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कामरेड रामेश्वर डेलू पूर्व स्टेज सेक्रेटरी, चौधरी भजनलाल जी, पूर्व मुख्यमंत्री बड़ोपल, फतेहाबाद
चौधरी भजनलाल जी से पारिवारिक सम्बन्ध तो बहुत पहले से ही थे। 1962 में सी.ए.वी. हाईस्कूल हिसार से मैट्रिक करने के बाद ही मेरा उनसे घनिष्ठ सम्पक बना जो आजीवन बढ़ता ही गया। हमारे पास ट्रांसपोर्ट का काम था और चौधरी भजनलाल जी का व्यापार इस समय तक काफी बढ़ चुका था। पूरे हरियाणा और हरियाणा से बाहर भी चौधरी साहब की फर्म का सामान भेजा जाने लगा था। चौधरी साहब बहुत खुले दिल के इंसान थे। 1962-63 में ही राजनीतिक क्षेत्र में उनकी अच्छी खासी पहचान बन गई थी। लोगों से उनके मिलने के ढंग से लगता था, कि वे बहुत आगे बढ़ने वाले हैं। लोगों के सुख-दु:ख में काम आने के कारण उनकी लोकप्रियता दिन दुगनी और रात चौगुनी बढ़ रही थी। 1966–67 में तो हालात यह थे कि वे आदमपुर में तत्कालीन एम.एल.ए. से भी अधिक लोकप्रिय थे और लोग कहते भी थे कि असली एम.एल.ए. तो चौधरी भजनलाल ही है।
चौधरी भजनलाल जी एक विशाल हृदय रखने वाले समाजनेता व राजनेता थे। गुरु जंभेश्वर भगवान की शिक्षाघर आये आदरियौ जीवनै को उन्होंने अपने जीवन में पूर्ण रूप से ढ़ाला था। घर आये अतिथि को वे देवता के समान मानकर उसका सत्कार करते थे। गुरु जंभेश्वर के एक अन्य नियमक्षमा-दया हिरदै धरो को भी उन्होंने हृदय से अपनाया था। बड़े से बड़े विरोधी को माफ़ करने की शक्ति उनके पास थी। क्षमा करने वाला ही सबसे शक्तिशाली होता है।
लगभग पांच दशकों के साथ में चौधरी भजनलाल जी के जीवन के उतार-चढ़ावों, कार्यशैली व व्यक्तित्व को बहुत निकट से देखने व जानने का अवसर मिला। चौधरी भजनलाल जी में एक बहुत बड़ा गुण था कि वे अपनी जुबान के धनी थे। जो बात किसी के कर लेते थे या जो वचन किसी को दे देते थे उसे पूरा करके छोड़ते थे। अपनी कही बात को निभाने के लिए उन्हें कितनी भी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती तो वे पीछे नहीं हटते थे। बात 1967 की है, हरियाणा में पहले आम चुनाव हो रहे थे। कांगेस की टिकट के लिए चौधरी भजनलाल जी आदमपुर से, चौधरी मनीराम गोदारा बड़ोपल से (तब भट्टूविधानसभा क्षेत्र का नाम बड़ोपल था) और चौधरी मनीराम मांझूफतेहाबाद से दावेदार थे। तीनों ने ही आपस में वायदा किया था कि एक दूसरे के क्षेत्र से टिकट नहीं लेंगे। उस समय एस. निजलिंगप्पा कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने चौधरी भजनलाल को सारे हालात समझाते हुए कहा कि आदमपुर से टिकट मिलना मुश्किल है और परामर्श दिया कि आप फतेहाबाद से टिकट ले ली। चौधरी भजनलाल जी ने कहा कि फतेहाबाद की टिकट मनीराम मांझू को दे दीजिए मैं नहीं लूगा क्योंकि मैं उनसे वादा कर चुका हूं। निजलिंगप्पा ने कहा राजनीति में टिकट बड़ी होती है वादा नहीं। परन्तु चौधरी भजनलाल जी अपनी बात पर अडिग रहे। परिणामस्वरूप चौधरी भजनलाल जी टिकट से वंचित रह गये, पर अपना वायदा निभा गये।
एक बार नहीं अनेक बार ऐसा अवसर आया जब भजनलाल जी ने अपना वायदा निभाने के लिए सब कुछ दांव पर लगाया था। उनके तीनों बार मुख्यमंत्रीत्व काल में मुझे स्टेज सेक्रेटरी टू सी.एम. रहने का अवसर उन्होंने ही दिया था। उन्हीं की कृपा से मुझे पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, श्री राजीव गांधी, श्री पी.वी. नरसिम्हाराव व पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह के कार्यक्रमों में मंच संचालन का अवसर मिला। आज राजनीति में जब प्रतिदिन वायदे टूटते हैं तो चौधरी साहब की बरबस याद आती है। अपने सुसमय में वे अपने कुसमय के साथियों को कभी भूलते नहीं थे बल्कि उनका ऋण ब्याज सहित चुका देते थे। 1967 में चौधरी भजनलाल जी ने चौधरी रणजीत सिंह डाबड़ा वाले का चुनाव संभाला था। पंडित रामजीलाल जी, चौधरी मनीराम जी मांझू, सेठ रामनिवास जी बड़ोपलिया, श्री आर.एस. चौहान व इन पंक्तियों का लेखक भी 1967 व 1968 में चौधरी साहब टिकट हेतु गये तब उनके साथ थे। उनके लंबे राजनीतिक जीवन में मैं उनका एक छोटा सा सेवक रहा, इस बात का मुझे गर्व है। शत-शत नमन सहित।
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