayan Forest Research Institute, let chT Dense Forest Research Institute 3eelarity इसी पद पर रहते हुए उन्होंने खेजड़ी वृक्ष के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार से खेजड़ी वृक्ष पर डाक टिकट जारी करवाई। पर्यावरण वैज्ञानिक डा. एस.एम. मोहनोत की सूचना का संज्ञान लेते हुए तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री चौधरी भजनलाल जी ने जयपुर में एक औद्योगिकी घराने द्वारा काटे जा रहे पेड़ों की रक्षा की। खेजड़ी को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित करवाया। स्वस्थापित गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय हिसार में पर्यावरण विज्ञान का अलग विभाग स्थापित करवाया । वन एवं वन्यजीवों की रक्षा का मन्त्र उनके जेहन में इतने गहरे तक समाया हुआ था कि उन्होंने इस तथ्य में कभी-कभी तो अपने राजनैतिक कैरियर को भी दांव पर लगा दिया था। इस विषय में एक ही उदाहरण काफी है। सन् 1983 में फतेहाबाद विधानसभा का उपचुनाव था। चुनाव प्रचार के दौरान जब एक गांव में उनसे
नीलगायों से छुटकारा दिलवाने की मांग की तो चौधरी साहब वोटों के लाभ को दरकिनार करते हुए लोगों से जीव हत्यान करने की अपील की जिसे उन लोगों ने माना भी था। 8. किसी भी प्रियजन की मृत्यु पर उनकी अंत्येष्ठी स्थल पर पौधारोपण की परम्परा भी 4 मई 2001 को
चौधरी जगतसिंह की शोक सभा में बेलगिरी का पौधा लगाकर चौधरी भजनलाल जी ने की थी। 9. सन् 1993 में लोक निर्माण विभाग में बतौर उपमण्डल अभियंता नियुक्ति पर लेखक अपने अन्य साथी अभियन्ताओं के साथ मई, 1993 में चौधरी भजनलाल से नव नियुक्ति पर आशीर्वाद लेने पहुंचे। मेरे साथी अभियंता लोग चौधरी साहब से प्रथम बार मिले थे। उन्होंने आशीर्वाद स्वरुप हमसे कहा कि आप लोगों ने निर्माण कार्य करना है। मैं आपसे यहीं कहूँगा कि किसी भी प्रोजेक्ट के क्रियान्वन के समय पेड़ ना काटे जाए। अगर बहुत अधिक मजबूरी एवं आवश्यकता हो तो एक पेड़ की जगह कम से कम दस पेड़ अवश्य लगाएं। मेरे इंजिनियर साथी आज भी उस घटना का जिक्र गाहेबगाहे करते रहते हैं और उनके देहावसान के वक्त तो सभी के फोन आए और उपर्युक्त अवसर का जिक्र किया। चौधरी साहब की उपर्युक्त शिक्षा का पालन आज तक लेखक करता आ रहा है और जीवनपर्यन्त करता रहेगा-ऐसा निश्चय है। 10. सन् 1979 में सउदी अरब के शहजादे एवं सलमान खान के शिकार के प्रकरण में चौधरी भजनलाल ने तत्कालिक राजनीतिक लाभ को न देखते हुए समाज का साथ दिया था। जिससे शिकारियों का उत्साह कम हुआ है। समाज के प्रबुद्ध जनों से निवेदन है कि उनकी क्षति की भरपाई तो असम्भव है पर उनकी शिक्षाओं, नीतियों और सिद्धांतों पर अमल करके हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
उनकी स्मृति स्वरुप गांव-गांव घर-घर में पेड़ लगा सकते हैं। उनकी अंत्येष्टि स्थल को विस्तारित करके सघन वन लगाया जा सकता है। शिक्षण संस्थान, विश्वविद्यालय स्थापित किये जा सकते हैं। उपर्युक्त कार्य उनके परिवार की नहीं समस्त समाज की जिम्मेदारी है।
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