जीव दया पालनी

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जीवों पर दया करनी चाहिए।
नित्य प्रति जीवो पर दया करना इसे सच्चा आचरण जानना चाहिए।शरीर और मन को अपने वश में करके जीव दया की पालना की जावै तो यह जीवात्मा निर्वाण अर्थात मुक्ति के पद की प्राप्ति की अधिकारिणी होती है।
जीव दया का वास्तविक अर्थ उनके प्रति सहानुभूति रखना है।ह्रदय में प्रत्येक प्राणी के प्रति दयाभाव रखना तथा जीव दया पालन करना चाहिए।
दया एक सात्विक वृति है, वह समता की मूल है।दयाभाव ह्रदय की उदारता का धोतक है और भेदभाव का भेदक है।
एक प्रकार से दया “शील” का ही अंग है।जीवदया पालन और वनस्पति रक्षण में विश्नोई समाज के सत्कार्य और बलिदान अनुपम है।वे सबके प्रेरणा स्त्रोत रहेंगे और सदा याद किये जायेंगे।
“अहिंसा परमो धर्म” अहिंसा व्रत का पालन करना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है।आप किसी को जीवन दे नही सकते हो तो लेने का क्या अधिकार है।जीव हिंसा अनधिकार चेष्टा है।सबदवाणी में अनेक बार जीव हिंसा का खंडन किया गया है।
“सुण रै काजी सुण रै मुल्ला सुण रै बकर कसाई”
“किणरी थरपी छाली रोसो किणरी गाडर गाई”
“सूल चुभीजै करक दुहेली तो है है जायो जीव न घाइ”
“थे तुरकी छूरकी भिस्ती दावो खायबा खाज अखाजू”
“चर फिर आवै सहज दुहावै तिह्नका खीर हलाली”
“तिहके गले करद क्यू सारो”
“थे पढ़ सुण रहिया खाली”

-श्री गुरुजाम्भो जी ने उपस्थित काजी,मुल्ला व कसाईयो को सम्बोधित करके कहा कि आप लोग परमात्मा की बनाई हुई निर्दोष बकरी,भेड़ व गाय आदि जीवो को क्यो मारते हो ?
हमारे शरीर मे एक कांटा चुभने पर हमें भयंकर पीड़ा होती है इसलिए इन निरीह जीवो की हत्या मत करो।क्योकि आपकी छुरी से इन्हें भयंकर पीड़ा होती है।आप तुर्क लोग इन जीवों पर छुरी चलाते हो तथा इन्हें मारकर खाते हो फिर आप स्वर्ग की कामना क्यो करते हो ?
ये दुधारू जीव खेतो में चर फिर कर आते हैं तथा सहजता से दूध भी देते हैं।उसका दूध पीना तो उचित है परन्तु उसके गले पर छुरी क्यो चलाते हो ?
तुम लोग पोथे पढ़ कर एव उन पर मनन करके भी खाली ही रह गए हो।
“भाई नाऊ बलद प्यारों”
“ताकै गले करद क्यू सारो”
-बैल तो भाई से भी अधिक प्यारा होता है, तुम उस बैल पर छुरी क्यो चलाते हो ?
“काहे काजै गऊ बिणासो”
“तो करीम गऊ क्यू चराई”
“कांही लीयो दूधू दहीयू”
“कांही लीयो घीयू महियूं”
“कांही लीयो हांडू मांसू”
“कांही लीयो रकतू रुहियूं”
“सुण रे काजी सुण रे मुल्ला”
“यामैं कोण भया मुरदारु”
“जीवा ऊपर जोर करिजे”
“अंतकाल होयसी भारू”

-गऊ की हत्या किस लिए करते हो ?
गऊ यदि मारने योग्य होती तो स्वयं करीम गऊ क्यों चराते ?
गऊ यदि मारने योग्य है तो आप इसका दूध,दही,मक्खन एव घी क्यो खाते हो ?
जब आप गऊ से दूध,दही,घी,मक्खन आदि प्राप्त कर खाते हो तो उसका हांड,मांस,खून आदि क्यो खाते हो ?
हे काजी ! एव मुल्लाओं सुनो !
इस प्रकार मरे हुए जीवों को खाने वाला मुरदार कौन हुआ ?
यदि आप जीवो पर जबर्दस्ती एव अत्याचार करोगे तो आपका अंत समय बहुत दुखदायी होगा।
“दया धर्म थापले निज बाल ब्रह्मचारी”
–जो व्यक्ति दया धर्म का पालन करता है।जिसका ह्रदय बालक की तरह सरल एव साफ है वही उस परमात्मा के स्वरूप की अनुभूति कर सकता है।
“जा जा दया न मया”
“ता ता विकरम कया”
–जिस व्यक्ति के मन मे दया भाव नही है उसके सभी कार्य उल्टे ही है।
इसलिए सभी जीवों के प्रति दयाभाव रखना चाहिए।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमा याचना👏👏

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Sanjeev Moga
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