

जै जै जम्भ गुरु जगदीसा ,
दूर ते दूर निकट तै नैड़ा , परम पर परमेसा ।। टेक ।।
काम क्रोध मद लोभ मोह , तज निद्रा तिसनां रीसा ।
ओर गुरू अठारा उनीसा , सतगुरू विस्वा बीसा ।।
जम्भ गुरू को छिनभर सिंवरै , आन देव कोट बरीसा ।
आन देव सुख दुख के दायक , हरि सिमरया अघ खीसा ।।
जम्भगुरू को ध्यान धरत है , सिव सिनकादिक अहिसा ।
म्रतलोक मां चरण पुजावै , सतलोक हरि सीसा ।।
जो विशनोई गुरूमुखि होई , गहै धरम उनतीसा ।
जो गुरु नै चारै जम नहीं मारै , साहबराम के ईसा ।।
अर्थ~ हे सबके प्रमात्मा गुरू जम्भैशवर , आपकी जय हो ।। आप दूर होते हुए भी मेरे नजदीक हैं , आप अति विशिष्ट देव है । काम , क्रोध ,मघ , लोभ , मोह ,निन्द्रा , तृष्णा ओर गुस्सा को छोडो , अन्य गुरू तो कम शक्ति के ही है परन्तु जाम्भोजी महाराज तो पूर्ण समर्थ गुरू है ।। अन्य देवों को चाहे बहुत समय स्मरण करो लेकिन जाम्भोजी का स्मरण क्षण भर का भी बहुत है ।
अन्य देव तो सुख -दुख देने वाले हैं परन्तु जाम्भोजी तो मुक्ति प्रदान करने वाले है ।।।
जाम्भोजी महाराज का ध्यान शिव-सिनकादिक भी करते है , संसारिक लोग उनके चरणों को पूजते हैं ओर स्वर्ग लोक में उन्हे शीश झुकाकर प्रणाम करते हैं ।
जो विशनोई गुरू का सच्चा शिष्य है , वह उनतीस धर्म नियमों की पालन करता है , साहबराम जी कहते है , जो गुरु जम्भेशवर ध्यान करता है , उसे यमराज भी नही मार सकते है ।।।।
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जम्भशरणम
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