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बात सन् 1992 की है जब मैं तत्कालीन माननीय मुख्यमन्त्री चौधरी भजनलालजी के उनके चण्डीगढ़ आवास पर किसी कारणवश मिलने गया था। समय सुबह लगभग 7 बजे का होगा जब मुख्यमन्त्री महोदय सभी मिलने के इच्छुक लोगों के बीच उनकी समस्याएं सुनने में पूर्ण व्यस्त थे। अचानक उन्होंने दूर किसी को आवाज लगाई “अरे भाई सुनो-जरा इधर आओ”। धोबी, जो कपड़े लेकर आवास से निकल रहा था, पास आकर घबराहट से बोला, जनाब नमस्कार, जी, क्या था सर। उन्होंने कहा तुम रोज-रोज पोटली भर कर कपड़े ले जाते हो – तुम्हें किसी ने इनके पैसे दिये कि नहीं? इतना कहते-कहते 500 रुपये का नोट थमा दिया। धोबी ने कहा नहीं सर मैं पैसे अपने आप ले लेता हूं अन्दर से चौधरी साहब ने कहा कोई और काम हो तो बताओ शर्माओ मत। पलभर खामोश रहने के उपरान्त उसने अपना कोई अटका हुआ काम डरते-डरते बता ही दिया। बस फिर क्या था साहब ने तुरन्त पी.ए. को इशारा किया और सबसे पहले धोबी के काम हेतु जयपुर फोन मिलाकर तुरन्त काम करने के आदेश दे दिए और उससे कहा जाओ तुम्हारा काम हो गया। फिर कोई दिक्कत या कोई काम हो तो बता देना। पिछले सप्ताह के पैसे मिलने के बाद ही अगले कपड़े उठाया करो।
ऐसे थे चौधरी साहब जिनकी गरीबों के प्रति उदारता हमेशा याद रखी जायेगी।
आत्माराम पूनियां, एडवोर्कट (हरियाणा)
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